बथुआ की खेती कैसे की जाती है ?

By : Tractorbird News Published on : 21-Jan-2025
बथुआ

बथुआ एक खरपतवार के रूप में जाना जाता है, जो की गेहूं की फसल को नुकसान पहुँचाता हैं। बथुआ का इस्तेमाल हरी सब्जी के रूप में भी किया जाता हैं। बथुआ बहुत पोषक तत्वों से भरपूर हरी पत्तेदार सब्जी है। 

यह पौधा सर्दियों में उगाया जाता है और पत्तेदार सब्जी बनाने में उपयोग किया जाता है। भारतीय किसानों को बथुआ की खेती से अच्छी आय मिल सकती है। 

आज के इस लेख में हम आपको बथुआ की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

बथुआ में पोषक तत्व

  • बथुआ पोषक तत्वों से भरपूर है और सर्दियों में उत्तर भारत में सबसे सस्ता उपलब्ध है। 
  • यह आहार फाइबर का अच्छा स्रोत है और विटामिन ए, विटामिन सी, फोलिक एसिड और राइबोफ्लेविन के साथ-साथ आयरन, कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे खनिजों का भंडार है, इसलिए एनीमिया की समस्या पर काबू पाने के लिए उपयुक्त है। 

बथुआ का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है?

  • इसकी पत्तियों को ताजा और सूखे दोनों रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कसूरी मेथी, गेहूं के आटे के साथ रोटी / पूरी / परांठा आदि के रूप में। 
  • बथुआ के हरे पत्ते जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। 
  • बथुआ का उपयोग एक संभावित सब्जी के साथ-साथ नए क्षेत्रों में कृषि के विविधीकरण, पर्यावरणीय स्थिरता और दुनिया के कई हिस्सों में मानव में पोषण की कमी से निपटने के लिए चारे के रूप में किया जा सकता है।

बथुआ की खेती के लिए जलवायु 

  • बथुआ एक ठण्ड के मौसम में उगने वाला खरपतवार है तो इसकी खेती रबी के मौसम में आसानी से की जा सकती हैं। 
  • आपकी जानकारी के लिए बता दें की आमतौर पर, बथुआ की बुवाई का सही समय अक्टूबर से दिसंबर तक होता है। 
  • इस दौरान तापमान 15°C से 25°C के बीच रहता है, जो पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए जरूरी है।

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बथुआ की उन्नत किस्में 

पुसा बथुआ1:

  • यह पहली उन्नत किस्म है जो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सब्जी विज्ञान प्रभाग द्वारा विकसित की गई है। 
  • यह एक मल्टीकट किस्म है, जिसमें बड़े आकार और गहरे हरे रंग की पत्तियां होती हैं।
  • पौधों की ऊंचाई 22.5 मीटर होती है।
  • पत्तियां हल्के लाल और तनों पर लाल रंग का पिगमेंटेशन होता है।
  • कोमल पत्तियों की कटाई रोपाई के 45 दिन बाद की जा सकती है।
  • यह स्थानीय बाजार में उपलब्ध बथुआ की तुलना में 60% अधिक विटामिन सी और 10% अधिक बीटाकैरोटीन से भरपूर है।
  •  बुवाई के 150 दिन बाद पौधे की ऊंचाई 1.82 मीटर तक हो सकती है।
  •  इसका औसत हरी पत्तियों का उत्पादन 30 टन प्रति हेक्टेयर है।

पुसा ग्रीन:

  • यह भी एक मल्टीकट किस्म है, जिसमें बड़े आकार और गहरे हरे रंग की पत्तियां होती हैं। 
  • इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सब्जी विज्ञान प्रभाग द्वारा विकसित किया गया है और इसे केंद्रीय किस्म रिलीज़ समिति द्वारा एनसी दिल्ली में खेती के लिए अधिसूचित किया गया है।
  •  यह 36.8 टन/हेक्टेयर पत्तियों की उपज देती है।
  •  इसे अक्टूबर में सीधे बुवाई और नवंबर में रोपाई के लिए उपयुक्त माना गया है।
  •  पौधों की वृद्धि बहुत अच्छी होती है।
  •  पत्तियां चिकनी और आकर्षक गहरे हरे रंग की होती हैं, जिनमें मध्यम लोबिंग और क्रीज होती है।
  •  पत्तियों का आकार बड़ा होता है, जिसकी लंबाई 18 सेमी और चौड़ाई 9 सेमी होती है।
  • इसमें कुल कैरोटिनॉयड 91.31 मिग्रा/100 ग्राम, लोहा 7.6 मिग्रा/100 ग्राम, 13% सूखा पदार्थ, और एस्कॉर्बिक एसिड 50 मिग्रा/100 ग्राम ताजे वजन के आधार पर पाया जाता है।
  • यह बुवाई के 150 दिन बाद 22.5 मीटर तक ऊंचा हो सकता है।
  • इसमें लेट बोल्टिंग होती है और इसे रोगों और कीटों से कम नुकसान होता है।

काशी बथुआ 2:

  • यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है, जिसमें 36.7 टन/हेक्टेयर उपज क्षमता है। इस किस्म की पत्तियां, डंठल और तना हरे रंग का होता है।
  • पौधों की वृद्धि शानदार होती है और यह बुवाई के 40 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाता है।
  •  कटाई 120 दिनों तक नियमित अंतराल पर की जा सकती है।
  •  पत्तियों में 15.2% सूखा पदार्थ पाया जाता है।
  •  यह विटामिन सी (21.2% अधिक), विटामिन ए, फोलिक एसिड, और खनिज पदार्थों का स्रोत है।
  •  इसमें जंगली बथुआ की तुलना में 30% अधिक फेनोलिक्स और 43.1% अधिक एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।
  •  यह 160 दिन की बुवाई के बाद 1.81.95 मीटर की ऊंचाई प्राप्त कर सकता है।
  •  इसे उत्तर प्रदेश में अधिसूचित किया गया है।

काशी बथुआ 4:

  • यह उच्च उपज देने वाली किस्म है, जिसकी उपज क्षमता 40.7 टन/हेक्टेयर है।
  • इसमें शुरुआती विकास के दौरान बैंगनीहरी पत्तियां और डंठल होते हैं।
  • प्रारंभिक अवस्था में गांठों पर गुलाबी रंग का पिगमेंटेशन होता है।
  • फूल आने के समय तना पूरी तरह से गुलाबी रंग में बदल जाता है।

बथुआ की बुवाई का तरीका और बीज दर

  • बथुआ की बुवाई के लिए भूमि को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए। भूमि की 2 से 3 बार हैरो से अच्छे से बुवाई कर लेनी चाहिए। 
  • इसकी बाद बथुआ की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 4-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोएं और हल्की मिट्टी से ढक दें। 

बथुआ की कटाई कब करें 

  • 45 से 60 दिनों में बथुआ की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्तियों को कोमल और ताजे होने पर काटें। 
  • पुराने पत्ते सख्त हो जाते हैं और स्वाद कम हो जाता है। ताजगी के लिए, सुबह या शाम की कटाई करें।

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