किसानों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत स्प्रिंकलर और ड्रिप स्प्रिंकलर खरीदने पर भारी छूट मिल रही है, जो जल को बचाता है और फसलों को अधिक उत्पादन देता है। इस प्रक्रिया से सिंचाई करने पर किसानों की लागत कम होती है और उच्च उत्पादन भी मिलता है।
इसके लिए किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान भी मिलता है। पानी की कमी को दूर करने के लिए जल-कुशल सिंचाई उपायों की आवश्यकता होती है। इसमें ड्रिप सिंचाई व्यवस्था महत्वपूर्ण है। गेहूं उत्पादन और जल संरक्षण में इसका उपयोग किया जाता है।
भूजल खेती में सबसे अधिक खर्च होता है। इसलिए सरकार किसानों को जागरूक करके पानी बचाना चाहती है। पानी बचाने और "प्रति बूंद अधिक फसल" के सिद्धांत को साकार करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली आवश्यक है।
ड्रिप सिंचाई, खासकर बागवानी फसलों में, बहुत प्रभावी होती है। गेहूं की खेती में ड्रिप सिंचाई भी सफल रही है। प्लास्टिक मल्च और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करके पारंपरिक खेती प्रणाली की तुलना में गेहूं और चावल में 33 प्रतिशत और 23 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है।
पोर्टेबल, मिनी और माइक्रो स्प्रिंकलर सिंचाई के लिए नवीनतम उपकरण और तकनीक हैं। इस तकनीक से सिंचाई ऐसे की जाती है जैसे बरसात हो रही है। यह देश में फव्वारा सिंचाई भी कहलाता है।
पाइपों के माध्यम से पानी को ट्यूबवेल, टंकी या तालाब से खेत तक ले जाया जाता है, फिर उन पाइपों पर नोजल फिट की जाती है। पानी इन नोजल से फसल पर गिरता है, जैसे बरसात हो रही हो। वहीं, शेडनेट हाउस और लीची की पॉली हाउस को माइक्रो स्प्रिंकलर तकनीक से सिंचाई करनी चाहिए।
दलहन और तिलहन फसलों के साथ-साथ चाय, आलू, धान, गेहूं और सब्जी भी मिनी स्प्रिंकलर से सिंचाई करनी चाहिए। यह बूंद-बूंद सिंचाई या टपक सिंचाई भी कहलाता है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली सबसे आधुनिक है। इस प्रक्रिया में पानी की बहुत बचत होती है। इस प्रक्रिया में पौधों की जड़ों में पानी बूंद-बूंद करके लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी बर्बाद नहीं होता।