सांवा की खेती - सांवा की आधुनिक खेती कैसे करें? जानिए यहां
By : Tractorbird News Published on : 28-Aug-2024
सांवा की खेती दानों के साथ-साथ अच्छे चारे के लिए भी मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। भारत में सांवा की खेती उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में की जाती है।
भूमि की तैयारी:
सांवा की खेती मैदानी और पहाड़ी इलाकों में छोटे खेतों में की जाती है। हल्की और कम उपजाऊ भूमि के लिए बारिश से पहले एक से दो गहरी जुताई जरूरी होती है।
बीज, बीज दर और बोने का समय:
- अधिक उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों का चयन करें। हल्की और पथरीली भूमि के लिए जल्दी पकने वाली और मध्यम उपजाऊ भूमि के लिए मध्यम समय में पकने वाली किस्में चुनें।
- कतार में बोआई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर और छिड़काव विधि से बोआई के लिए 12-15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है।
- तमिलनाडु में असिंचित फसल की बोआई सितंबर-अक्टूबर में और सिंचित फसल की बोआई फरवरी-मार्च में होती है।
- उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बोआई का सही समय अप्रैल-मई होता है। मध्य प्रदेश में मानसून शुरू होते ही और 10-12 जुलाई के पहले बोआई करने पर सबसे ज्यादा उपज मिलती है।
- बीज को बोने से पहले फफूंदनाशक, जैसे कार्वेन्डाजिम या कार्वोक्सिन का 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।
उन्नतशील किस्में:
- व्ही.एल. 29: यह किस्म 80-90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है। इसकी बालियां लंबी और सघन दानों से भरी होती हैं। यह कंडवा रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
- व्ही.एल. 172: यह किस्म 90-95 दिनों में तैयार हो जाती है और 21-23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है। इसकी बालियां खुली और सीधी होती हैं। यह भी कंडवा रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
- व्ही.एल. 181: यह नई किस्म 80-90 दिनों में तैयार हो जाती है और 16-17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है। इसके दाने चार पंक्तियों में लगे होते हैं और यह कंडवा रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
- व्ही.एल. 207: यह नई किस्म 85-90 दिनों में तैयार हो जाती है और 16.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसकी बालियां हरी और दाने भूरे होते हैं। यह किस्म भी कंडवा रोग के प्रति सहनशील है।
खाद और उर्वरक का उपयोग:
- बोआई से पहले 5 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। मध्य प्रदेश में रासायनिक उर्वरकों के रूप में 20 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर डालें।
- नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बोआई से पहले और बाकी नाइट्रोजन 3-4 सप्ताह बाद पहली निंदाई के बाद डालें।
- जैविक उर्वरक, जैसे एग्रोवैक्टीरियम और ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार करें।
अंतः सस्य क्रियाएं:
बोआई के 20-30 दिनों के भीतर हाथ से निंदाई करें। अधिक घने पौधों को उखाड़कर उन्हें खाली जगहों पर रोपें।
रोग-व्याधियाँ:
- कंडवा रोग: यह सांवा का प्रमुख फफूंदजनित रोग है। बालियां निकलने के बाद इसके लक्षण दिखते हैं। प्रभावित दाने स्वस्थ दानों से 3-4 गुना बड़े हो जाते हैं और काले बीजाणु से भर जाते हैं।
- रोकथाम: जून के आखिरी सप्ताह से लेकर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक बोआई करें। बीजोपचार फफूंदनाशक, जैसे कार्वेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से करें।
- पर्णछाद झुलसन: इस फफूंदजनित रोग का असर पौधे की सभी अवस्थाओं में होता है। प्रभावित पत्तियों पर अनियमित धब्बे बनते हैं जो गहरे रंग के होते हैं।
- रोकथाम: बीज को फफूंदनाशक, जैसे कार्वेन्डाजिम से उपचारित करें। संतुलित उर्वरक और रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।
कीट:
तना मक्खी: यह सांवा का मुख्य कीट है, जो उपज को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की इल्ली पौधे के मध्यकलिका को काट देती है जिससे पौधा सूख जाता है।
रोकथाम: फसल की जल्दी बोआई करें और बोने से पहले बीज को क्लोरपायरीफास से उपचारित करें।