हींग, जिसका नाम इसकी गंध (फोटिड) से मिलता है, भारत में एक शीर्ष मसाला है, जो हर साल ईरान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगभग 100 मिलियन अमरीकी डालर मूल्य की 1,200 टन कच्ची हींग का आयात किया जाता है।
इसका उपयोग न केवल दक्षिण में सांभर से लेकर उत्तर में कढ़ी तक व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है, बल्कि इसका उपयोग पाचन और आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी किया जाता है।
यह पेट फूलने के इलाज के लिए एक बड़ी सहायता है, और इसे ईरान और अफगानिस्तान में बैडियन (गैस या हवा) के रूप में जाना जाता है। उपयोग के लिए, सैप को आटे और गोंद अरबी के साथ मिलाया जाता है और अब इसे ज्यादातर पाउडर के रूप में बेचा जाता है, हालांकि इसे क्रिस्टल के रूप में भी बेचा जाता है।
भारत में आई हींग की खेती में तेजी किसानों को हो रहा लाखो का फायदा, आप भी इस आसान विधि से खेती कर कमाए लाखों। हींग की खेती करने के लिए मौसम थोड़ा ठंडा और नमी वाला होना जरूरी होता है। इसकी रोपाई के लिए भारतीय जलवायु के अनुसार अगस्त से सितंबर के बीच का समय सबसे बेहतर रहता है। हींग की 130 किस्में दुनियाभर में मौजूद है, भारत की जलवायु के मुताबिक 3 से 4 प्रजातियां उपयुक्त है।
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भारत में खाई जाने वाली ज्यादातर हींग का आयात अफगानिस्तान से ही होता है। जबसे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज हुआ है, तालीबानी सत्ता के कारण हींग की आपूर्ति में काफी कमी आई है।
CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी 2 में किए गए एक्सपेरिमेंट में भारत में भी हींग का उत्पादन संभव हो गया है। इंस्टीट्यूट द्वारा फेरुला हींग के बीजों का आयात करके लाहौल घाटी के क्वारिंग गांव में इसके पौधों की रोपाई (Asafoetida Farming in Lahaul) की गई थी जो की भारत की जलवायु में पनप सकता है। इसके बाद उत्तराखंड में भी हींग की खेती पर तेजी से काम चल रहा है।
हींग (Asafoetida) सौंफ़ की प्रजाति का एक ईरान मूल का पौधा (ऊंचाई 1 से 1.5 मी. तक) है। ये पौधे भूमध्यसागर क्षेत्र से लेकर मध्य एशिया तक में पैदा होते हैं। भारत में यह कश्मीर और पंजाब के कुछ हिस्सों में पैदा होता है। वहीं हींग का बाजार भाव 35000 रुपए प्रति किलो ग्राम है। हिंग एक सौंफ प्रजाति का पौधा है और इसकी लम्बाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है। प्रमुख तौर पर इसकी खेती अफगानिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ब्लूचिस्तान जैसे देशों में होती हैं। हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है।
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हींग इसके पौधे के जड़ से निकाले गए रस से तैयार किया जाता है। एक बार जब जड़ों से रस निकाल लिया जाता है तब हींग बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। खाने लायक गोंद और स्टार्च को मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार किया जाता है, इस तरह हींग बनता है।
हींग के पौधे को छायादार जगह पर रखें तेज, धूप में रखने के बजाय सुबह वाली धुप में इसे बाहर रख दें। 2 घंटे बाद इसे अंदर ले आएं और किसी छायादार जगह पर रख दें। ध्यान रखें कि यह पौधा ठंडी जगह पर लगाया जाता है, ऐसे में अगर आप इसे तेज धूप में रखेंगे तो यह नष्ट हो सकता है।