बड़ी इलायची की खेती कैसे करें ?

By : Tractorbird News Published on : 16-Apr-2025
बड़ी

बड़ी इलायची, जो ज़िंगिबेरेसी (Zingiberaceae) कुल का हिस्सा है, भारत में विशेष रूप से सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र की एक प्रमुख नकदी फसल है। 

यह मसाला न केवल भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हाल के वर्षों में इसकी खेती नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भी शुरू हुई है।

जलवायु की आवश्यकताएं

  • यह छायाप्रेमी फसल नम उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपती है और 6°C से 30°C तक तापमान को सहन कर सकती है। 
  • इसके लिए 2000 से 3500 मिमी तक की वार्षिक वर्षा आवश्यक होती है। यह पौधा ऊँचाई वाले और आर्द्र क्षेत्रों में बेहतर परिणाम देता है। 
  • फूलों के समय अधिक वर्षा परागण प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है।

मिट्टी की उपयुक्तता

  • बड़ी इलायची की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली, अम्लीय (pH 5.0-5.5), जैविक कार्बन युक्त दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। 
  • मिट्टी में नाइट्रोजन की उच्च मात्रा और मध्यम फॉस्फोरस एवं पोटैशियम स्तर इसकी उत्पादकता को बढ़ावा देते हैं। 

प्रमुख किस्में

  • बड़ी इलायची की प्रमुख किस्मों में रैम्से, रामला, सॉनी, वारलांगेय, सेरेमना और ड्जोंगू गोल्से शामिल हैं। 
  • इन किस्मों को विभिन्न ऊँचाइयों और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार चुना जाता है। उदाहरणस्वरूप, रैम्से और वारलांगेय उच्च ऊँचाई के लिए उपयुक्त हैं, जबकि सेरेमना कम ऊँचाई पर अच्छी होती है।

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खेत की तैयारी और रोपाई

  • भूमि की सफाई के बाद 30x30x30 सेमी के गड्ढे 1.5 से 1.8 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं। इन्हें जैविक खाद से भरने के बाद 15 दिन खुला छोड़ा जाता है। 
  • रोपाई का आदर्श समय जून-जुलाई है, जब मिट्टी में नमी पर्याप्त होती है। सकर (rhizome) या बीज से पौध तैयार की जाती है, हालांकि सकर से प्राप्त पौधे अधिक गुणवत्तापूर्ण और समान गुणों वाले होते हैं।

पोषण और सिंचाई प्रबंधन

साल में दो बार गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना फायदेमंद है। वर्मीकम्पोस्ट विशेष रूप से नर्सरी के लिए उपयोगी है। 

सिंचाई की नियमित व्यवस्था खासकर शुष्क मौसम में जरूरी होती है। स्प्रिंकलर, पाइप या जल-संचयन गड्ढों का प्रयोग कर जल प्रबंधन किया जा सकता है।

छाया और खरपतवार नियंत्रण

बड़ी इलायची को लगभग 50% छाया की आवश्यकता होती है। मानसून से पहले छायादार पेड़ों की छंटाई कर संतुलन बनाए रखना चाहिए। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए वर्ष में कम से कम तीन बार निराई की जाती है, और जैविक मल्च का प्रयोग नमी संरक्षण एवं मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में सहायक होता है।

अतिरिक्त सुझाव

- रोग नियंत्रण के लिए प्रमाणित एवं रोगमुक्त पौध सामग्री का चयन करें।

- छाया वृक्ष जैसे एल्बिजिया या ट्यूनबर्गिया की योजना बनाएं।

- फसल चक्र में परिवर्तन कर भूमि की उपज क्षमता बनाए रखें।

- जैविक खेती के तत्व जैसे नीम खली, जीवामृत, गोमूत्र का प्रयोग रोग और कीट नियंत्रण में सहायक होता है।

बड़ी इलायची की खेती में यदि वैज्ञानिक विधियों और उचित प्रबंधन तकनीकों का पालन किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय किसानों की आय का एक मजबूत स्रोत बन सकती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी पहचान कायम रख सकती है।

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