मोती की मांग आज स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक काफी बढ़ गई है। साधारण मोती से लेकर डिजाइनर मोती तक की डिमांड को देखते हुए अब किसान भी मोती की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के कारण किसान बड़े पैमाने पर मोती उत्पादन कर रहे हैं। बिहार के नालंदा जिले की मधु पटेल पिछले चार वर्षों से डिजाइनर मोती की खेती कर रही हैं।
उनका कहना है कि पुरुष और महिला, दोनों किसान आसानी से इस व्यवसाय को अपना सकते हैं।
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- एंटीबायोटिक प्रक्रिया के दौरान अगर किसी सीप का मुंह खुला रह जाए तो उसे हटा देना चाहिए।
- एक सीप में दो से अधिक डिजाइनर न्यूक्लीयस नहीं डालने चाहिए, जबकि गोल न्यूक्लीयस चार तक डाले जा सकते हैं।
- एक सीप के लिए 3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और टैंक खेती में 20-25 लीटर पानी की जरूरत होती है।
- मछली पालन के साथ मोती की खेती करने से लागत कम आती है, क्योंकि मछली के चारे से सीप भी अपना भोजन ले लेता है।
- एक सीप पर 60 से 70 रुपये का खर्च आता है, जबकि एक मोती बाजार में 500 से 2000 रुपये या उससे अधिक में बिक सकता है।
- तालाब या टैंक में समय-समय पर पानी बदलना जरूरी होता है, खासकर जब पानी गंदा दिखे तो 40% पानी निकालकर नया पानी डालना चाहिए।
मधु पटेल के अनुसार, अच्छी गुणवत्ता वाले मोती के लिए बेहतर सीप जरूरी है।
सीप खरीदते समय उसकी लंबाई कम से कम 6 सेंटीमीटर होनी चाहिए, उसका ऊपरी हिस्सा इंद्रधनुषी चमक वाला होना चाहिए, और वजन 35 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। एक अच्छा सीप 4 से 10 रुपये के बीच मिल जाता है।
मोती की खेती के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (CIFA), भुवनेश्वर से प्रशिक्षण लिया जा सकता है।
इसके क्षेत्रीय केंद्र भटिंडा, बेंगलुरु और विजयवाड़ा में भी प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध हैं। खेती से ज्यादा जरूरी सही तरीके से सीपों का रखरखाव करना है।