जैसा कि हम जानते हैं, भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ आधे से ज्यादा लोग खेती से आजीविका कमाते हैं।
भारत में अधिकांश किसान सीमांत किसान हैं, जिनके पास एक से दो हेक्टेयर से कम जमीन है। बड़े किसान खेती से लाभ कमा लेते हैं, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों को उतना फायदा नहीं हो पाता।
ऐसे किसानों के लिए "मल्टी फार्मिंग" तकनीक बहुत उपयोगी है। मल्टी फार्मिंग, जिसे मल्टीपल क्रॉपिंग या इंटरक्रॉपिंग भी कहा जाता है, का अर्थ है एक ही खेत में एक से अधिक फसल उगाना।
इस तकनीक को अपनाकर सीमांत किसान भी कम जमीन में अच्छी कमाई कर सकते हैं।
इस तकनीक में एक ही क्षेत्र में सालभर क्रमश कई फसलें उगाई जाती हैं, जिससे भूमि का निरंतर उपयोग होता है और उत्पादकता अधिक होती है।
इसमें ऐसी फसलें लगाई जाती हैं जो एक-दूसरे के लिए लाभकारी होती हैं। यह पद्धति फसलों के स्वास्थ्य और उपज को सुधारने में मददगार होती है।
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1. उत्पादकता में वृद्धि: मल्टी फार्मिंग पद्धति से एक ही भूमि के उपयोग से अधिक फसलें ली जा सकती हैं, जिससे प्रति यूनिट क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ती है।
2. मिट्टी की उर्वरता में सुधार: विभिन्न फसलों की पोषक तत्वों की अलग-अलग आवश्यकताओं से मिट्टी की उर्वरता संतुलित होती है और यह भविष्य के लिए फायदेमंद साबित होती है।
3. खरपतवार नियंत्रण: विभिन्न फसलों की उपस्थिति से जमीन में खरपतवार की वृद्धि कम होती है और कुछ फसलें स्वाभाविक रूप से खरपतवार को रोकने में सहायक होती हैं।
4. कीट और रोग प्रबंधन: विभिन्न प्रकार की फसलें होने से कीटों और रोगों का फैलाव कम होता है, जिससे प्राकृतिक कीट प्रबंधन संभव होता है।
5. जोखिम विविधीकरण: मल्टी फार्मिंग से किसानों की आय विविध होती है और अगर एक फसल में नुकसान हो तो अन्य फसलें आय की गारंटी देती हैं।
6. संसाधनों का कुशल उपयोग: अलग-अलग जड़ संरचना और जल आवश्यकताओं वाली फसलों को एक साथ उगाने से पानी और पोषक तत्वों का अधिकतम उपयोग होता है।
7. बाजार में लचीलापन: विभिन्न फसलों के उत्पादन से किसान बाजार की बदलती मांगों को पूरा कर सकते हैं और ज्यादा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
8. पारिस्थितिकी संतुलन: विविध फसलों की उपस्थिति जैव विविधता को बढ़ाती है और पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखती है।