सदाबहार की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird Published on : 26-May-2025
सदाबहार

सदाबहार एक बहुवर्षीय औषधीय और सजावटी पौधा है, जो भारत में अकसर परती और रेतीली भूमि में उगता है। 

इसकी जड़ों में मौजूद इंडोल एल्कलॉइड्स जैसे रॉबसिन (अजमालिसिन)और सर्पेंटिन इसे औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। भारत के कई हिस्सों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। 

सदाबहार की उत्पत्ति और वितरण 

सदाबहार की उत्पत्ति मेडागास्कर मानी जाती है। वहां से यह भारत समेत इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका आदि देशों में फैला। 

भारत में यह विशेष रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और असम में लगभग 3000 हेक्टेयर में उगाया जाता है।

सदाबहार का औषधीय तत्व:

  • सदाबहार में पाए जाने वाले प्रमुख एल्कलॉइड्स — विनब्लास्टिन और विनक्रिस्टिन — कैंसर के इलाज में उपयोगी होते हैं।
  • विनक्रिस्टिन सल्फेट (ONCOVIN नाम से प्रसिद्ध) रक्त कैंसर (एक्यूट ल्यूकेमिया) में प्रयुक्त होता है।
  •  विनब्लास्टिन सल्फेट (VELBE के नाम से जाना जाता है) हॉजकिन्स डिजीज जैसी बीमारियों के उपचार में सहायक होता है।

सदाबहार में एल्कलॉइड की सांद्रता:

  • जड़ों में: 0.75% – 1.20%
  • पत्तियों में: 0.60% – 0.65%

सदाबहार के उपयोग:

1. रक्त कैंसर में पत्तियों का उपयोग

2. मधुमेह और स्त्री रोगों में राहत

3. उच्च रक्तचाप नियंत्रित करने में पत्तियों व जड़ों का काढ़ा

4. नाड़ी संस्थान (nervous system) संबंधी विकारों में भी लाभदायक

पौधे का स्वरूप:

यह पौधा आमतौर पर गुलाबी या सफेद फूलों वाला होता है, जिसकी पत्तियाँ साधारण होती हैं और शाखाएँ लचीली होती हैं। इसके फूल साल भर खिलते रहते हैं। फल लंबे और बेलनाकार होते हैं, जिनमें काले बीज होते हैं।

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सदाबहार की बुवाई के तरीके:

1. सीधी बुवाई:

  • मानसून के दौरान (जून-जुलाई)
  • बीज मात्रा: 2.5 किग्रा/हेक्टेयर
  • बीजों को बालू में मिलाकर पंक्तियों में बोया जाता है। 
  • पंक्ति-दूरी: 30–45 सेमी
  • अंकुरण: 7–8 दिन में

2. नर्सरी और रोपाई:

  • मार्च–अप्रैल में बीजों की क्यारियों में बुवाई
  • दो महीने बाद पौधों को 45x30 सेमी दूरी पर खेत में रोपित किया जाता है। 
  • प्रति हेक्टेयर 74,000 पौधे लगाए जाते हैं। 

3. शाकीय प्रवर्धन:

  • 10–15 सेमी लंबी कोमल शाखाओं की कटिंग
  •  NAA के घोल में भिगोकर 90–96% जड़ बनने की संभावना
  •  उच्च एल्कलॉइड वाले क्लोनों के लिए उपयुक्त

सदाबहार की प्रमुख किस्में:

1. गुलाबी-बैंगनी फूल (Roseus) – सबसे अधिक एल्कलॉइड युक्त

2. सफेद फूल (Alba)

3. सफेद फूलों पर गुलाबी धब्बा (Ocilatta)

4. नई किस्में: निर्मल और धवल (CIMAP, लखनऊ द्वारा विकसित) – उच्च जैव द्रव्यमान

खाद और उर्वरक:

पोधो की रोए से पहले खेती में गोबर की खाद: 10–15 टन/हेक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए। इसके आलावा उर्वरकों को डोज़ के हिसाब से डेल जैसे की :

  • नाइट्रोजन (N): 40 किग्रा (नाइट्रोजन को दो भागों में टॉप ड्रेसिंग करें)
  • फास्फोरस (P₂O₅): 30 किग्रा
  •  पोटाश (K₂O): 30 किग्रा

सिंचाई प्रबंधन:

जहां वर्षा सीमित हो, वहाँ 4-5 सिंचाइयों से उत्पादन बढ़ता है। नियमित वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की ज़रूरत नहीं

खरपतवार नियंत्रण:

फसल में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पहली निराई बुवाई के 60 दिन बाद करनी चाहिए और दूसरी निराई 120 दिन बाद करनी चाहिए। मल्चिंग (धान का पुआल या घास बिछाना) से खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है। 

कटाई और प्रसंस्करण:

पत्तियाँ और तने की कटाई पहली बार 6 महीने बाद करनी चाहिए, दूसरी बार कटाई 9 महीने बाद और तीसरी बार पूरे पौधे की कटाई के साथ छाया में सुखाना ज़रूरी होती हैं। 

12 महीने बाद खुदाई करके पौधों को काटकर, जड़ें निकालकर धोकर सुखाना चाहिए।फलियों से 2-3 महीने पहले बीज एकत्र करना चाहिए।

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