सरसों की फसल की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए जान ले ये बातें
By : Tractorbird News Published on : 29-Nov-2024
सरसों की फसल रबी मौसम की सबसे प्रमुख तिलहनी फसल है। देश के अधिकांश भागों में रबी मौसम में सरसों फसल की खेती की गई है।
किसानों को इस फसल से अच्छा उत्पादन और मुनाफा प्राप्त करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
किसान खरपतवारों को नियंत्रित करने, सही तरह से सिंचाई करने और तना गलन रोगों को नियंत्रित करने की जानकारी रखते हैं तो वे इस फसल में सफल हो सकते हैं।
आज हम आपको इन तीन सूत्रों से कुछ जानकारी देंगे।
सरसों का खतरनाक रोग तना गलन की जानकारी
- सरसों की फसल में तना गलन रोग संक्रमण का बहुत खतरा रहता है। यही कारण है कि इस बीमारी का नाम सरसों के प्रमुख रोगों में आता है।
- इस बीमारी का संक्रमण पौधे के तने, पत्तियों और फलियों पर प्रभाव डालता है। इस बीमारी के संक्रमण से पौधे पर धब्बे और सफेद रुई की फंगस उगती हैं।
- किसानों को इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए प्रभावित पौधों और उनके अवशेषों को एकत्रित करके जला देने की सलाह दी जाती है।
- किसानों को प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या 2 प्रतिशत लहसुन घोल छिड़काना चाहिए।
- नमी और ठंडे वातावरणों में इस रोग का प्रसार अधिक होता है, इसलिए खेतों में सिंचाई करते समय सावधानी बरतें और अच्छी वायु संचार प्रणाली बनाएं।
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फसल में खरपतवार नियंत्रण
- सरसों की फसल को खरपतवार बड़ी समस्या दे सकते हैं। निम्नलिखित उपायों को अपनाकर खरपतवारों को सही तरह से पहचानें और उनसे निपटें:
- सरसों की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए कस्ती को बुवाई के 25 से 30 दिन बाद गुड़ाई करें। 50 दिन बाद दूसरी गुड़ाई करें।
- औरोबंकी, या आंग्मा, एक परजीवी खरपतवार है जो सरसों की जड़ों पर आकर फसल को खराब करता है।
- इसे नियंत्रित करने के लिए इन पौधों को उखाड़कर गड्ढे में दफन कर दें और उचित फसल चक्र अपनाएं।
- बुवाई और अंकुरण से पहले किसान 2.5 से 3 लीटर पेण्डीमेथालिन प्रति हेक्टेयर लें। इसके अलावा, सकरी पत्ती वाले क्षेत्रों में 800-1000 मिली क्वीजीलोफॉप इथाइल प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जाता है।