किसान खेती को छोड़ कर रहे भूमि को संरक्षित

By : Tractorbird News Published on : 06-Apr-2025
किसान

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ अधिकांश जनसंख्या का जीवनयापन खेती पर निर्भर करता है। पीढ़ियों से किसान अपनी मेहनत, पसीने और संकल्प से धरती का सीना चीरकर अन्न उपजाते आए हैं। 

लेकिन बदलते समय के साथ कृषि क्षेत्र में नई चुनौतियाँ उभर रही हैं—बाजार में कीमतों की अस्थिरता, उत्पादन लागत में निरंतर वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, सरकारी नीतियों की असंगति और बिचौलियों का शोषण। 

ऐसे में, कई किसान खेती को छोड़कर अन्य आजीविका की ओर रुख कर रहे हैं। कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी भूमि को संरक्षित करने का निर्णय लिया है, बिना खेती किए भी अपनी आर्थिक स्थिति को स्थिर बनाए रखा है, और अपनी जमीन को बचाए रखा है।

खेती छोड़ना एक मजबूरी या दूरदर्शिता?

  • भारत में कृषि के प्रति आकर्षण घटता जा रहा है। कभी जो खेती एक सम्मानजनक व्यवसाय मानी जाती थी, आज घाटे का सौदा बनती जा रही है। किसान मेहनत करता है, लेकिन उसका उचित प्रतिफल नहीं मिलता। 
  • उसे अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता, मौसम की मार से फसल बर्बाद हो जाती है, और बाजार के उतार-चढ़ाव उसे कर्ज के जाल में फंसा देते हैं।
  • ऐसे में, कुछ किसान अपनी जमीन को बचाने और कर्ज में न फंसने के लिए खेती से दूर हो रहे हैं। वे खेतों को खाली छोड़कर या वैकल्पिक उपयोग के लिए संरक्षित रखकर अपनी जमीन को बेचने से बचा रहे हैं। 
  • कुछ किसान इसे एक आर्थिक रणनीति के रूप में अपना रहे हैं, क्योंकि भूमि की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। 
  • वे जानते हैं कि अगर वे घाटे की खेती करते रहे तो उन्हें अंततः अपनी जमीन बेचनी पड़ेगी, जिससे उनकी पीढ़ियों की विरासत समाप्त हो जाएगी।

क्या निष्क्रिय रहना भी एक सक्रिय निर्णय है?

  • यह सोचना गलत होगा कि जो किसान खेती नहीं कर रहे, वे निष्क्रिय हैं। वास्तव में, वे एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ खड़े हैं जो अब उनके हित में नहीं है। 
  • वे उस चक्रव्यूह में नहीं फंसना चाहते जहाँ लगातार मेहनत के बावजूद केवल घाटा ही मिलता है। वे अपनी भूमि को बंजर नहीं होने दे रहे, बल्कि इसे भविष्य के लिए संजो रहे हैं।
  • यह एक प्रकार का मौन विद्रोह है—एक शांत लेकिन प्रभावी संघर्ष, जो किसानों को अत्यधिक वित्तीय संकट में जाने से बचाने का काम कर रहा है। 
  • यह उन किसानों की दूरदर्शिता को दर्शाता है जो जानते हैं कि यदि परिस्थितियाँ उनके अनुकूल नहीं हैं, तो धैर्य रखना ही सबसे अच्छा विकल्प है।

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किसानों की संपत्ति: केवल अनाज नहीं, बल्कि मिट्टी की सुरक्षा भी

भारतीय समाज में भूमि केवल संपत्ति नहीं, बल्कि विरासत मानी जाती है। यह केवल अनाज उगाने की जगह नहीं, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए जीवन का आधार भी है। 

कई किसान यह समझ चुके हैं कि यदि खेती घाटे में जा रही है, तो जमीन को बिना जरूरत बेचना मूर्खता होगी। भूमि का मूल्य बढ़ता जा रहा है, और यदि इसे संरक्षित रखा जाए, तो यह भविष्य में अधिक लाभदायक हो सकती है।

क्या इससे कृषि को नुकसान होगा?

  • कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि अगर किसान खेती छोड़ने लगेंगे, तो भारत में खाद्य उत्पादन कम हो जाएगा और खाद्य सुरक्षा पर संकट आ सकता है। 
  • लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। जब किसान घाटे में खेती करते हैं, तो वे कर्ज में डूब जाते हैं और अंततः उनकी जमीन बिक जाती है। 
  • इससे खेती की तुलना में शहरीकरण अधिक तेजी से बढ़ता है। यदि किसान अपनी भूमि बचाए रखते हैं और समय की अनुकूलता का इंतजार करते हैं, तो वे भविष्य में फिर से खेती करने की स्थिति में होंगे।

निष्कर्ष: धैर्य भी एक निवेश है

जो किसान खेती नहीं कर रहे, वे कोई गलती नहीं कर रहे। वे अपनी भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं और एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ खड़े हैं जो अब उनके लिए लाभकारी नहीं रही। 

यह निर्णय केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाता है कि मूल्य केवल पैसे में नहीं, बल्कि जमीन, विरासत और भविष्य की संभावनाओं में भी होता है।

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