इस विधि से गाजर की खेती करके आप भी कमा सकते है अच्छा मुनाफा

By : Tractorbird News Published on : 23-Oct-2023
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पूरे भारत में गाजर की खेती की जाती है गाजर को कच्चा और पकाकर दोनों तरह से खाया जाता है। गाजर में विटामिन ए और कैरोटीन होते हैं, जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। नारंगी गाजर में कैरोटीन अधिक होता है। गाजर की हरी पत्तियों में प्रोटीन, मिनिरल्स, विटामिन्स आदि बहुत सारे पोषक तत्व हैं जो जानवरों को पोषण देते हैं। मुर्गियों का चारा गाजर की हरी पत्तियों से बनाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश, असाम, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक गाजर उगाई जाती है। 

गाजर की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी 

ज्यादातर ठंडे मौसम में गाजर उगाई जाती है। ठंडे मौसम में गरम दिन होने पर भी गाजर की उपज कम होती है और रंग बदलती है। गाजर एक जड़ फसल है जो की मिट्टी के नीचे पैदा होती है। इसलिए बालुई दोमट और दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी हैं। भूमि में पानी का निकास होना बहुत महत्वपूर्ण है। काली मिट्टी में गाजर का विकास नहीं होता है। 

गाजर की उन्नत किस्में 

गाजर की बहुत सी किस्में है जैसे की गाजर नंबर 29 , पूसा केसर, पूसा मेघाली, सलेकशन233, जेंटनी, अर्लीमेंट्स, अम्प्रेटर, मेन्ट्स आफ लाग, पूसा यमदाग्नि एवं जीनो हैी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आप इन में से किसी भी किस्म का चयन आपके क्षेत्र के हिसाब से कर सकते हैं। 

गाजर की बुवाई के लिए खेत की तैयारी

गाजर की बुवाई के लिए खेत तैयार करने के लिए सबसे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, फिर दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत को भुरभुरा बनाना चाहिए। आखरी जुताई के समय खेत में 80 से 100 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद को भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।

गाजर का बीज और बीज की बुवाई

एक एकड़ में गाजर की बुवाई के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज लगता है, बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करनी चाहिए। गाजर की बुवाई उत्तरी भारत में अगस्त से अक्टूबर तक की जाती है यूरोपियन किस्मों की बुवाई नवम्बर में की जाती हैI पहाड़ी क्षेत्रो में मार्च से जून तक बुवाई की जाती हैI इसकी बुवाई 35 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनों पर या मेंड़ो पर करनी चाहिएI बीज को 1.5 से 2 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए मेंड़ो की ऊंची 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर रखते हैंI

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फसल में पोषण प्रबंधन

80 से 100 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी करते समय देना चाहिए तथा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस, 15 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ तत्व के रूप में देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले देना चाहिएI शेष आधी मात्रा नत्रजन की खड़ी फसल में दो बार में देते हैं 1/4 नत्रजन की मात्रा शुरू में पत्तियो की बढ़वार के समय तथा 1/4 मात्रा नत्रजन की जड़ों की बढ़वार के समय देना चाहिए। 

फसल में जल प्रबन्धन

बुवाई के बाद नाली में पहली सिंचाई करनी चाहिए जिससे मेंड़ों में नमी बनी रहे बाद में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिएI गर्मियों में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI खेत को कभी सूखना नहीं चाहिए नहीं तो पैदावार कम हो जाती हैI

फसल में खरपतवार नियंत्रण

फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद खेत में स्टाम्प की 1 लीटर मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए उस समय नमी खेत में अवश्य होनी चाहिएI

गाजर में खरपतवार नियंत्रण 

गाजर में फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम, पीला रोग, विषाणु ब्लाइट, रूटनाट कृमि रोग लगते हैंI इनकी रोकथाम के लिए खेतों के अवशेष एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिएI पीला रोग हेतु इंडोसेल 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इण्डोधान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिएी बीजों का शोधन करके बुवाई करनी चाहिए तथा फफूंद नाशक डाइथेन एम्.45 या जेड78 का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए। 

गाजर की फसल में किट नियंत्रण 

गाजर में अर्ध गोलाकार सूंडी, नील की सूंडी तथा बिहार का बालदार कीड़ा कीट लगते हैं इनकी रोकथाम हेतु 4 प्रतिशत कार्बेराल चूर्ण का बुरकाव करना चाहिए या 10 प्रतिशत बी.एच.सी. 25 किलोग्राम के हिसाब से प्रति हेक्टेयर बुरकाव करना चाहिए इसके साथ ही साथ खेत को खरपतवारों से साफ़ रखना चाहिए। 

गाजर की कटाई और पैदावार 

गाजर की जड़ें जब अच्छे से खाने योग्य हो जाये तभी इसकी खुरपी द्वारा खुदाई करनी चाहिए, जिससे जड़ें कटे ना और गुणवत्ता अच्छी बनी रहे जिससे कि बाजार में अच्छा भाव प्राप्त हो सकेI इसकी सफाई करके बाजार में बेच देना चाहिए। 

गाजर में जड़ों की पैदावार किस्म के प्रकार के अनुसार प्राप्त होती है जैसे कि एशियाटिक टाइप में 100 से 120 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त होती है तथा यूरोपियन टाइप में 40 से 50 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है।







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