मूँगफली की फसल के प्रमुख रोग और रोगों का प्रबंधन

By : Tractorbird News Published on : 31-Dec-2022
मूँगफली

मूँगफली भारत की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा कर्नाटक में सब से अधिक उगाई जाती है| अन्य राज्य जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा में भी ये महत्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है। मूँगफली की फसल में कई रोगों का प्रकोप भी होता है जिस के कारण इसकी उपज में बहुत ज्यादा नुकसान होता है। हमारे इस लेख में आप मूँगफली के प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के बारे में जानेंगे।        

मूँगफली की फसल के प्रमुख रोग 

टिक्का रोग 

इस रोग के लक्ष्ण में ऊपरी पत्ती की सतह पर उप-वृत्ताकार गहरे भूरे रंग के धब्बे उत्पन्न होते हैं। पत्तों की निचली सतह पर धब्बे हल्के भूरे रंग के होते हैं। भूरे धब्बों के चारों ओर पीला प्रभामंडल दिखाई देता है। तनों, डंठलों और खूँटियों पर अंडाकार से लेकर लम्बे धब्बे भी देखे जा सकते हैं। गंभीर रोग के हमले से पत्रक झड़ जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप फसल समय से पहले ही पक जाती है।

उपचार और प्रबंधन 

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए अच्छा खरपतवार नियंत्रण सहायक होता है क्योंकि घनी खरपतवार वृद्धि रोग के विकास को प्रोत्साहित करती है।
  • ICGV 89104, ICGV 91114 (EM), ICGV 920920, ICGV 92093 (MM) जैसी मध्यम प्रतिरोधी किस्मों को उगाने से रोग नहीं आता। 
  • पत्ती के धब्बों का कवकनाशी नियंत्रण प्रभावी होता है। कवच या बाविस्टिन @ 2 ग्राम/लीटर पानी  का घोल बना के 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से पत्तियों पर छिड़काव करें। कॉपर, सल्फर, और कॉपर/सल्फर की डस्ट पत्ती के धब्बों पर अच्छा नियंत्रण देती है और जंग पर भी कुछ नियंत्रण करती है।
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पछेती टिक्का रोग

पछेती पत्ती के धब्बे शुरुआती पत्तों के धब्बों की तुलना में लगभग गोलाकार और गहरे रंग के होते हैं। पछेती पत्ती के धब्बों को शुरुआती पत्तों के धब्बों से अलग किया जा सकता है। पछेती पत्ती के धब्बे हल्के पीले प्रभामंडल वाले होते हैं। निचली पत्ती की सतह पर रोग के धब्बे दिखने में खुरदरे होते हैं। हाथ के लेंस की सहायता से निचली पत्ती की सतह पर कवक फलने वाली संरचनाओं के गोलाकार छल्ले देखे जा सकते है। गंभीर रोग के हमले से पत्रक झड़ जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप फसल समय से पहले ही पक जाती है। तने और खूंटी पर शुरुआती पत्ती धब्बे के समान अंडाकार से लम्बे धब्बे भी बनाती हैं। लेट लीफ स्पॉट अटैक आमतौर पर रतुआ रोग के साथ देखा जाता है।

उपचार और प्रबंधन 

  • संक्रमित फसल अवशेषों को एकत्र कर नष्ट कर दें ,अनाज-मूंगफली फसल चक्र अपनाएं।
  • बाविस्टिन 1 ग्राम/लीटर पानी या कवच 2 ग्राम/लीटर पानी का घोल बना के 200 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से फसल में छिड़काव करें। 
  • आईसीजीवी 89104, आईसीजीवी 91114 (ईएम), आईसीजीवी 920920, आईसीजीवी 92093 (एमएम) जैसी मध्यम प्रतिरोधी किस्में उगाएं।

रतुआ रोग

इस रोग को आसानी से पहचाना जा सकता है | इस रोग के लक्ष्ण नारंगी रंग के फोड़े निचली पत्ती की सतह पर दिखाई देते हैं । फोड़े सबसे पहले निचली पत्ती की सतह पर दिखाई देते हैं। अत्यधिक संवेदनशील किस्मों में फोड़े पत्तियों को पूरी तरह से घिरे हुए रखतें हैं। बाद में पत्तियों की ऊपरी सतह पर, निचली पत्ती की सतह के विपरीत दाने बन सकते हैं। फोड़े आमतौर पर गोलाकार होते हैं और इनका व्यास 0.5 से 1.4 मिमी तक होता हैं। वे फूलों और फली के अलावा पौधे के सभी ऊपरी भागों पर बन सकते हैं। रतुआ से संक्रमित पत्तियाँ पिली हो जाती हैं लेकिन पौधे से जुड़ी रहती हैं। 

उपचार और प्रबंधन

  • ट्राइडेमोर्फ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव 14-21 दिनों के अंतराल पर करने से रतुआ रोग पर अच्छा नियंत्रण किया जा सकता है। आमतौर पर 3-4 स्प्रे की जरूरत होती है।
  • बुवाई के 35 और 50 दिनों के बाद फसल पर क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम/लीटर पानी या मैनकोजेब 2 ग्राम/लीटर पानी  प्रति एकड़ के हिसाब से घोल बना कर छिड़काव करें । ट्राइडीमोर्फ100 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करने से भी रोग को अच्छी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
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ब्लैक रॉट रोग 

रोगग्रस्त पौधे खेत में स्थानीय पैच (चित्र) में दिखाई देते हैं। प्रारंभिक लक्ष्ण हरितहीनता और मुख्य तने पर पत्तियों का मुरझाना होता है। हो सकता है कि पौधे मुरझाए नहीं लेकिन हरितहीन मतलब पत्तियों के पीलेपन के लक्षण दिखाई दे सकते हैं । वर्षा के समय यह बीमारी और फैल सकती है

मिट्टी की सतह के पास संक्रमित शाखाओं पर घने गुच्छों में लाल-नारंगी कवक शरीर बनाती है । भूमिगत पौधे के हिस्से प्रभावित हो सकते हैं। गंभीर मामलों में रोग फलियों और दानो को नष्ट कर सकता है।

उपचार और प्रबंधन 

  • कार्बेन्डाजिम @ 0.2% (यानी 2 ग्राम/किलोग्राम  बीज) या थीरम (3 ग्राम/किलोग्राम ) के साथ बीज का उपचार करें। बीजों को फफूंद जैव-नियंत्रण एजेंट ट्राइकोडर्मा हर्जियामम या ट्राइकोडर्मा विराइड कल्चर @ 4-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करें।
  • ट्राइकोडर्मा कल्चर (बीसीए) को भी मिट्टी में 4 ग्राम  की दर से डालें। जड़ क्षेत्र के पास कार्बेन्डाजिम के 0.1% घोल (1 ग्राम / लीटर) के साथ फसल में ड्रेंचिंग करें।

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