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एलोवेरा की विशेषताएँ – एलोवेरा /घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई 60 - 100 सेंटीमीटर तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों में पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं।
ताजा एलोवेरा जैल अपने घरेलू औषधीय महत्व के लिए जाना जाता है। इसी वजह से एलोवेरा को फर्स्ट-एड या मेडिसिन पौधा भी कहा जाता है। ताजा एलोवेरा जैल का प्रयोग धुप से या गर्मी से जली हुई त्वचा और घाव पर लगाने के लिए भी किया जाता है। चेहरे पर इसका प्रयोग मॉइस्चराइज़र के रूप में भी किया जाता है। पौधे का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। एलोवेरा एकमात्र आधिकारिक मान्यता प्राप्त पौधा है, इसका उपयोग त्वचा के लिए लाभकारी होता है।
आजकल घृत कुमारी की खेती एक बहुत बड़े स्तर पर एक सजावटी पौधे के रूप में की जा रही है। एलोवेरा को इसके औषधीय गुणों के कारण उगा रहे हैं। इसकी सरसता इसे कम वर्षा वाले प्राकृतिक क्षेत्रों में जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जिसके चलते यह पठारी और शुष्क क्षेत्रों के किसानों में बहुत लोकप्रिय है। घृत कुमारी हिमपात और पाले का सामना करने में असमर्थ होता है। आमतौर पर यह कीटों का प्रतिरोध करने में सक्षम होता है पर कुछ कीट जैसे मीली बग, पटरी कीट और एफिड कीड़ों के कारण पादप की वृद्धि में गिरावट आ सकती है। पौधों के लिये बालुई मिट्टी जिसमे पानी का निकास अच्छा हो तेज खिली धूप की स्थिति आदर्श होती है। सर्दियों के दौरान घृत कुमारी सुषुप्तावस्था में पहुँच जाती है और इस दौरान इसे बहुत कम नमी की आवश्यकता होती है। हिम या तुषार संभावित क्षेत्रों में पौधों को अंदर या पौधाघर (ग्रीनहाउस) में रखना अच्छा रहता है। सौंदर्य प्रसाधन उद्योग के लिये एलोवेरा जैल का बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, डोमिनिक गणराज्य, भारत, जमैका, दक्षिण अफ्रीका और केन्या के साथ संयुक्त राज्य अमरीका में भी होता है।
यह एक कठोर पौधा है और विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर उगाया जाता है। यह रेतीले तटीय क्षेत्रों और दोमट मिटटी में अच्छी पैदावार देता है। मिट्टी का पीएच 8.5 तक के होना चाहिए । हालांकि, जल-जमाव की स्थिति और समस्याग्रस्त मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
आमतौर पर मार्च और जून के बीच एलोवेरा की खेती की जाती है। पौधे की व्यापक अनुकूलता को देश के कोने-कोने में बढ़ते हुए देखा जा सकता है। आर्द्र या शुष्क जलवायु में एलोवेरा की खेती आसानी से की जा सकती है। 150-200 cm से लगभग 35-40 cm वार्षिक वर्षा वाले इलाके में भी आसानी से खेती की जा सकती है। हालांकि, शुष्क क्षेत्रों में, फसल को सुरक्षात्मक सिंचाई प्रदान कि जाना चाहिए।
खेती करने से पहले भूमि की दो बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई कर खेत को साफ कर लेना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर जल निकासी के लिए छोटी नालिया तैयार की जानी चाहिए।
लगभग एक एकड़ में 10 टन गोबर की खाद डाली जाती है, ये फसल बिना खाद के भी अच्छी पैदावार देती है। अगर आप फसल में खाद का प्रयोग भी करें तो केवल जैविक खाद का ही प्रयोग करें ताकि फसल का मूल्य अच्छा मिले।
I.C 111271 , IC 111280 , IC 111269, IC 111273 , L -2,5 OR 9
इसकी बिजाई सकर या राइजोम-कटिंग के द्वारा की जाती है। पहले सकर या राइजोम-कटिंग को एकत्रित कर लेना है बाद में खेत में इनको लगना है। पौधे से पौधे की दुरी 60cm और लाइन से लाइन की दुरी 60cm होना आवश्यक है । 15 -18 cm लंबी जड़ वाली सकर या राइजोम-कटिंग लगानी चाहिये इन को मिट्टी में ऐसे लगाना है कि सकर या राइजोम-कटिंग का 2/3 भाग मिट्टी के निचे दब जाये। एक एकड़ में लगभग 11,000 पौधे लगते हैं।
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पौधे लगने के 8 से 10 महीने बाद फसल कटाई के लिए तैयार होती है। एक एकड़ में लगभग 10 टन की उपज आती है। दूसरे वर्ष उपज 15 से 20 % बढ़ जाती है।