23 दिसंबर को भारत के पांचवें प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में किसान दिवस या राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। वे किसानों के हित में काम करते थे और किसानों के हित में नीतियां बनाते थे।
28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किए। वह खुद किसान परिवार से थे, इसलिए किसानों की समस्याओं और हालात से अच्छी तरह परिचित थे, इसलिए उन्होंने कई सुधार कार्य किए थे।
श्री चरण सिंह ने अपने जीवन के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दीं और राजनीतिक करियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उनका उत्तराधिकारी जीवन बहुत प्रेरणादायक है।
श्री चरण सिंह का जन्म 1902 में नूरपुर, उत्तर प्रदेश, में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा को विज्ञान में पूरा किया और आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने कानून में प्रशिक्षण प्राप्त किया और गाजियाबाद में अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की।
श्री चरण सिंह जी ने राजनीति में भी अपनी भूमिका निभाई, और 1937 में वे छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने विधानसभा में कई बार अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, और 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी चुनाव जीते।
उन्होंने अपनी राजनीतिक करियर के दौरान पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव के रूप में काम किया और विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने न्याय, सूचना, राजस्व, चिकित्सा, लोक स्वास्थ्य आदि विभिन्न विभागों में कार्य किया और अपने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
श्री चरण सिंह ने अपनी ऊँची स्तरीय सेवाएं देने के बाद, उन्होंने 1959 में अपने पद से इस्तीफा दिया, लेकिन उनकी सेवाएं राजनीतिक इतिहास में सदैव याद की जाएंगी।
श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की और उन्हें एक कठोर नेता के रूप में पहचान मिली, जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार को सहन नहीं करते थे। वे प्रतिभाशाली सांसद और व्यवहारवादी राजनेता थे और उनकी भाषा विवेचनात्मक और उनका विश्वास पूरे राजनीतिक क्षेत्र में मशहूर था।
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के क्षेत्र में उनका सामर्थ्यपूर्ण योगदान था। उन्हें उनके कार्यों के लिए पूरा क्रेडिट जाता है। उन्होंने ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार किया और इसे लागू करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
उनके द्वारा लाया गया यह विधेयक राज्यभर में ज़मीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने का उद्देश्य रखता था ताकि समान विभाजन हो सके।
श्री चौधरी चरण सिंह ने अपनी शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में अपने अनबोधनशीलता और दृढ़ आत्मविश्वास के लिए लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने साधारण जीवन बिताया और अपने खाली समय में पढ़ाई और लेखन में जुटे रहे।
उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें 'ज़मींदारी उन्मूलन', 'भारत की गरीबी और उसका समाधान', 'किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि', 'प्रिवेंशन ऑफ डिवीज़न ऑफ होल्डिंग्स बिल ए सर्टेन मिनिमम', 'को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेड' आदि शामिल हैं।