ईसबगोल की खेती - फसल का अच्छा उत्पादन कैसे प्राप्त कर सकते है किसान ?
By : Tractorbird News Published on : 09-Aug-2024
भारत में ईसबगोल एक बहुत महत्वपूर्ण औषधीय फसल है। भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पे की जाती है। यह औषधीय फसलों के निर्यात में पहले स्थान पर है।
वर्तमान में हमारे देश से 120 करोड़ रुपये का ईसबगोल निर्यात हो रहा है। अमेरिका विश्व में ईसबगोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
ईरान, ईराक, अरब अमीरात, भारत और फिलीपीन्स इसका सबसे बड़ा उत्पादक हैं। ईसबगोल उत्पादन और क्षेत्रफल में भारत प्रथम स्थान पर है।
भारत में इसका उत्पादन मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में लगभग 50 हजार हेक्टर में होता है।
मुख्य रूप से नीमच, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन और शाजापुर जिले हैं।
ईसबगोल का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है ?
- ईसबगोल का औषधीय उपयोग बढ़ने से दुनिया भर में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
- ईसबगोल की भूसी, बीज पर पाए जाने वाले औषधीय उत्पाद है। भूसी:बीज अनुपात 25:75 है। इसकी भूसी में अधिक पानी सोखने की क्षमता है।
- इसलिए इसका उपयोग कब्जीयत, दस्त, आव पेचिस, अल्सर, बवासीर और पेट की सफाई में आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जाता है।
- आइसक्रीम रंग रोगन, प्रिंटिंग आदि क्षेत्रों में भी इसका उपयोग होता है।इसकी मांग और उपयोगिता को देखते हुए इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से होनी चाहिए।
ईसबगोल की खेती के लिए जलवायु
- ईसबगोल की खेती ठंडी और शुष्क जलवायु में की जाती है। फसल पकने के समय ओस और बारिश से बहुत नुकसान होता है, जिससे कभी-कभी फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।
- इसे अधिक नमी और आर्द्र जलवायु में नहीं उगाना चाहिए।
- अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान और फसल की परिपक्वता के लिए 30-35 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त हैं।
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बुवाई के लिए भूमि की तैयारी
- इस फसल के लिए बलुई दोमट या अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी आदर्श होती है, और भूमि का pH 7-8 होना चाहिए।
- मिट्टी को भुरभुरा और समतल बनाने के लिए पाटा चलाकर दो बार आड़ी-खड़ी जुताई और एक बार सुहागा चलाना चाहिए।
- क्यारियों की लंबाई खेत की ढलान और सिंचाई की सुविधानुसार होनी चाहिए।
- क्यारियों की चौड़ाई 3 मीटर से अधिक और लंबाई 8 से 12 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- खेत में जल निकास सही होना चाहिए, क्योंकि पानी की कमी ईसबगोल के पौधे के लिए हानिकारक है।
ईसबगोल की मुख्य किस्में
फसल के अच्छे उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों का चयन महत्वपूर्ण होता है। अच्छी किस्मों का उपयोग करके ही उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है।
इसलिए बुवाई से पहले अच्छी किस्मों का चयन आवश्यक है। ईसबगोल की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं:
1. आरआई 89
यह एक उन्नत किस्म है जो शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए अनुकूल है। यह किस्म 110-115 दिनों में पक जाती है और 12-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
यह बीमारियों और कीटों के प्रति कम संवेदनशील होती है।
2. आरआई 1
यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है और औसतन 12-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसकी भूसी उच्च गुणवत्ता वाली होती है और यह तुलासिता रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी होती है।
3. आरआई 2
यह किस्म 130-135 दिनों में पक जाती है और 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। यह किस्म तुलासिता रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती है।
4. गुजरात ईसबगोल 2
यह किस्म 1983 में अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, आणंद, गुजरात द्वारा विकसित की गई थी। इसका उत्पादन 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
5. हरियाणा ईसबगोल 5
यह किस्म 1989 में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना के तहत विकसित की गई थी।
इसका उत्पादन 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
बुवाई का समय और बीज की मात्रा?
- ईसबगोल की जल्दी बुवाई से फसल की वानस्पतिक वृद्धि बढ़ जाती है, जिससे फसल आड़ी पड़ जाती है और मदुरोमिल आसिता रोग का प्रकोप बढ़ जाता है।
- देर से बुवाई करने पर प्रकोप का वानस्पतिक विकास कम होता है, लेकिन मानसून पूर्व की वर्षा से बीज झड़ने का खतरा रहता है।
- इसलिए, किसानों के लिए अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के दूसरे सप्ताह तक ईसबगोल की बुवाई करना सबसे उपयुक्त समय होता है। दिसंबर में बुवाई करने पर उपज बहुत कम हो जाती है।
- बुवाई के लिए 4 किग्रा/हेक्टेयर रोगमुक्त बड़े आकार के बीज का उपयोग करने से फसल का अच्छा उत्पादन मिल सकता है।
- बीज दर अधिक होने पर मदुरोमिल आसिता कवक का प्रकोप बढ़ता है, जो उत्पादन को प्रभावित करता है।
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बुवाई की विधि
- ईसबगोल की छिटकाव विधि किसानों में सामान्य है, लेकिन इससे अंतःसस्य क्रियाएं करना मुश्किल हो जाता है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
- किसानों को ईसबगोल की बुवाई कतारों में करनी चाहिए, जहां कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 5 सेमी होनी चाहिए।
- वांछित बीज दर का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, बुवाई करते समय बीज में महीन बालू रेत या छनी हुई गोबर की खाद मिलाकर बुवाई करें। बीज की गहराई 2-3 सेमी होनी चाहिए।
- बीज को बहुत गहरा नहीं बोना चाहिए। छिटकाव विधि से बुवाई करते समय मिट्टी को बहुत गहरा नहीं करना चाहिए।
खाद और उर्वरक कितनी डालें ?
- 15-20 टन अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टर डालें, ताकि ईसबगोल का अधिक उत्पादन हो सके।
- बुवाई के दौरान प्रति हेक्टर 10-15 किलो नाइट्रोजन , 40 किलो सल्फर और 20 किलो पोटाश डालें।
- बुवाई के चालिस दिन बाद 10-15 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टर छिटकाव करें।
फसल में सिंचाई प्रबंधन
- बुवाई के तुरंत बाद धीमी गति से हल्की सिंचाई करें, इससे अच्छा अंकुरण होगा।
- अंकुरण कमजोर होने पर पांच से छह दिन बाद दूसरी सिंचाई दें।
- इसके बाद 30 दिन बाद पहली सिंचाई और 70 दिन बाद दूसरी सिंचाई करें। फूल और दाना भरने के दौरान सिंचाई नहीं करें।
- दो से अधिक सिंचाई देने पर इनमें रोगों का प्रकोप बढ़ता है और उपज कम होती है। बाली/पुश्पक्रम आने के बाद स्प्रिकंलर से सिचाई नहीं करें।
फसल की कटाई और उपज
- ईसबगोल की फसल 110 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जब फसल पक जाती है, पौधों की ऊपरी पत्तियां पीली हो जाती हैं और नीचे की पत्तियां सूख जाती हैं।
- दाने हथेली में मसलकर आसानी से निकल जाते हैं। इस समय फसल कटाई करें। सुबह कटाई करने से झड़ने की समस्या से बच सकते हैं।
- फसल कटाई देर से न करें, अन्यथा दाने झड़ने से उपज कम हो जाएगी। मावठा आने पर फसल कटाई दो से तीन दिन पहले कर दें।
ईसबगोल की अधिक उपज कैसे प्राप्त करें ?
- फसल की 1 समय पर बुवाई करें ।
- बीज की गहराई 2-3 सेमी से ज्यादा न रखें।
- फसल को बीमारियों से बचने के लिए 3 बीजोपचार अवश्य करें ।
- पौधों की छनाई 20 - 25 दिन बाद अवश्य करें।
- खरपतवार नियंत्रण समय पर करें ।
- कटाई उपयुक्त अवस्था में करें ।