सरसों से भी अधिक तेल उत्पादन देती हैं ये फसल, बंजर जमीन में होती है खेती

By : Tractorbird News Published on : 30-Nov-2024
सरसों

सरसों तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए तिलहन फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। तारामीरा एक ऐसी फसल है, जो सरसों की तरह होती है और पेराई के बाद तेल देती है। 

इसकी खास किस्में अधिक तेल उत्पादन करने में सक्षम हैं। किसान इसकी खेती कर न केवल अच्छी आय कमा सकते हैं, बल्कि तेल की कमी और महंगे तेल की समस्या का भी समाधान कर सकते हैं।  

बंजर जमीन में भी उगाई जा सकती है  

  • तारामीरा की बड़ी खासियत यह है कि इसे बंजर और अनुपयोगी जमीन में भी उगाया जा सकता है। जिन खेतों में अन्य फसलें नहीं उग पातीं, वहां इसके बीज छिड़क कर उपज ली जा सकती है। 
  • यह लगभग सभी प्रकार की जमीन में उपजाऊ और अनुपजाऊ दोनों स्थितियों में उगाई जा सकती है। इसके बीजों में करीब 35% तेल पाया जाता है।  

उपयुक्त किस्में  

  • तारामीरा की खास किस्में हैं एईएस-1, एईएस-2, एईएस-3, एईएस-4, और आरएमटी-314। इनमें आरएमटी-314 सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 
  • यह बारानी क्षेत्रों के लिए बेहतर है। इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और यह 130-140 दिन में पक जाती है। 
  • इसके बीजों में 36.9% तेल पाया जाता है। इसके हजार दानों का वजन 3-5 ग्राम होता है, और इसकी शाखाएं फैली हुई होती हैं। 

खेती के लिए मिट्टी और जलवायु  

  • तारामीरा के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। अम्लीय और अधिक क्षारीय मिट्टी इसके लिए ठीक नहीं है। 
  • यह बारानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है, जहां अन्य फसलें नहीं उग पातीं। 
  • खरीफ फसल (जैसे चारा, उड़द, मूंग, मक्का) के बाद यदि मिट्टी में नमी हो, तो इसे हल्की जुताई कर बोया जा सकता है। बारिश के दौरान खेत खाली न छोड़ने पर इसकी खेती अधिक लाभकारी होती है।  

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दीमक से बचाव  

  • तारामीरा की फसल में दीमक का खतरा अधिक होता है। 
  • इसके लिए बुवाई से पहले जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण को 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़ककर जुताई करनी चाहिए।  

बुवाई के समय ध्यान रखने योग्य बातें  

 -बुवाई का समय मिट्टी की नमी और तापमान पर निर्भर करता है।  

-30 किलो नाइट्रोजन और 15 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक देना चाहिए।  

- अंतिम जुताई के समय 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाएं।  

- सिंचाई की सुविधा होने पर पहली सिंचाई 40-50 दिन बाद करें और दूसरी सिंचाई दाना बनने के समय करें।  

कीट और रोगों से बचाव  

- मोयला कीट लगने पर मिथाइल पैराथियान, कार्बेरिल, या मैलाथियान चूर्ण का भुरकाव करें।  

- सफेद रोली, झुलसा, और तुलासिता जैसे रोगों के लिए मैन्कोजेब या जाईनेब का घोल बनाकर छिड़काव करें। रोग ज्यादा होने पर 20 दिन बाद यह प्रक्रिया दोहराएं।  

फसल कटाई का सही समय  

जब पत्ते झड़ने लगें और फलियां पीली पड़ जाएं, तो फसल काट लेनी चाहिए। कटाई में देरी होने पर दाने खेत में गिर सकते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है।

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