सेब की इस किस्म का उत्पादन अब मैदानी क्षेत्रों में भी हुआ संभव, जानिए सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 02-Sep-2024
सेब

सेब की खेती पारंपरिक रूप से पहाड़ी और ठंडे क्षेत्रों तक ही सीमित रही है, जिससे देश के अन्य क्षेत्रों के किसान इसे नहीं उगा पाते थे। 

हालांकि, मैदानी क्षेत्रों में सेब की खेती के लिए विदेशी शोध संस्थानों द्वारा कुछ किस्में विकसित की गई थीं, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण उनका भारत की उपोष्ण जलवायु में परीक्षण नहीं किया गया। 

अब भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान ने इस समस्या को हल करने के लिए सेब की फसल को मैदानी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाने हेतु अपने संस्थान में इसका मूल्यांकन शुरू किया है।

इस प्रयास के तहत, सेब की ऐसी प्रजातियों का परीक्षण और मूल्यांकन उपोष्ण जलवायु में किया गया है, जिन्हें कम शीतलन की आवश्यकता होती है। 

इनमें केवल 250-300 घंटे की शीतलन इकाइयों की आवश्यकता होती है। इस अध्ययन के परिणामों से यह धारणा गलत साबित हुई है कि सेब की बागवानी केवल ठंडे क्षेत्रों में ही संभव है। 

यह अध्ययन उपोष्ण क्षेत्रों में कृषि और बागवानी के विविधीकरण के लिए एक नया विकल्प प्रस्तुत कर सकता है।

मैदानी क्षेत्रों के लिए सेब की उन्नत किस्में

कम शीतलन की आवश्यकता वाली किस्मों में अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन, एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, बेवर्ली हिल्स, पार्लिन्स ब्यूटी, ट्रॉपिकल ब्यूटी, पेटेगिल, तम्मा आदि शामिल हैं। 

इन किस्मों का संस्थान में चार वर्षों तक अध्ययन किया गया है, जिसमें अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन और माइकल प्रमुख हैं।

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सेब की अन्ना किस्म

  • अन्ना सेब की एक ऐसी प्रजाति है जो गर्म जलवायु में भी अच्छी तरह से विकसित होती है और जल्दी पककर तैयार हो जाती है। 
  • सामान्य सेब की किस्मों को फलन और पुष्पन के लिए 450-500 घंटे की शीतलन इकाइयों की आवश्यकता होती है, लेकिन अन्ना किस्म के फल जून में परिपक्व हो जाते हैं। 
  • इसके फलों का रंग पीली सतह पर लाल आभा के साथ विकसित होता है, और यह शीघ्र और अधिक फलन वाली किस्म है। 
  • यह स्वयं बांझ प्रजाति है, इसलिए इसके फलन के लिए परागण दाता किस्म जैसे डॉर्सेट गोल्डन का प्रावधान करना आवश्यक है।

सेब की डॉर्सेट गोल्डन किस्म

  • डॉर्सेट गोल्डन भी गर्म क्षेत्रों के लिए विकसित की गई एक किस्म है, जो 250-300 घंटे की शीतलन इकाइयों की आवश्यकता होती है। 
  • अन्ना किस्म की सफल बागवानी के लिए यदि उचित दूरी पर 20 प्रतिशत पौधे डॉर्सेट गोल्डन के लगाए जाएं, तो इससे अच्छे परिणाम मिलते हैं।

पौधों का रोपण

  • सेब की बागवानी के लिए किसानों को सरकारी या राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त पौधशाला से पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। 
  • सेब की खेती के लिए पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए, मिट्टी में जलजमाव नहीं होना चाहिए, और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। 
  • पौधों को वर्गाकार 5X5 या 6X6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना चाहिए, और पौध रोपण के समय मूलवृंत और साकुर के जोड़ को जमीन में दबने से बचाना चाहिए।

फूल और फलन

  • मैदानी क्षेत्रों में सेब के पौधों की पत्तियां नवम्बर से जनवरी के बीच गिर जाती हैं, जो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। 
  • इससे किसानों को चिंतित नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पौधों को शीत ऋतु में न्यूनतम तापमान सहने और अगले मौसम में पुष्पन लाने के लिए आवश्यक है।

सेब में लगने वाले कीट और रोग

अगस्त-सितम्बर में हेयर कैटर पिलर का प्रकोप होता है, इसके बचाव के लिए डाइमेथोएट- 2 मिली लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए। 

बरसात के समय कुछ फलों में सड़न की समस्या हो सकती है, जिसके लिए फफूंदीनाशक का छिड़काव किया जा सकता है। बरसात से पहले फलों को तोड़ लेना बेहतर होता है।

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