मूली की खेती : जानिए मूली की फसल उत्पादन के बारे में जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 08-Sep-2023
मूली

मूली अत्यन्त महत्वपूर्ण सब्जी है इसे कच्चा सलाद के रूप में या अचार बनाने के प्रयोग में लिया जाता है। इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असाम, हरियाण, गुजरात, हिमांचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में किया जाता हैI 

खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

यह ठन्डे मौसम की फसल है इसके बढ़वार हेतु 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेट अच्छा तापक्रम होता हैI अधिक तापक्रम पर जड़े कड़ी तथा कड़वी हो जाती हैI मूली का अच्छा उत्पादन लेने हेतु जीवांशयुक्त दोमट या बालुई दोमट भूमि अच्छी होती है भूमि का पी.एच. मान 6.5 के निकट अच्छा होता हैI 

मूली की उन्नत किस्में 

मूली की प्रजातियां जैसे की जापानी सफ़ेद, पूसा देशी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब अगेती, पंजाब सफ़ेद, आई.एच. आर1-1 एवं कल्याणपुर सफ़ेद हैI शीतोषण प्रदेशों हेतु ह्वाइट इसली, रैपिड रेड, ह्वाइट टिप्स, स्कारलेट ग्लोब तथा पूसा हिमानी अच्छी प्रजातियां है I 

बुवाई के लिए खेत की तैयारी 

मूली की खेती वर्षा समाप्त होने के बाद की जाती हैI पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिएI जुताई करते समय 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद मिला देनी चाहिएI 

बीज मात्रा 

मूली का बीज 10 से 12 किलोग्राम प्राति हेक्टेयर पर्याप्त होता हैI मूली के बीज का शोधन 2.5 ग्राम थीरम से एक किलोग्राम बीज की दर से उप शोधित करना चाहिएI

बुवाई का उत्तम समय 

मूली की बुवाई सितम्बर और अक्टूबर माह में की जाती है I लेकिन कुछ प्रजातियों की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती हैI जैसे की पूसा हिमानी की बुवाई दिसम्बर से फरवरी तक की जाती है तथा पूसा चेतकी प्रजाति को मार्च से मध्य अगस्त माह तक बोया जाता है बुवाई मेड़ों तथा समतल क्यारियो में भी की जाती हैI 

लाइन से लाइन या मेड़ों से मेंड़ो की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा ऊंचाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती हैI पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिएI 

उर्वरक खाद प्रबंधन 

200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय देनी चाहिए इसके साथ ही 80 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिएI 

नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देना चाहिए जिसमे नत्रजन 1/4 मात्रा शुरू की पौधों की बढ़वार पर तथा 1/4 नत्रजन की मात्रा जड़ों की बढ़वार के समय देना चाहिएI 

सिंचाई 

पहली सिंचाई तीन चार पत्ती की अवस्था पर करनी चाहिए I मूली में सिंचाई भूमि के अनुसार कम ज्यादा करनी पड़ती हैI सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिएI 

खरपतवार नियंत्रण

पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिएI जब जड़ों की बढ़वार शुरू हो जाये तो एक बार मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए I खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिएI

कटाई और उपज 

किसान भाइयों कटाई हेतु जब खेत में मूली की जड़े खाने लायक हो जाये अर्थात बुवाई के 45 से 50 दिन बाद जड़ो को सुरक्षित निकालकर सफाई करके बाद में बाजार में बेच देना चाहिए I इन्ही जड़ो को सलाद एवं अचार बनाने में प्रयोग करते हैंI सभी तकनीको को अपनाते हुए खाने योग्य जड़ों की पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैI 





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