बार्नयार्ड बाजरा एक सूखा सहिष्णु फसल है और इसलिए इसे वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है। यह आंशिक रूप से जलभराव की स्थिति में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसे समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है। बार्नयार्ड बाजरा उगाने के लिए गर्म और मध्यम आर्द्र जलवायु अच्छी होती है। यह एक कठोर फसल है और अन्य अनाजों की तुलना में मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों का बेहतर सामना करने में सक्षम है।
मिट्टी: बार्नयार्ड बाजरा की खेती आमतौर पर सीमांत उर्वरता वाली मिट्टी में की जाती है। इसे आंशिक रूप से पानी में उगाया जा सकता है। ये फसल रेतीली दोमट से पर्याप्त मात्रा में कार्बनक पदार्थ वाली दोमट मिट्टी पर सबसे अच्छी उपज देती है। कम उर्वरता वाली मिट्टी और पथरीली मिट्टी फसल को उगाने के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
फसल की बुवाई करने से पहले खेत को तैयार करना पड़ता है। खेत की तैयारी के लिए स्थानीय हल से दो जुताई या हैरो से पाटा लगाना पर्याप्त होता है। इस फसल की बुवाई मानसून के आगमन पर ही की जाती है। यदि आपके यहाँ सिंचाई की सुविधा है तो पलेवा कर के भी बुवाई की जा सकती है।
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बार्नयार्ड बाजरा की बुवाई जुलाई के पहले पखवाड़े में मानसून की बारिश के साथ की जा सकती है।
बीज को 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 सेंटीमीटर गहरे खांचे में बिखेरा या ड्रिल किया जाता है। इसे 25 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोना हमेशा बेहतर होता है। बाढ़ में प्रभावित क्षेत्रों में, इसे वर्षा की पहली फुहारों के साथ प्रसारण विधि से बोया जाता है।
कम्पोस्ट या गोबर की खाद 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। इसे 40 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो P2O5 और 50 किलो K2O प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। बुवाई के समय सारी खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए। सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग करनी चाहिए।
साधारणतय बरानी बाजरा को किसी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, अगर लंबी अवधि के लिए शुष्क दौर रहता है, तो फिर एक सिंचाई पुष्पगुच्छ निकलने की अवस्था के समय दी जानी चाहिए।
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खरपतवार नियंत्रण
बिजाई के 25-30 दिनों तक खेत को नदीन मुक्त रखना चाहिए। बाजरा के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो निराई पर्याप्त है। लाइन में बोई गई फसल की बुवाई निराई-गुड़ाई हैंड हो या व्हील हो से की जा सकती है।
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फसल के पक जाने पर उसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। दरांती की मदद से इसे जमीनी स्तर से काटा जाता है, और थ्रेशिंग से पहले लगभग एक सप्ताह के लिए खेत में ढेर लगा दें।
अनाज की औसत उपज 400 से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और चारे या पुआल की लगभग 1200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। उन्नत पैकेज ऑफ प्रैक्टिस से प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल अनाज की फसल प्राप्त करना संभव है।