वर्तमान में देश में जीएम सरसों (जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों) की व्यवसायिक खेती पर चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने इसकी व्यवसायिक खेती को मंजूरी देने के बाद से इस पर चर्चा की है।
हाल ही में सुप्रिम कोर्ट में भी इस पर बहस हुई। लेकिन जीएम सरसों क्या है और इसके लाभ क्या हैं, यह जानना महत्वपूर्ण है। दरअसल, पिछले साल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की बायोटेक नियामक जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी ने जीएम सरसों की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दी, जो इस बहस का कारण बन गया।
कमीटी के निर्णय का विरोध करने के लिए कई किसान समूहों, एनजीओ और पर्यावरण संगठनों ने आवाज उठाई। विरोधी संगठनों का कहना है कि भारत में जीएम सरसों की खेती को नुकसान पहुंचेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी और किसानों को काफी लाभ मिलेगा। इसकी खेती कई देशों में सफलतापूर्वक की जा रही है।
जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों (जीएम सरसों) दो अलग-अलग पौधों की किस्मों को मिलाकर बनाया गया है। इसका अर्थ है कि यह लैब-तैयार हाइब्रिड वेरायटी है। इसका उत्पादन अधिक रहता है और रोग लगने का खतरा कम है।
ऐसी क्रॉसिंग से मिलने वाली फर्स्ट जेनरेशन हाइब्रिड वेरायटी की उपज मूल किस्मों की तुलना में अधिक होने की संभावना अधिक है। सरसों के साथ ऐसा करना कठिन था। इसकी वजह यह है कि इसके फूलों में दोनों प्रजनक ऑर्गन होते हैं।
यानी सरसों का पौधा खुद ही पोलिनेशन कर लेता है। किसी अन्य पौधे से परागण की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे में कपास, मक्का या टमाटर की तरह सरसों की हाइब्रिड किस्म तैयार करने का चांस काफी कम हो जाता है।