सदाबहार एक बहुवर्षीय औषधीय और सजावटी पौधा है, जो भारत में अकसर परती और रेतीली भूमि में उगता है।
इसकी जड़ों में मौजूद इंडोल एल्कलॉइड्स जैसे रॉबसिन (अजमालिसिन)और सर्पेंटिन इसे औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। भारत के कई हिस्सों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है।
सदाबहार की उत्पत्ति मेडागास्कर मानी जाती है। वहां से यह भारत समेत इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका आदि देशों में फैला।
भारत में यह विशेष रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और असम में लगभग 3000 हेक्टेयर में उगाया जाता है।
1. रक्त कैंसर में पत्तियों का उपयोग
2. मधुमेह और स्त्री रोगों में राहत
3. उच्च रक्तचाप नियंत्रित करने में पत्तियों व जड़ों का काढ़ा
4. नाड़ी संस्थान (nervous system) संबंधी विकारों में भी लाभदायक
यह पौधा आमतौर पर गुलाबी या सफेद फूलों वाला होता है, जिसकी पत्तियाँ साधारण होती हैं और शाखाएँ लचीली होती हैं। इसके फूल साल भर खिलते रहते हैं। फल लंबे और बेलनाकार होते हैं, जिनमें काले बीज होते हैं।
ये भी पढ़ें: सूरजमुखी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी
1. गुलाबी-बैंगनी फूल (Roseus) – सबसे अधिक एल्कलॉइड युक्त
2. सफेद फूल (Alba)
3. सफेद फूलों पर गुलाबी धब्बा (Ocilatta)
4. नई किस्में: निर्मल और धवल (CIMAP, लखनऊ द्वारा विकसित) – उच्च जैव द्रव्यमान
पोधो की रोए से पहले खेती में गोबर की खाद: 10–15 टन/हेक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए। इसके आलावा उर्वरकों को डोज़ के हिसाब से डेल जैसे की :
जहां वर्षा सीमित हो, वहाँ 4-5 सिंचाइयों से उत्पादन बढ़ता है। नियमित वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की ज़रूरत नहीं
फसल में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पहली निराई बुवाई के 60 दिन बाद करनी चाहिए और दूसरी निराई 120 दिन बाद करनी चाहिए। मल्चिंग (धान का पुआल या घास बिछाना) से खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है।
पत्तियाँ और तने की कटाई पहली बार 6 महीने बाद करनी चाहिए, दूसरी बार कटाई 9 महीने बाद और तीसरी बार पूरे पौधे की कटाई के साथ छाया में सुखाना ज़रूरी होती हैं।
12 महीने बाद खुदाई करके पौधों को काटकर, जड़ें निकालकर धोकर सुखाना चाहिए।फलियों से 2-3 महीने पहले बीज एकत्र करना चाहिए।