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बौछारी सिंचाई प्रणाली क्या है? What Is Sprinkle Irrigation System?

By : Tractorbird News Published on : 08-Jan-2023
बौछारी

बौछारी सिंचाई प्रणाली के नाम से ही पता चल रहा है की इस विधि में फसलों को बानी वर्षा की तरह पाइप या नाली के माध्यम से दिया जाता है। इस विधि से फसल को बहुत फायदा होता है। 

अगर फसल के पत्तियों पर किसी बीमारी के जीवाणु होते है वो भी बौछारी सिंचाई प्रणाली के माध्यम से धूल जाते है यह विधि रेतीली मिट्टी के लिए बहुत ज्यादा कारगर है। 

क्युकि रेतीली मिट्टी में हम अगर खुला पानी देते है तो पानी मिट्टी की निचली सतह में चला जाता है इस बौछारी सिंचाई प्रणाली के माध्य्म से रेतीली और ऊंची - नीची जमीं में भी सिंचाई करना आसान है। हम इस लेख के माध्यम से आप को बौछारी सिंचाई प्रणाली के पूरी जानकारी दंगे। 

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बौछारी सिंचाई प्रणाली के मुख्य घटक कौन- कौन से होते है?

बौछारी सिंचाई पद्धति में मुख्य भाग पम्प, मुख्य नली, बगल की नली, पानी उठाने वाली नली एवं पानी छिड़कने वाला फुहारा होता है।

बौछारी सिंचाई प्रणाली की क्रिया विधि क्या है?

  • बौछारी सिंचाई में नली में पानी दबाव के साथ पम्प द्वारा भेजा जाता है जिससे फसल पर फुहारा द्वारा छिड़काव होता है। मुख्य नली बगल की नलियों से जुड़ी होती है। बगल की नलियों में पानी उठाने वाली नली जुड़ी होती है।पानी उठाने वाली नली जिसे राइजर पाइप कहते है, इसकी लम्बाई फसल की लम्बाई, पर निर्भर करती है। 
  • क्योंकि फसल की ऊंचाई जितनी रहती है राइजर पाइप उससे ऊंचा हमेशा रखना पड़ता है। इसे सामान्यतः फलस की अधिकतम लम्बाई के बराबर होना चाहिए। पानी छिड़कने वाले हेड घूमने वाले होते है जिन्हें पानी उठाने वाले पाइप से लगा दिया जाता है।
  • पानी छिड़कने वाले यंत्र भूमि के पूरे क्षेत्रफल पर अर्थात फसल के ऊपर पानी छिड़कते है। दबाव के कारण पानी काफी दूर तक छिड़क जाता है। जिससे सिंचाई होती है।

बौछारी सिंचाई से लाभ (Advantages of sprinkler irrigation)

  • बौछारी सिंचाई के कई लाभ हैं। सतही सिंचाई में पानी खेत तक पहुँचने में 15-20 प्रतिशत दूर तक अनुपयोगी रहता है। नहर के पानी से यह हानि 30-50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और सतही सिंचाई में एकसा पानी नहीं पहुँचता जबकि बौछारी सिंचाई से सिंचित क्षेत्रफल 1.5 - 2 गुना बढ़ जाता है| अर्थात इस विधि से सिंचाई करने पर 25-50 प्रतिशत तक पानी की सीधे बचत होती है।
  • जब पानी वर्षा की भांति छिड़का जाता है तो भूमि पर जल भराव नहीं होता है जिससे मिट्टी की पानी सोखने की दर की अपेक्षा छिड़काव कम होने से पानी के बहने से हानि नहीं होती है।
  • जिन जगहों पर भूमि ऊंची-नीची रहती है वहॉ पर सतही सिंचाई संभव नहीं हो पाती उन जगहों पर बौछारी सिंचाई वरदान साबित होती है।
  • बौछारी सिंचाई बलुई मिट्टी एवं बुन्देलखण्ड जैसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त विधि है साथ ही यह अधिक ढाल वाली तथा ऊंची-नीची जगहों के लिए सर्वोत्तम विधि है। इन जगहों पर सतही विधि से सिंचाई नहीं की जा सकती है।
  • इस विधि से सिंचाई करने पर मृदा में नमी का उपयुक्त स्तर बना रहता है जिसके कारण फसल की वृद्धि उपज और गुणवत्ता अच्छी रहती है।
  • इस विधि में सिंचाई के पानी के साथ घुलनशील उर्वरक, कीटनाशी तथा जीवनाशी या खरपतवारनाशी दवाओं का भी प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
  • पाला पड़ने से पहले बौछारी सिंचाई पद्धति से सिंचाई करने पर तापक्रम बढ़ जाने से फसल का पाले से नुकसान नहीं होता है।
  • पानी की कमी, सीमित पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में दुगना से तीन गुना क्षेत्रफल सतही सिंचाई की अपेक्षा किया जा सकता है।
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रखरखाव एवं सावधानियाँ

  • बौछारी सिंचाई के प्रयोग के समय एवं प्रयोग के बाद परीक्षण कर लेना चाहिए और कुछ मुख्य सावधानियाँ रखने से सेट अच्छी तरह चलता है। जैसे - प्रयोग होने वाला सिंचाई जल स्वच्छ तथा बालू एवं अत्यधिक मात्रा घुलनशील तत्वों से युक्त होना चाहिए तथा उर्वरकों, फफूंदी/खरपतवार नाशी आदि दवाओं के प्रयोग के पश्चात सम्पूर्ण प्रणाली को स्वच्छ पानी से सफाई कर लेना चाहिए।
  • प्लास्टिक वाशरों को आवश्यकतानुसार निरीक्षण करते रहना चाहिए और बदलते रहना चाहिए। रबर सील को साफ रखना चाहिए तथा प्रयोग के बाद अन्य फिटिंग भागों को अलग कर साफ करने के उपरान्त शुष्क स्थान पर भण्डारित करना चाहिए।

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