केंद्र सरकार में योजना के जरिये आर्थिक सहायता एवं राज्य सरकार की पहल से कस्टम हायरिंग सेंटर भी निर्मित किये गए। जहां से किसानों ने कम खर्च में उपकरण लेकर पराली का समुचित प्रबंधन किया। खरीफ सीजन के दौरान भारत में धान की कटाई के हेतु पराली को ठिकाने लगाना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तथा कृषि वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों ने एकजुट होकर पराली का समुचित प्रबंधन कैसे किया जा सकता है इससे संबंधित समाधान निकाले है एवं सही उपाय विभिन्न योजनाएं भी जारी की हैं। ऐसी कोशिशों से पराली जलाने की दिक्क्त समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। हालाँकि ऐसे मामलों में बहुत हद तक घटोत्तरी देखने को मिली है।
इसी क्रम में केंद्र सरकार भी वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने व किसानों को इस पराली द्वारा लाभ प्रदान करने हेतु ३.००० करोड़ रुपये जारी कर चुकी है। इस धनराशि को पांच वर्षों हेतु जारी किया गया था, जिसे फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन हेतु व्यय किया जाना था। इसी बजट के द्वारा कृषकों को अनुदान आधारित लाभ प्रदान कराने हेतु योजना चलाई गई। इस कदम का प्रमुख लक्ष्य था, इन-सीटू प्रबंधन के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन देना एवं वायु प्रदूषण को बढ़ने से रोकना। अब आपको इस लेख में बताएंगे कि ५ वर्ष के लिए जारी की गई ३.००० करोड़ की धनराशि से कितना कुछ बदला है।
इन-सीटू हेतु कृषि मशीनीकरण को प्रोत्साहन देने वाली केंद्रीय योजना उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में जारी की गई थी। इस योजना के जरिये फसल अवशेषों के समुचित प्रबंधन हेतु किसानों को उपकरण खरीदी हेतु प्रेरित करना है, इसलिए सरकार ५० से ८० फीसद तक आर्थिक सहायता देती है। इस योजना के जरिये कृषकों को मशीनरी के खर्च पर ५० प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। साथ ही, किसानों की सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को मशीनरी के खरीद हेतु ८० फीसद तक के अनुदान का प्रावधान है। इन योजनाओं के माध्यम से विगत ५ वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में काफी हद तक कमी हुई है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन योजना (Crop Residue Management Scheme) के जरिये २०१८-१९ से १०१०-२३ पांच साल हेतु ३.०६२ करोड़ रुपये जारी किए गए थे। जिसके चलते पंजाब सरकार, NCR राज्य सरकारों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में पराली का समुचित एवं व्यवस्थित प्रबंधन करना था। बतादें कि, इसका अच्छा प्रभाव यह देखने को मिला है, कि उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बेहद कमी आई हैं। परंतु पंजाब राज्य में अत्यधिक मात्रा में पराली जलाने से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र एक गैस चैंबर में तब्दील हो गया। परंतु पिछले वर्ष के तुलनात्मक यहां बेहद कम घटनाएं देखी गई हैं, जिसकी मुख्य भूमिका में सरकार की बेहतर योजनाएं एवं सख्त कानूनों की भूमिका है।