काजी नेमू की खेती कैसे करें ?
By : Tractorbird Published on : 05-May-2025
नींबू वर्गीय फल (Citrus) एक विशाल क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, जो उत्तर-पूर्व भारत के हिमालयी तराई क्षेत्रों से लेकर चीन के उत्तर-मध्य भाग, पूर्व में फिलीपींस तथा दक्षिण-पूर्व में बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया और न्यू कैलेडोनिया तक फैला हुआ है। भारत में क्षेत्रफल के हिसाब से नींबू वर्गीय फल केले और आम के बाद तीसरा सबसे बड़ा फल है।
भारत में नींबू वर्गीय फलों की औसत उपज (8.8 टन/हेक्टेयर) विकसित देशों जैसे इंडोनेशिया, तुर्की, ब्राज़ील और अमेरिका (22-35 टन/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत कम है। इस लेख में हम आपको काजी नेमू की खेती के बारे में जानकारी देंगे।
काजी नेमू की खेती के लिए जलवायु
- भारत में सभी नींबू वर्गीय फलों की खेती विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों में की जाती है — शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों से लेकर उत्तर-पूर्व भारत के आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक।
- ये पेड़ सदाबहार होते हैं और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में बेहतर उगते हैं। तापमान की आदर्श सीमा 13°C से 37°C है। -4°C से नीचे का तापमान युवा पौधों के लिए हानिकारक होता है।
- 25°C के आसपास की मिट्टी का तापमान जड़ विकास के लिए उत्तम होता है। अधिक आर्द्रता से रोगों का प्रकोप बढ़ता है। पाला और गर्म हवा दोनों हानिकारक हैं।
काजी नेमू की खेती के लिए मिट्टी (Soil):
- काजी नेमू की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी जैसे बलुई दोमट, जलोढ़, लेटराइट और अम्लीय मिट्टी में की जाती है। अच्छी जल निकासी वाली हल्की गहरी मिट्टी, जिसका pH 5.5 से 7.5 के बीच हो, उपयुक्त मानी जाती है।
- हालाँकि 4.0 से 9.0 pH तक की मिट्टी में भी इनकी खेती संभव है। जड़ों के क्षेत्र में अधिक कैल्शियम कार्बोनेट होना नुकसानदायक होता है।
काजी नेमू की खेती के लिए रोपण सामग्री (Planting Material):
- गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री अत्यंत आवश्यक है क्योंकि नींबू पौधे जैविक और अजैविक तनावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। आदर्श रूटस्टॉक का चयन एक बड़ी चुनौती है।
- फिलहाल रफ लेमन और रंगपुर लाइम का उपयोग किया जाता है, जिनमें वर्षों से काफी भिन्नता आ चुकी है।
- नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर सिट्रस (NRCC), नागपुर द्वारा विकसित उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए। शूट टिप ग्राफ्टिंग विधि से रोगमुक्त कलिका (बडवुड) प्राप्त की जाती है।
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काजी नेमू की नर्सरी प्रबंधन:
प्राथमिक नर्सरी हल्की उपजाऊ मिट्टी या HDPE ट्रे में शेड नेट के नीचे तैयार की जाती है। कमजोर पौधों और असमान पौधों को हटा कर स्वस्थ पौधों का चयन किया जाता है।
द्वितीयक नर्सरी पौधों को पॉलीथीन बैग में तैयार किया जाता है और 30-40 सेमी ऊँचाई प्राप्त करने पर मुख्य खेत में रोपण किया जाता है।
पौधे के रोपण के लिए भूमि की तैयारी (Land Preparation):
भूमि को अच्छी तरह से जोतकर समतल किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेतों पर ढलान की विपरीत दिशा में रोपण किया जाता है, जिससे उच्च घनत्व रोपण संभव होता है। जलभराव से बचाव के लिए 3-4 फीट गहरी नालियाँ बनाना आवश्यक होता है।
पौधों का घनत्व (Plant Density):
- मैंडरीन: 6m x 6m, 277 पौधे/हेक्टेयर
- स्वीट ऑरेंज: 5m x 5m या 5.5m x 5.5m, 400/330 पौधे/हेक्टेयर
- नींबू/लाइम: 6m x 6m या 5m x 5m, 277/400 पौधे/हेक्टेयर
- हल्की मिट्टी में: 4.5m x 4.5m या 5m x 5m
काजी नेमू की खेती में रोपण (Planting):
रोपण का सबसे उपयुक्त समय जून से अगस्त है। 1m x 1m x 1m आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं। प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किलो गोबर की खाद और 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट डाला जाता है।
सिंचाई की अच्छी सुविधा होने पर अन्य महीनों में भी रोपण किया जा सकता है।
काजी नेमू की खेती में सिंचाई
- प्रारंभिक वर्ष में सिंचाई महत्वपूर्ण होती है। इससे फल झड़ने की समस्या कम होती है और फल का आकार बढ़ता है। जलभराव की स्थिति में जड़ सड़न और कॉलर रोट जैसे रोग होते हैं।
- कम मात्रा में लेकिन बार-बार सिंचाई करना लाभकारी होता है। 1000 ppm से अधिक लवण युक्त पानी हानिकारक होता है। मिट्टी के प्रकार और पौधे की वृद्धि अवस्था के अनुसार सिंचाई की मात्रा और आवृत्ति तय की जाती है।
- माइक्रो इरिगेशन प्रणाली जल और पोषक तत्वों की बचत करती है और गर्मी के महीनों (मार्च-अप्रैल) में फल झड़ने से बचाव करती है।
काजी नेमू की खेती में फसल तुड़ाई
मैंडरीन और काजी नेमू में दो मुख्य बहारें होती हैं:
- अंबिया बहार: जनवरी में पुष्पन, अक्टूबर-दिसंबर में फल तुड़ाई
- मृग बहार: जून-जुलाई में पुष्पन, फरवरी-अप्रैल में तुड़ाई
काजी नेमू की उपज
- 3 वर्ष की आयु से प्रति पेड़ 50-60 फल मिलते हैं और 8वें वर्ष में उपज स्थिर होती है।
- प्रति पेड़ औसत उपज 1000-1500 फल होती है।