जौ की खेती कैसे की जाती है?

By : Tractorbird News Published on : 06-Nov-2023
जौ

जौ एक रबी की फसल है इसे ठंडी जलवायु में उगाया जाता है। विश्व के ज्यादातर भागों में जौ की खेती की जाती है | भारत, कनाडा, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका,चीन, रूस, टर्की, पोलैण्ड, डेनमार्क, ग्रेट ब्रिटेन, जापान, रुमानिया, हंगरी, अर्जेंटीना, मोरक्को, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ऐसे देश है, जहां पर जौ को विस्तृत रूप से उगाया जाता है | चीन में जौ का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है, और भारत को विश्व में छठवां स्थान प्राप्त है। 

भारत के कई राज्यों में जौ की खेती की जाती है, जिसमें से उत्तर प्रदेश राज्य में सबसे ज्यादा जौ का उत्पादन होता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और बिहार राज्य में भी जौ का उत्पादन काफी अच्छा हो जाता है। भारत के जौ उत्पादन का 42 % भाग उत्तर प्रदेश राज्य में ही उत्पादित किया जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद, जौनपुर, आजमगढ़ और गोरखपुर जिला जौ की खेती के लिए काफी अच्छे स्थान माने जाते हैं। 

जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

जौ एक रबी फसल है इसे ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर जौ की खेती सफलतापूवर्क की जा सकती है | जौ की खेती के लिए ठंडी व नम जलवायु को सबसे अच्छा माना जाता है | उन सभी क्षेत्रों में जहां पर 4 माह तक ठंडा मौसम रहता है, वहां जौ की खेती कर सकते हैं। जौ के पौधों के लिए न्यूनतम 35-40°F तापमान तथा अधिकतम 72-86°F तापमान उपयुक्त होता है | 

जिन क्षेत्रों में वार्षिक औसतन वर्षा 70 से 100 CM होती है | वहां पर जौ की खेती आसानी से कर सकते हैं | इसके अलावा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी जौ की खेती की जा सकती है। किन्तु अधिक वर्षा से जलभराव होने वाले क्षेत्रों में जौ की खेती बिल्कुल न करें। 

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जौ की खेती के लिए जल निकासी

जौ की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि उपयुक्त होती है | भारी भूमि जिसमें से जल की निकासी नही हो पाती है, ऐसी भूमि में जौ की खेती बिल्कुल न करें | जौ की खेती के लिए ऊँची व रेतीली भूमि उपयुक्त रहती है | ऊसर भूमि में भी जौ की फसल उगाई जा सकती है |

जौ की फसल के लिए गेहूं के मुकाबले खेत को कम तैयार करने की जरूरत होती है। इसके लिए बस आपको एक जुताई मिट्टी पलटने के लिए और दो से तीन जुताई देशी हल या हैरो लगाकर करनी होती है । खेती में मौजूद ढेलो को तोड़ने और भूमि में नमी को सुरक्षित रखने के लिए पाटा लगाना जरूरी होता है | भारी मृदा भूमि वाले क्षेत्रों में पहली जुताई में बक्खर का प्रयोग करते हैं। 

जौ की खेती में बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है | सीड ड्रिल विधि द्वारा बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर के खेत में 75 KG जौ के बीजो की जरूरत होती है, तथा छिड़काव विधि में प्रति हेक्टेयर 100 KG बीजों की जरूरत होती है | इसके अलावा डिबलर विधि में सिर्फ 25-30 KG बीज ही प्रति हेक्टेयर के क्षेत्रफल में उपयुक्त होते हैं। 

बीजों की बुवाई से पहले उन्हें कैप्टान (250 GM कैप्टान 100 KG बीज) से उपचारित करके ही बोना चाहिए | असिंचित जगहों पर पछेती बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 KG बीज लगते हैं, तथा ऐसे स्थान पर बीजो को पानी में भिगोकर बोए ताकि बीज अंकुरण अच्छे से व जल्दी हो सके |

  • छिड़काव विधि द्वारा :- इस विधि में जौ के बीजों को खेत में छिड़क देते हैं, और फिर बीजों को मिट्टी से ढकने के लिए जुताई की जाती है | यह बीज बुवाई की उत्तम विधि नहीं है, किन्तु भारत में इस विधि को सबसे अधिक अपनाया जाता है | इस विधि में बीजों की मात्रा अधिक लगती है |
  • कुंड द्वारा बुवाई :- इस विधि में बुवाई से पहले हल की सहायता से कुंड तैयार किया जाता है, और हल के पीछे लगे कुंड में हाथ से बीजों को डाला जाता है | इस विधि में बीज पंक्ति में और समान गहराई में पड़ता है | इस विधि में थोड़े कम बीज लगते हैं |
  • सीडड्रिल द्वारा बुवाई :- इस विधि को बुवाई के लिए सबसे उत्तम कहा गया है | इसमें ट्रैक्टर या बैलों द्वारा सीडड्रिल चलाकर बीजों की बुवाई की जाती है। इसमें पंक्ति से पंक्ति और पौध से पौध के बीच की दूरी एक सामान रहती है, तथा बुवाई में भी कम समय लगता है |
  • डिबिलर विधि :- इस विधि में बीज कम लगते हैं, लेकिन मेहनत अधिक लगती है | यदि बीजों की मात्रा कम हो तो इस विधि को अपनाया जाता है |

अगर जौ की फसल सिंचित जगह पर की गई है, तो खाद अधिक मात्रा में लगती है, तथा असिंचित जगह पर कम खाद लगती है | जौ की बुवाई करते समय पोटाश व फास्फोरस की पूरी व नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बुवाई करते समय 8-10 CM की गहराई पर कुंड में देना होता है |

असिंचित जगह पर फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन तीनों की पूरी मात्रा को एक साथ खेत में बुवाई से पहले कुंड में डालें | माल्ट बनाने में जौ में अगर नाइट्रोजन की मात्रा अधिक दी जाएं तो अनाज का दाना भी अधिक प्रोटीन वाला होता है, जिससे माल्ट की गुणवत्ता में गिरावट होती है |

जौ की फसल कम समय में तैयार हो जाती है | इसकी फसल की बुवाई नवंबर में की जाती है, तथा मार्च के अंतिम सप्ताह तक फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है | फसल पक जाने पर उसकी कटाई तुरंत कर लें, अन्यथा फसल के दाने खेत में गिरने लगते हैं। एक हेक्टेयर के खेत से 30-35 क्विंटल दाना व इतना ही भूसा भी मिल जाता है | इस तरह से किसान भाई जौ की फसल से काफी अच्छी कमाई कर लेते हैं। 


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