सम्पूर्ण भारत में मटर का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। उत्तर प्रदेश में मटर की खेती अत्याधिक क्षेत्र में की जाती है। मटर एक रबी की फसल है मटर की खेती ठंडी जलवायु में की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रो में जहाँ ठंडक रहती है वहाँ पर इसकी खेती गर्मियों में भी की जाती है। मटर की खेती देश के कई राज्यों में की जाती है। भारत में मटर की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार एवं कर्नाटक में अधिक की जाती है।
मटर की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती हैI मटर की खेती के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक का मौसम बुवाई हेतु उत्तम रहता हैी मटर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट एवं बालुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैI अच्छे साधनो की उपलब्धता होने पर सभी प्रकार की भूमि में पैदावार ली जा सकती है। मटर की खेती काली दोमट मिट्टी में भी की जा सकती है।
मटर की किस्में समय के आधार पर अलग-अलग पाई जाती है। मटर की अगेती किस्में है - अगेता -6, अर्किल, पंत सब्जी मटर3 एवं आजाद पी.3 आदि और माध्यम एवं पिछेती किस्में है आजाद पी.1, बोनविले, जवाहर मटर1, आजाद पी.2 है।
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खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में तीन-चार जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से की जाती है। खेत की मिट्टी को भली भांति समतल कर भुरभुरा बना लेना चाहिए और आख़िरी जुताई करने के बाद पाटा अच्छी तरह से लगाकर नमी को दबा देना चाहिए जिससे बुवाई के समय नमी अच्छी तरह बनी रह सकेI
मटर की खेती में अगेती किस्मों के लिए 50 से 60 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगता हैI मध्य एवं पिछेती किस्मों में 40 से 50 किलोग्राम प्रति बीज लगता हैI बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मेन्कोजेब से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिएI बीज शोधन के बाद एक पैकेट या 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर छाया में सुखाने के बाद ही बुवाई करनी चाहिए।
मटर की खेती में अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक करनी चाहिए I मध्य एवं पिछेती प्रजातियों की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करनी चाहिएI बुवाई लाइनो में हल के पीछे 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए लाइन से लाइन की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है। बुवाई के बाद अधिक घना होने पर जमाव के बाद विरला कर देना चाहिए।
फसल में पोषण प्रबंधन
आख़िरी जुताई में खेत तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद भली भाँति मिला देना चाहिए। मटर की खेती में अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस तथा 15 किलोग्राम पोटाश अवश्य डालें। आधी मात्रा नाइट्रोजन की पूरी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की बुवाई के समय खेत की मिट्टी में डालें तथा शेष आधी मात्रा नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 25 से 30 दिन बाद देना चाहिए।
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मटर की खेती में अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि मटर एक कम पानी चाहने वाली फसल है। लेकिन इसकी बुवाई पलेवा करके अच्छी नमी में करनी चाहिएI इसमे आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए लेकिन फसल में फूल आने पर तथा फलियों में दाना पड़ते समय अच्छी नमी रहना अति आवश्यक है।
फसल की प्रारंभिक अवस्था में सिंचाई से पहले हल्की निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए I मटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण में देर करने पर फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता हैI जिन खेतों में अधिक खरपतवार उगते हैं वहाँ पर रसायनों का प्रयोग करना चाहिए जैसे कि बुवाई के बाद एक-दो दिन के अंदर ही जमाव के पहले पेंडीमेथलीन की 3.3 लीटर मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करना चाहिए।
मटर की खेती में फूल आने के तीन सप्ताह बाद फलियां तुड़ाई योग्य हो जाती है। फलियां तैयार होने पर सामान्यतः 7 से 10 दिन के अंतराल पर 3 से 4 तुड़ाई करनी चाहिए। अगेती किस्मों में फलियों की पैदावार 20 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ तथा मध्य एवं पिछेती किस्मों की पैदावार 40 से 60 कुंटल प्रति एकड़ प्राप्त होती है।