भारत में मोती की खेती कैसे होती है ?

By : Tractorbird Published on : 29-Apr-2025
भारत

मोती की मांग आज स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक काफी बढ़ गई है। साधारण मोती से लेकर डिजाइनर मोती तक की डिमांड को देखते हुए अब किसान भी मोती की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। 

कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के कारण किसान बड़े पैमाने पर मोती उत्पादन कर रहे हैं। बिहार के नालंदा जिले की मधु पटेल पिछले चार वर्षों से डिजाइनर मोती की खेती कर रही हैं। 

उनका कहना है कि पुरुष और महिला, दोनों किसान आसानी से इस व्यवसाय को अपना सकते हैं।

तालाब और टैंक में हो रही है डिजाइनर मोती की खेती

  • पहले मोती को समुद्र से प्राप्त करने की धारणा थी, लेकिन अब तालाब और टैंक में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा रही है। 
  • डिजाइनर मोती प्राकृतिक तरीके से तैयार किए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए किसानों को किसी अच्छे संस्थान से प्रशिक्षण लेना जरूरी है। 
  • मोती एक्वाकल्चर के तहत आता है। एक सीप में मोती बनने में करीब डेढ़ साल का समय लगता है, जबकि कुछ डिजाइनर मोती को तैयार होने में दो से ढाई साल भी लग सकते हैं।

डिजाइनर मोती और न्यूक्लीयस का महत्व

  • मधु पटेल के अनुसार, विभिन्न प्रकार के डिजाइनर मोती बनाने के लिए पहले उनके आकार के अनुसार न्यूक्लीयस तैयार किया जाता है। 
  • इसके लिए बेकार सीपों के पाउडर और एरलडाइट (गोंद) का मिश्रण बनाकर अलग-अलग डिजाइनों की डाई में ढाला जाता है। 
  • न्यूक्लीयस तैयार करने की लागत 1 से 2 रुपये आती है, जबकि बाजार में इसकी कीमत 3 से 6 रुपये तक होती है। न्यूक्लीयस को सीप में डाला जाता है, जिससे वह धीरे-धीरे मोती बनता है। 
  • अक्षर जैसे विशेष डिजाइन के न्यूक्लीयस पुराने सीपों से काटकर निकाले जाते हैं, जो खरीदने पर 40 रुपये तक में मिलते हैं।

मोती की खेती की प्रक्रिया

  • मधु पटेल बताती हैं कि अच्छे सीप से खेती शुरू होती है। सीपों को लाने के 1-2 दिन बाद उनकी सर्जरी की जाती है, जिसमें 2-3 मिमी तक खोलकर न्यूक्लीयस डाला जाता है। 
  • फिर इन सीपों को एक सप्ताह के लिए टैंक में एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट के लिए रखा जाता है। इसके बाद नायलॉन बैग में रखकर बांस या पाइप के सहारे तालाब में डुबो दिया जाता है। 
  • मोती बनने में 15 से 20 महीने का समय लगता है और अच्छी गुणवत्ता के मोती के लिए 2 से ढाई साल तक का समय भी लग सकता है। 

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खेती के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

- एंटीबायोटिक प्रक्रिया के दौरान अगर किसी सीप का मुंह खुला रह जाए तो उसे हटा देना चाहिए।

- एक सीप में दो से अधिक डिजाइनर न्यूक्लीयस नहीं डालने चाहिए, जबकि गोल न्यूक्लीयस चार तक डाले जा सकते हैं।

- एक सीप के लिए 3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और टैंक खेती में 20-25 लीटर पानी की जरूरत होती है।

- मछली पालन के साथ मोती की खेती करने से लागत कम आती है, क्योंकि मछली के चारे से सीप भी अपना भोजन ले लेता है।

- एक सीप पर 60 से 70 रुपये का खर्च आता है, जबकि एक मोती बाजार में 500 से 2000 रुपये या उससे अधिक में बिक सकता है।

- तालाब या टैंक में समय-समय पर पानी बदलना जरूरी होता है, खासकर जब पानी गंदा दिखे तो 40% पानी निकालकर नया पानी डालना चाहिए।

अच्छे सीप की पहचान कैसे करें?

मधु पटेल के अनुसार, अच्छी गुणवत्ता वाले मोती के लिए बेहतर सीप जरूरी है। 

सीप खरीदते समय उसकी लंबाई कम से कम 6 सेंटीमीटर होनी चाहिए, उसका ऊपरी हिस्सा इंद्रधनुषी चमक वाला होना चाहिए, और वजन 35 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। एक अच्छा सीप 4 से 10 रुपये के बीच मिल जाता है।

मोती की खेती का प्रशिक्षण कहां से लें?

मोती की खेती के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (CIFA), भुवनेश्वर से प्रशिक्षण लिया जा सकता है। 

इसके क्षेत्रीय केंद्र भटिंडा, बेंगलुरु और विजयवाड़ा में भी प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध हैं। खेती से ज्यादा जरूरी सही तरीके से सीपों का रखरखाव करना है।

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