इस कर्यक्रम में देश भर के वैज्ञानिकों ने शुष्क भूमि कृषि के लिए अच्छी उपज देने वाली किस्मों को प्रोत्साहित करने, विकसित करने और किसानों के बीच संकट को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया।
आईसीएआर - सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर (सीआरआईडीए) में शुरू हुए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का मुख्य रूप से "वर्षा आधारित कृषि-पारिस्थितिक तंत्र की पुनर्कल्पना: चुनौतियां और अवसर" में किसानों के लिए लागत को कम करने के लिए फसलों को स्थानांतरित करने के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित किया गया था। यहाँ गुरुवार को सीआरआईडीए में आयोजित किया गया। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (झांसी) के मुख्य अतिथि के कुलाधिपति पंजाब सिंह थे। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधी किस्मों को विकसित करें जो कम पानी की खपत करें और उत्पादन बढ़ाएं जिससे किसानो को मुनाफा हो सके।
उन्होंने कहा की “शुष्क भूमि कृषि को बेहतर बनाने में CRIDA का योगदान बहुत अधिक है। यह एक दुर्लभ संस्थान है। भारत ही नहीं, अन्य देशों को भी इससे लाभ हुआ है, उन्होंने कहा “हमारे देश का विकास शुष्क भूमि की खेती पर हमारे ध्यान पर निर्भर है'' । लगभग 50% भूमि सूखी है और सिंचित क्षेत्रों की तुलना में, शुष्क भूमि में तेजी से कृषि विकास की अधिक संभावना है," उन्होंने कहा, उत्पादकता में बदलाव और वृद्धि की आवश्यकता है । उन्होंने किसानों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी जोर दिया। जिससे किसान नयी तकनीकों को अपना के अच्छी पैदावार प्राप्त कर सके।
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उप महानिदेशक, राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), सुरेश कुमार चौधरी ने वर्चुअल कार्यक्रम में भाग लिया।
कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने कहा कि वैज्ञानिकों ने 700 से अधिक रेसिलेंट किस्मों का विकास किया है और शुष्क भूमि की खेती को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने शुष्क भूमि किसानों की आय बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सीआरआईडीए के निदेशक वी.के.सिंह ने की।