अश्वगंधा की खेती - इस औषधीय फसल की खेती से किसान कमा सकते है लाखों का मुनाफा

By : Tractorbird News Published on : 13-Aug-2024
अश्वगंधा

भारत में आजकल किसान परंपरागत फसलों को छोड़कर नकदी और औषधीय फसलों की खेती करने में रूचि ले रहे हैं । इससे उनकी आय भी बढ़ती है। 

अश्वगंधा की खेती भी आज के दिन किसानों के लिए मुनाफे का सौदा हो सकती है। इसलिए आज हम आपको अश्वगंधा की खेती की पूरी जानकारी दे रहे हैं अगर आप भी इसे करना चाहते हैं तो इस लेख को पूरा पढ़े। 

सितंबर से अक्टूबर तक अश्वगंधा की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य अश्वगंधा की सबसे अधिक खेती करते हैं। 

अश्वगंधा के फल, बीज और छाल से कई दवाइयां बनाई जाती हैं। अश्वगंधा के बीज 7 से 8 दिन में अंकुरित हो सकते हैं। हर दिन अश्वगंधा की मांग बढ़ती जा रही है। 

अश्वगंधा की खेती से कमाई 

  • आपकी जानकारी के लिए बता दे की अश्वगंधा एक बहु वर्षीय फसल है। अश्वगंधा सबसे प्रसिद्ध जड़ी बूटियों में से एक है। 
  • लाइफस्टाइल रोगों में, अश्वगंधा को तनाव और चिंता को दूर करने में सबसे अच्छा माना जाता है। अश्वगंधा के कई उपयोगों के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। 
  • धान, गेहूं और मक्का की खेती से 50 प्रतिशत तक अधिक मुनाफा अश्वगंधा की खेती से मिल सकता है। 
  • यही कारण है कि बिहार और यूपी के किसान भी अश्वगंधा की बड़ी मात्रा में खेती कर रहे हैं।

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खेत के लिए मिट्टी और जलवायु 

  • वैसे तो इसकी खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन बलुई, दोमट और लाल मिट्टी अश्वगंधा की खेती के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती हैं। 
  • 7 से 8 के बीच मिट्टी का पीएच मान रहे तो अश्वगंधा की पैदावार अच्छी हो सकती है। अश्वगंधा तुलनात्मक रूप से गर्म स्थानों पर बोई जाती है। 
  • अश्वगंधा की खेती के लिए 500 से 750 मिलीमीटर वर्षा और 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। 
  • खेत में पौधे की वृद्धि के लिए पर्याप्त नमी रहनी चाहिए। अश्वगंधा की जड़ों को शरद ऋतु में एक से दो बारिश में अच्छा विकास मिलता है।

अश्वगंधा की खेती का समय

  • उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के किसान इसकी खेती सितंबर और अक्टूबर में बारिश कम हो जाती तब करते है। 
  • अश्वगंधा कठोर और सूखा पौधा होता है। यह एक देशी औषधीय पौधा है जो उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत में उगाया जाता है। 
  • इसे भारतीय जिनसेंग, जहर आंवला, या शीतकालीन चेरी भी कहते हैं। 
  • भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों, जैसे आयुर्वेद और यूनानी, अश्वगंधा की जड़ों का उपयोग करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण प्राचीन पौधा है।
  • अश्वगंधा की खेती के लिए 10 से 12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के लिए आवश्यक है। बीज का अंकुरण आमतौर पर 7 से 8 दिन में होता है। 
  • अश्वगंधा की बुवाई दो प्रकार से होती है। पहला तरीका है कतार विधि। इसमें पौधों से 5 सेंटीमीटर और लाइन से 20 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। 
  • दूसरी प्रक्रिया में छिड़काव विधि से अश्वगंधा अच्छी तरह से होती है। हल्की जुताई कर खेत में बीज डाला जाता है। 1 मीटर में चालिस पौधे लगे होने आवश्यक हैं। 
  • जनवरी से मार्च तक अश्वगंधा की कटाई होती है। जड़ को छोटे टुकड़े में काटकर सुखाकर रखा जाता है। 

अश्वगंधा की कटाई कब करें ?

सूखे पत्ते और लाल-नारंगी जामुन फसल और परिपक्वता का संकेत देते हैं। अश्वगंधा की फसल कटाई के लिए 160 से 180 दिन बाद तैयार हो जाती है। 

कटाई के बाद पूरे पौधे को सुखाकर 8 से 10 सेमी के छोटे टुकड़ों में काट दिया जाना चाहिए।

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