बड़ी इलायची, जो ज़िंगिबेरेसी (Zingiberaceae) कुल का हिस्सा है, भारत में विशेष रूप से सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र की एक प्रमुख नकदी फसल है।
यह मसाला न केवल भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हाल के वर्षों में इसकी खेती नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भी शुरू हुई है।
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साल में दो बार गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना फायदेमंद है। वर्मीकम्पोस्ट विशेष रूप से नर्सरी के लिए उपयोगी है।
सिंचाई की नियमित व्यवस्था खासकर शुष्क मौसम में जरूरी होती है। स्प्रिंकलर, पाइप या जल-संचयन गड्ढों का प्रयोग कर जल प्रबंधन किया जा सकता है।
बड़ी इलायची को लगभग 50% छाया की आवश्यकता होती है। मानसून से पहले छायादार पेड़ों की छंटाई कर संतुलन बनाए रखना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण के लिए वर्ष में कम से कम तीन बार निराई की जाती है, और जैविक मल्च का प्रयोग नमी संरक्षण एवं मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में सहायक होता है।
- रोग नियंत्रण के लिए प्रमाणित एवं रोगमुक्त पौध सामग्री का चयन करें।
- छाया वृक्ष जैसे एल्बिजिया या ट्यूनबर्गिया की योजना बनाएं।
- फसल चक्र में परिवर्तन कर भूमि की उपज क्षमता बनाए रखें।
- जैविक खेती के तत्व जैसे नीम खली, जीवामृत, गोमूत्र का प्रयोग रोग और कीट नियंत्रण में सहायक होता है।
बड़ी इलायची की खेती में यदि वैज्ञानिक विधियों और उचित प्रबंधन तकनीकों का पालन किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय किसानों की आय का एक मजबूत स्रोत बन सकती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी पहचान कायम रख सकती है।