Dragon Fruit Cultivation - ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे करें? जानिए सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 23-Aug-2024
Dragon

ड्रैगन फ्रूट की खेती हाल के वर्षों में भारत में तेजी से लोकप्रिय हुई है। यह फल न केवल पौष्टिक होता है बल्कि इसका वाणिज्यिक मूल्य भी बहुत अधिक है। 

इसमें एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, और फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। ड्रैगन फ्रूट, जिसे पिटाया या पिताहाया के नाम से भी जाना जाता है, कैक्टस परिवार का एक फल है। 

इसका मूल स्थान मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका माना जाता है, लेकिन वर्तमान में यह एशियाई देशों में भी बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है। भारत में, इसके बढ़ते मांग को देखते हुए किसानों ने इसकी खेती शुरू की है। 

ड्रैगन फ्रूट की खेती कब की जाती है?

  • ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। यह पौधा गर्म और शुष्क मौसम में अच्छा पनप्ता है। 
  • तापमान 20°C से 30°C के बीच होना चाहिए। यह पौधा हल्की ठंडक को सहन कर सकता है, लेकिन पाला इसके लिए नुकसानदायक है। 
  • इसके लिए दिन में 6 से 8 घंटे की धूप आवश्यक होती है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे करें?

  • ड्रैगन फ्रूट, अपने अनोखे स्वाद और स्वास्थ्य लाभों के कारण दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहा है। आइए ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं:
    • ड्रैगन फ्रूट के लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। 
    • चूंकि यह एक कैक्टस पौधा है, इसलिए इसे पानी के जमाव से बचाना जरूरी है, जिससे जड़ सड़ने का खतरा होता है। 
    • इसकी जड़ों को ऑक्सीजन की अच्छी मात्रा में आवश्यकता होती है, इसलिए मिट्टी हल्की और सुसंगठित होनी चाहिए।
    • भूमि की तैयारी के दौरान खेत को गहरी जुताई करके खरपतवार और कंकड़-पत्थर को हटा देना चाहिए। 
    • ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए भूमि को अच्छी तरह समतल करना चाहिए। 
    • उन्नत किस्मों की खेती के लिए ट्रीलिस सिस्टम (खंभे और तारों का सहारा) की आवश्यकता होती है, क्योंकि पौधा बेल की तरह बढ़ता है और इसके लिए सहारे की जरूरत होती है। 
    • खंभे आमतौर पर सीमेंट या बांस के बनाए जाते हैं। 

    ड्रैगन फ्रूट की उन्नत किस्में

    ड्रैगन फ्रूट की तीन प्रमुख किस्में होती हैं:

    1. हाइलोसेरियस उंडाटस (Hylocereus undatus) : इसमें सफेद गूदा और गुलाबी छिलका होता है।

    2. हाइलोसेरियस कोस्टारिसेंसिस (Hylocereus costaricensis) : इसमें लाल गूदा और गुलाबी छिलका होता है।

    3. हाइलोसेरियस मेगालान्थस (Hylocereus megalanthus): इसमें सफेद गूदा और पीला छिलका होता है।

    किसानों को अपनी जलवायु और बाजार मांग के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिए। हाइलोसेरियस उंडाटस सबसे सामान्य किस्म है, जो आमतौर पर भारत में उगाई जाती है।

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    बुवाई के लिए बीज

    • ड्रैगन फ्रूट के पौधे को बीज से भी उगाया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया अधिक समय लेती है। 
    • अधिकतर किसान इसके लिए कटिंग विधि का उपयोग करते हैं। कटिंग से उगाए गए पौधे 12 से 18 महीनों में फल देने लगते हैं, जबकि बीज से उगाए गए पौधों को फल देने में 5 से 6 साल का समय लग सकता है। 
    • बीज से उगाने के लिए ताजे फलों से बीज निकालकर सुखाकर मिट्टी में बुवाई की जाती है।

    ड्रैगन फ्रूट के रोपण की विधि

    • ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए कटिंग विधि को सबसे प्रभावी माना जाता है। कटिंग के लिए एक स्वस्थ और परिपक्व पौधे की शाखाओं का चयन किया जाता है। 
    • कटिंग को 20-25 सेमी लंबा काटकर इसे कुछ दिनों तक छाया में सुखाया जाता है। इसके बाद इसे तैयार मिट्टी में लगाया जाता है। 
    • कटिंग को सीधे भूमि में लगाने के बजाय पॉलीबैग में भी तैयार किया जा सकता है और फिर 1-2 महीने बाद इसे खेत में स्थानांतरित किया जा सकता है। 
    • ट्रीलिस सिस्टम में प्रत्येक खंभे के पास 3-4 पौधे लगाए जाते हैं, जो खंभे के चारों ओर बेल की तरह लिपटते हैं। प्रत्येक पौधे के बीच 2-3 मीटर की दूरी रखनी चाहिए। 

    उर्वरक और खाद प्रबंधन

    • ड्रैगन फ्रूट की खेती में जैविक और रासायनिक खादों का संयोजन उपयोगी साबित होता है।
    • खाद प्रबंधन : भूमि की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 10-12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए।
    • रासायनिक उर्वरक : इसमें NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का उपयोग किया जाता है। 
    • बुवाई के समय 40-60 ग्राम नाइट्रोजन, 50-80 ग्राम फॉस्फोरस और 50-70 ग्राम पोटैशियम प्रति पौधा देना चाहिए। 
    • इसके बाद उर्वरकों का समय-समय पर प्रयोग किया जाता है, खासतौर पर फलन के समय अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है। 

    सिंचाई प्रबंधन

    • ड्रैगन फ्रूट की जड़ों को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन यह आवश्यक है कि मिट्टी में नमी बनी रहे। 
    • गर्मियों में हर 10-15 दिनों में सिंचाई की जानी चाहिए, जबकि मानसून में सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। 
    • ड्रिप इरिगेशन प्रणाली को ड्रैगन फ्रूट के लिए सबसे बेहतर माना जाता है, क्योंकि इससे पानी का संरक्षण होता है और पौधों को आवश्यकतानुसार नमी मिलती रहती है।

    ड्रैगन फ्रूट के पौधे पर कितने दिन में फल आने शुरू हो जाते हैं?

    • कटिंग से उगाए गए ड्रैगन फ्रूट के पौधे आमतौर पर 12 से 18 महीनों में फल देने लगते हैं। 
    • इसके बाद, पौधा हर साल 4 से 6 महीनों तक लगातार फल देता है। 
    • बीज से उगाए गए पौधों को फल देने में अधिक समय लगता है, जो कि लगभग 5 से 6 साल तक हो सकता है। 

    फलों की तुड़ाई

    • ड्रैगन फ्रूट की तुड़ाई फूल आने के 30 से 50 दिनों के भीतर की जाती है। 
    • जब फल का छिलका पूरी तरह से रंगीन और चमकदार हो जाता है, तब उसे तुड़ाई के लिए तैयार माना जाता है। 
    • तुड़ाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए, ताकि फलों को सीधी धूप से नुकसान न पहुंचे।
    • तुड़ाई के बाद फलों को छाया में सुखाया जाता है और फिर इन्हें बाजार में बेचने के लिए पैक किया जाता है। 
    • ड्रैगन फ्रूट का भंडारण 8°C से 10°C के तापमान पर किया जा सकता है, जिससे यह 2 से 3 सप्ताह तक ताजगी बनाए रखता है।
    • ड्रैगन फ्रूट की खेती न केवल किसानों के लिए लाभदायक है बल्कि यह भारतीय कृषि में विविधता लाने का भी एक शानदार तरीका है। 
    • जलवायु परिवर्तन और पारंपरिक फसलों के जोखिमों को देखते हुए ड्रैगन फ्रूट एक टिकाऊ विकल्प है। 
    • इस फल की खेती से न केवल किसानों को अच्छा मुनाफा होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।

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