प्याज की फसल कई रोगों से प्रभावित होती है जिस कारण से फसल की पैदावार कम हो जाती है। अगर हम फसल में समय पर रोग को देख के उसका उपचार या प्रबंधन कर दे तो फसल में होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है। आप हमारे इस आर्टिकल में प्याज की फसल के प्रमुख रोगों के बारे में जानेगे जिससे आप रोग को पहचान कर उनका समय पर प्रबंधन कर के अच्छी पैदावार ले सकते है।
पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और फिर धीरे-धीरे सूख जाती हैं। प्रभावित पौधे की पत्ती ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है। ज़्यादा प्रकोप होने पर पूरा पौधा सुख जाता है। प्रभावित पौधे का कंद नरम होकर सड़ता है और जड़ें भी सड़ जाती हैं। और पुरे पौधे के ऊपर एक सफ़ेद फफूंदी का विकास हो जाता है। यह रोग खेत में शुरू हो सकता है और भंडारण में जारी रह सकता है।
फसल चक्र का पालन करना चाहिए और प्याज की खुदाई के बाद कंदों को पूरी सुरक्षा के साथ भंडारण करना चाहिए ताकि हानियों को कम किया जा सके। जिस मिट्टी में कॉपर की कमी होती है उस में ये रोग बहुत संवेदनशील होता हैं। इसके लिए मिटटी में कॉपर की उर्वरता को बढ़ाने के लिए कॉपर उर्वरको का प्रयोग करें । खासकर कॉपर की ज्यादा आवश्यकता रेतीली मिट्टी में होती है। अगर खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.25% को सीधे मिट्टी में ड्रेंचिंग के द्वारा दें ।
इस रोग के कारण जमीं के समीप प्याज का ऊपरी भाग गलने लगता है और संक्रमित भाग पर सफेद फफूंद और जमीन के ऊपर हलके भूरे रंग के सरसों के दाने की तरह सख्त संरचनाये बन जाती है उसे स्क्लेरोटिअ कहते है। संक्रमित पौधा मुरझा जाता है और बाद में सुख जाता है। जिस में कंद चारो तरफ से सफेद फफूंद से ढक जाते है। आखिर में पौधा पूर्ण रूप से सुख जाता है।
मई -जून में खेत की हल्की इरीगेशन करके बाद जुताई करनी चाहिए जिससे फफूंद के स्क्लेरोटिअ अंकुरित होकर नष्ट हो जाते है। खेत में ट्राइकोडर्मा हार्ज़िनम विरिडी जैविक नियंत्रक फफूंद की 2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से गोबर के खाद में मिलाये। रोपाई के पहले प्याज के पौधे तथा बीज कन्धो को 0:1 कार्बनडाज़ियम के घोल मैं डुबोकर लगाये।
कार्बनडाज़ियम 0:2 के घोल से छिड़काव करे अथवा सात दिन बाद कॉपर के जरिये घोल से जड़ में ड्रेंचिंग करनी चाहिए।
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पत्तियों मैं छोटे सफेद रंग के धब्बे जिन में ज्यादा आदरता और नमी होने पर धब्बो के मध्य सतह हलके भूरे रंग के कवक तंतु मैं वृद्धि देखी जा सकती है। अधिक संक्रमण होने पर पत्तियों का प्रभावित भाग मुलायम होकर लटक जाता है और बाद में सारी पत्तिया सुख जाती है।
प्रमाणित बीज का प्रयोग करे मैंकोजेब 0.2% का तीन छिड़काव प्रभावी होता है। छिड़काव 20 दिन से शुरू कर देना चाहिए रोपाई के बाद और 10-12 दिनों के अंतराल पर दोहराएँ। बुवाई से पहले कैप्टन / थीरम 0.25% के साथ बल्ब उपचार करे रोग के नियंत्रण के लिए मनेब और मैंकोजेब का छिड़काव क्लोरोथालोनिल का छिड़काव करे। रोग के नियंत्रण के लिए प्रत्येक 5-7 दिनों में कवकनाशी का प्रयोग करने से रोग को फैलने से रोका जा सकता है।
ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में बोट्राइटिस प्याज का प्रमुख रोग है। रोग का हल्का संक्रमण पैदावार को प्रभावित नहीं करता है। लेकिन इस रोग के कारण बीज सड़ जाते हैं, अंकुरण से पहले ही मर जाते हैं सभी प्रभावित पौधे मर जाते हैं। यदि बीज अंकुरण से पहले रोग आजाये तो अंकुरण मिटटी से भर आने से पहले ही मर जाते है जिस कारण खेत खाली रहने का कारण बनता है। बीज या बीज सामग्री खेत में उगने से पहले ही मर जाती है। रोग फसल की बुवाई या रोपण के 15 से 30 दिनों के बाद भी होता है इस अवस्था को पश्च-उद्भव अवमंदन कहते हैं। यदि रोग देर से, पौधे को संक्रमित करता है तो पौधे में बौनापन और जड़ों के सड़ने का कारण बनता है।
थीरम या कैप्टान @ 4 ग्राम/किलोग्राम से बीज उपचार करे। बल्बों को थिरम 0.25% में डुबाया जा सकता है इससे रोग का अच्छा समाधान किया जा सकता है। अंकुरण के बाद, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.25% घोल बना कर पौधों की जड़ो में ड्रेंचिंग करे।
यह रोग मुख्य रूप से पौधे के ऊपरी भाग में होता है। पत्तियों से, संक्रमण शुरू होता है। पत्तियों पर सफेद छोटे-छोटे बिंदु और अनिमियत क्लोरोटिक क्षेत्र बन जाते है। पत्तियों पर गोलाकार से आयताकार जैसे मखमली छल्ले दिखाई देने लगते है। क्लोरोटिक क्षेत्र में घाव विकसित होते हैं जिस कारण पत्ती के धब्बे एक साथ जुड़ें हुए और तेजी से फैलते हुए पूरी पतियों को ढक लेते है । पत्तियाँ धीरे-धीरे मर जाती हैं।
रोपण के लिए रोगमुक्त कंद का चयन करना चाहिए। बीजों को थीरम @ 4 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए। खेत में जल निकास अच्छी तरह होनी चाहिए जिससे खेत में पानी खड़ा ना हो। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.25% या क्लोरोथालोनिल 0.2% या ज़िनेब 0.2% या मैंकोज़ेब 0.2% इन में से कोई भी एक कवकनाशी का पत्तों पर छिड़काव करे।
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यह लक्षण आमतौर पर कटाई के बाद दिखाई देते हैं, हालांकि संक्रमण खेत में उत्पन्न होता है। महानतम महामारी का विकास तब होता है जब कुछ दिनों तक ठंडा (50° से 75°F) और नम मौसम बना रहता है। फसल काटने से पहले या कटाई के दौरान लक्षणों को सबसे पहले कंदो की गर्दन के आसपास देखा जा सकता है। इस रोग के लक्षण ऊतकों के नरम होने के रूप में देखा जाता है। बल्ब, पर शायद ही कभी कोई घाव दीखते है । एक निश्चित मार्जिन रोगग्रस्त और स्वस्थ ऊतकों को अलग करता है। संक्रमित ऊतक धँसा हुआ, मुलायम हो जाता है, और भूरे से भूरे रंग का दिखाई देता है। ये लक्षण धीरे-धीरे बल्ब के आधार तक बढ़ते हैं। फिर पूरा बल्ब ममीकृत हो सकता है। कठोर, अनियमित आकार के गुठली जैसे शरीर, स्क्लेरोटिया, बन सकते हैं।
फसल की कटाई के बाद प्याज का जायदा ढेर ना करे क्योंकी दबाव में आने के करना कंदो की बाजारू कीमत कम हो सकती है।
जब आप भण्डारण करे तो खास कर ये धयान रखे की प्याज को खुले कमरे में फैला कर रखे ऐसा करने से स्वस्थ प्याज के कंदो को ख़राब प्याज के संपर्क में आने से बचाया जा सकता है।