आडू की खेती कैसे करें?
By : Tractorbird News Published on : 21-Feb-2025
आडू (Peach) एक लोकप्रिय फल है जिसकी खेती भारत के पर्वतीय और उपपर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रूनस पर्सिका (Prunus persica) है और यह रोज़ेसी (Rosaceae) परिवार से संबंधित हैं।
आडू के फल प्रोटीन, चीनी, खनिज और विटामिन से भरपूर होते हैं, ताजे फल के साथ-साथ इसके विभिन्न उपयोग भी हैं।
आडू की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी खेती के लिए किसानों को आडू की फसल उत्पादन का ज्ञान होना बहुत आवश्यक होता है, इसलिए आज के इस लेख में हम आपको आडू की खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
मिट्टी और जलवायु की आवश्यकताएँ
- आड़ू की खेती के लिए हल्की दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है।
- मिट्टी की गहराई 2.5 से 3 मीटर होनी चाहिए और इसका pH मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। जल निकास की व्यवस्था भी उचित होनी चाहिए।
- आड़ू के लिए ठंडी और गर्म जलवायु दोनों का संतुलन आवश्यक है। इसे कुछ समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान की आवश्यकता होती है।
आडू की उन्नत किस्में
भारत में आड़ू की कई प्रमुख किस्में जैसे शान-ए-पंजाब, प्रताप, खुर्मानी, आदि उगाई जाती हैं।
ये भी पढ़ें: आलूबुखारा की खेती कैसे की जाती है?
आडू का प्रसार
- आड़ू का प्रसार बीजों और वेजेटेटिव विधियों से किया जाता है। हालांकि, वाणिज्यिक रूप से वेजेटेटिव प्रसार को ही अपनाया जाता है।
- रूटस्टॉक उगाना: ग्राफ्टिंग के लिए रूटस्टॉक उगाने के लिए, जंगली आड़ू को बीजों से प्रचारित किया जाता है।
- रूटस्टॉक उत्पादन के लिए, बीजों को 4-10 डिग्री सेल्सियस पर 10-12 सप्ताह तक नम बालू में रखा जाता है ताकि वे परतबद्ध हो सकें।
- बीजों के अंकुरण और पौधों की शक्ति को सुधारने के लिए, बीजों का प्री-सोइंग उपचार थायोयूरेआ (5 ग्राम/लीटर पानी) या GA3 (200 मिलीग्राम/लीटर पानी) से किया जा सकता है।
- नर्सरी में बीजों की बुवाई अक्टूबर-नवंबर के महीने में की जाती है। बीजों को अच्छे से तैयार किए गए बेड्स में लगभग 5 सेंटीमीटर गहरे और 15 सेंटीमीटर की दूरी पर एक पंक्ति में बोया जाता है।
- बीजबिस्तर को सूखी घास से मुल्च किया जाता है और बुवाई के बाद हल्की सिंचाई की जाती है ताकि बीजों के सुखने से बचा जा सके।
ग्राफ्टिंग
आडू की ग्राफ्टिंग नवंबर-दिसंबर महीने में टंग और क्लेफ/वेज ग्राफ्टिंग वाणिज्यिक प्रसार के लिए बहुत अच्छा तरीका है।
खेत की तैयारी
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, इसके बाद 2-3 बार आड़ी तिरछी जुताई करें। खेत को समतल बनाना आवश्यक है।
आडू की खेती में भूमि और गड्ढों की तैयारी
- गड्ढे 4.5 x 4.5 मीटर की दूरी पर अर्धचंद्राकार ढलानों पर खोदे जाते हैं।
- गड्ढे का आकार 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर रखा जाता है और इसे ऊपरी 30 सेंटीमीटर की मिट्टी के साथ 15-20 किलोग्राम खाद, 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम मॉप, 300 ग्राम एसएसपी और 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफोस डस्ट या ग्रान्यूल से भरा जाता है। गड्ढों को जमीन की सतह से लगभग 10 सेंटीमीटर ऊपर तक भरा जाता है।
- पौधे तैयार करना: पौधों को कलिकायन या कलम लगाकर तैयार किया जाता है। बीजों को 10 से 15 सप्ताह तक ठंडे तापमान में रखा जाता है ताकि उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ सके।
फसल तुड़ाई और भंडारण
- तुड़ाई का समय: आड़ू की फसल अप्रैल से मई तक तुड़ाई के लिए तैयार होती है। फल का रंग और गुद्दा नरम होने पर तुड़ाई करें। तुड़ाई करने के लिए वृक्ष को हल्का हिलाना चाहिए।
- तुड़ाई के बाद फलों को सामान्य तापमान पर स्टोर किया जाता है और इन्हें जैम या स्क्वैश बनाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।
- इस प्रकार, आड़ू की खेती एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें उचित मिट्टी, जलवायु, पौधों की तैयारी, खेत की देखभाल, और सही समय पर तुड़ाई शामिल होती है।
- इन सभी चरणों का पालन करने से बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।