आज से लगभग 5000 वर्ष पहले भारत में कुक्कुट पालन का उद्योग शुरू हुआ था। मौर्य साम्राज्य का एक बड़ा उद्योग कुक्कुट पालन था। 19वीं शताब्दी से ही इसे वाणिज्यिक उद्योग के रूप में देखा गया था। कुक्कुट पालन में विभिन्न प्रकार की मुर्गियों की नस्लों का पालन करके उनके अंडे और चिकन का उत्पादन किया जाता है। किसानों को भी फसलों के विविधिकरण और मिश्रित खेती में मुर्गी पालन फायदेमंद है।
यह व्यवसाय परिवार के पालन-पोषण में काफी मदद कर सकता है यदि मुर्गियों में कोई बीमारी नहीं होती और मुर्गियों का अच्छा मूल्य मिलता है। क्षेत्र में कई किसान कृषि के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करते हैं, जैसे पशुपालन, हैचरी, मछली पालन, मुर्गी पालन, वर्मी कंपोष्ट और पशुपालन।
यह नस्ल राजस्थान, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह नस्ल भारत से बाहर भी ईरान में मिलती है, जहाँ इसे अलग नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन उत्कृष्ट है। मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं क्योंकि उनका व्यवहार विवादित है। मुर्गी दो से चार किलोग्राम वजन की होती है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों के चमकीले बाल और लंबे पैर होते हैं। Мурगी अंडे नहीं देती है।
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी था, जिसका अर्थ है काले मांस वाला पक्षी। कड़कनाथ जाति मूलतः मध्य प्रदेश में रहती है। इस नस्ल का मीट दूसरी नस्लों से अधिक प्रोटीन से भरपूर है। कड़कनाथ नस्ल का मीट कई प्रकार की दवा बनाने में भी प्रयोग किया जाता है, इसलिए यह व्यवसाय के लिए बहुत फायदेमंद है। यह मुर्गियां हर साल 80 अंडे देती है। जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन इस नस्ल की प्रमुख किस्में हैं।
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भारत सरकार ने हैदराबाद में अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत ग्रामप्रिया को बनाया है। यह खास तौर पर जनजातीय और ग्रामीण कृषि विकल्पों के लिए बनाया गया है। 12 हफ्तों में इनका वज़न 1.5 से 2 किलो होता है। तंदूरी चिकन बनाने में इनका मीट अधिक प्रयोग किया जाता है। ग्रामप्रिया प्रति वर्ष 210–225 अण्डे देती है। इनके अण्डे भूरे रंग के होते हैं और 57 से 60 ग्राम वजन के होते हैं।
कर्नाटक पशु चिकित्सा और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलौर ने स्वरनाथ चिकन की एक नस्ल विकसित की है। घर के पीछे इन्हें पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूरी तरह से परिपक्व हो जाती हैं और 3 से 4 किलोग्राम वज़न होता है। इनकी प्रतिवर्ष 180–190 अंडे बनाने की क्षमता है।
All India Coordinating Research Project ने इस बहुआयामी चिकन नस्ल को असम में कुक्कुट उत्पादन को बढ़ाने के लिए विकसित किया है। यह चिकन क्रॉस तीन अलग-अलग चिकन नस्लों से आता है: असम स्थानीय (25%), रंगीन ब्रोइलर (25%) और ढेलम लाल (50%)। 40 हफ्तों में, इसके नर चिकन का वज़न 1.8 से 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रति वर्ष लगभग 118-130 अंडे देने की क्षमता है, जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
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यह नस्ल सबसे अच्छी है। यह मलय चिकन भी कहलाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट लंबे होते हैं और 4.5 से 5 किलोग्राम वजन करते हैं। बाकी नस्लों की तुलना में इनके पैर और गर्दन लंबे होते हैं। ये नस्ल 70 से 120 अण्डे प्रति वर्ष दे सकती है।
यह कड़कनाथ और कैरी लाल से क्रास है। जनजातीय समुदाय इस किस्म के आंतरिक अंगों को मानवीय बीमारियों के इलाज में प्राथमिकता देता है क्योंकि उनमें गहरा रंगद्रव्य होता है। यह अधिकतर मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में है। यह नस्ल 24 सप्ताह में पूरी तरह से विकसित हो जाती है और मादा 1.2 किलोग्राम और नर 1.5 किलोग्राम वज़न का होता है। इनकी प्रजनन क्षमता लगभग 85 अण्डे प्रति वर्ष है।
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती हैंऔर प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती हैं। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।