भारत में सौंफ की खेती मुख्य रूप से मसाले के रूप में की जाती है I सौंफ के बीजों से तेल भी निकाला जाता है, इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में की जाती है।
इसकी खेती शरद ऋतु में अच्छी तरह से की जाती है, फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है I बीज बनते समय अधिक ठंडक की आवश्यकता नहीं पड़ती है I सौंफ की खेती बालुई भूमि को छोड़कर हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन जल निकास का उचित प्रबंध होना अति आवश्यक है, फिर भी दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है।
सौंफ की बहुत सी किस्में पाई जाती हैं जैसे कि सी.ओ.1, गुजरात फनेल 1, आर.ऍफ़ 35,आर.ऍफ़101,आर.ऍफ़125, एन पी.डी. 32 एवं एन पी.डी.186, एन पी.टी.163, एन पी. के.1, एन पी.जे.26, एन पी.जे.269 एवं एन पी.जे131, पी.ऍफ़ 35, उदयपुर ऍफ़ 31, उदयपुर ऍफ़ 32, एम्. एस.1 तथा जी.ऍफ़.1 आदि है।
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पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके खेत को समतल बनाकर पाटा लगते हुए एक सा बना लिया जाता है ी आख़िरी जुताई में 150 से 200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद को मिलाकर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लिया जाता हैI
बीज द्वारा सीधे बुवाई करने पर लगभग 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है I पौध दवारा रोपाई करने पर लगभग 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है।
अक्टूबर माह बुवाई के लिए सर्वोत्तम माना जाता है I लेकिन १५ अक्टूबर से नवम्बर तक बुवाई कर देना चाहिए I बुवाई लाइनो में करनी चाहिए तथा छिटककर भी बुवाई की जाती है I तथा लाइनों में इसकी रोपाई भी की जाती है I रोपाई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए I जब पौध रोपण दवारा खेती की जाती है तो 7 से 8 सप्ताह पहले रोपाई से पौध डालकर की जाती है।
150 से 200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद के साथ-साथ 80 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए I नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आख़िरी जुताई के समय देना चाहिए तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा की 1/2 बुवाई के 60 दिन बाद तथा शेष 1/2 भाग 90 दिन बाद खड़ी फसल में देना चाहिए।
पौध रोपाई के बाद पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए I बीज बनते तथा पकते समय आवश्यक सिंचाई करनी चाहिए I
पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना आवश्यक रहता है तथा 45 से 50 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता हैI बड़ी फसल होने पर निराई-गुड़ाई करते समय पौधे टूटने का भय रहता है।
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सौंफ में पाउडरी मिल्ड्यू, उकठा या विल्ट रोग लगते हैI इनको रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत जल ग्राही सल्फर अथवा 0.06 प्रतिशत कैराथीन के घोल का छिड़काव करना चाहिए तथा अवरोधी प्रजातियों का भी प्रयोग करना चाहिए I
सौंफ में अधिकतर माहू तथा पत्ती खाने वाले कीट लगते हैं। इनको नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बारिल घोल का छिड़काव करना चाहिए I
सौंफ के अम्बेल जब पूरी तरह विकसित होकर और बीज पूरी तरह जब पककर सूख जाएं तभी गुच्छों की कटाई करनी चाहिए I कटाई करके एक से दो दिन सूर्य की धुप में सुखाना चाहिए तथा हरा रंग रखने के लिए 8 से 10 दिन छाया में सूखाना चाहिए I हरी सौंफ प्राप्त करने हेतु फसल में जब अम्बेल के फूल आने के 30 से 40 दिन गुच्छों की कटाई करनी चाहिए I कटाई के बाद छाया में ही अच्छी तरह सूखा लेना चाहिए I
जब पूरे बीजों की कटाई करते हैं तो 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है और जब कुछ हरे बीज प्राप्त करने के बाद पकाकर फसल काटते हैं तो पैदावार कम होकर 9 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रह जाती है I