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पपीता एक शीघ्र तैयार होने वाला फायदेमंद फल है। इसमें बहुत ही पौष्टिक गुण हैं हमारे देश में घर की वाटिका में पपीता उगाना आम है। शीतकटिबन्धीय क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश में इसकी खेती की जाती है, लेकिन अब इसकी खेती व्यवसायिक रूप से की जाती है।
यह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है इसमें पैक्टिन और पपेन होते हैं पपेन एक दवा है पपीते के कच्चे फलों से पेन निकलता है। एक बार लगाने पर दो फसल मिलती हैं। इसकी कुल आयु पौने तीन वर्ष है। इस लेख में हम आपको पपीते की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। पपीते की खेती की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।
पपीते की उन्नतशील प्रजातियाँ
उन्नतशील प्रजातियाँ जैसे की पूसा डेलीसस 1-15, पूसा मैजिस्टी 22-3, पूसा जायंट 1-45-वी, पूसा ड्वार्फ1-45-डी, पूसा नन्हा या म्युटेंट डुवार्फ, सी०ओ०-1, सी०ओ०-2, सी०ओ०-3, सी०ओ०-4, कुर्ग हनी, एवम हनीडीयू जैसी उन्नतशील प्रजातियाँ उपलब्ध है।
पपीते की पौध किस प्रकार तैयार करें?
पपीते की खेती में पौध तैयार करने के लिए पहले पौधे 3 मीटर लम्बी 1 मीटर चौड़ी तथा 10 सेमी० ऊँची क्यारी में या गमले या पालीथीन बैग में पौध तैयार करते हैंI बीज क़ी बुवाई से पहले क्यारी को 10% फार्मेलड़ीहाईड के घोल का छिडकाव करके उपचारित करते हैंI इसके बाद बीज 1 सेमी० गहरे तथा 10 सेमी० क़ी दूरी पर बीज बोते हैं इन पौधों को रोपाई हेतु 60 दिन बाद जब 15-25 सेमी० ऊँचे हो जाये तब इनकी पौध की रोपाई करनी चाहिए।
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जल प्रबंधन
पपीता के लिए सिंचाई का उचित प्रवंन्ध होना आवश्यक है गर्मियों में 6 से 7 दिन के अन्तराल पर तथा सर्दियों में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए वर्षा ऋतू में पानी न बरसने पर आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई का पानी पौधे के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिएI
लगातार सिंचाई करते रहने से खेत के गढ़ढ़ो क़ी मिट्टी बहुत कड़ी हो जाती हैI जिससे पौधे क़ी वृद्धि पर कुप्रभाव पड़ता है। अत: हर 2- 3 सिंचाई के बाद थालो क़ी हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे भूमि में हवा एवं पानी का अच्छा संचार बना रहे।
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पपीते के पौधों में मुजैक,लीफ कर्ल ,डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ एवं तना सडन ,एन्थ्रेक्नोज एवं कली तथा पुष्प वृंत का सड़ना आदि रोग लगते हैं I इनके नियंत्रण में वोर्डोमिक्सचर 5:5:20 के अनुपात का पेड़ों पर सडन गलन को खरोचकर लेप करना चाहिए ी अन्य रोग के लिए व्लाईटाक्स 3 ग्राम या डाईथेन एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए अथवा कापर आक्सीक्लोराइट 3 ग्राम या व्रासीकाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
पपीते के पौधों को कीटों से कम नुकसान पहुचता है फिर भी कुछ कीड़े लगते हैं जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि हैI नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है।
फलों के पकने पर चिडियों से बचाना अति आवश्यक है अत: फल पकने से पहले ही तोडना चाहिए जब फलों के ऊपरी सतह पर खरोच कर देखे तो दूध जैसा तरल पदार्थ क़ी पानी जैसा निकले और फल का रंग परिवर्तित होने लगे तब समझ लेना चाहिए कि फल पक गए हैं और तुड़ाई कर लेनी चाहिए फलों को तोड़ते समय किसी प्रकार कि खरोच या दाग धब्बे आदि न पड़ने पाए नहीं तो फल सड़कर ख़राब हो जाते हैं।
फलों को सुरक्षित तोड़ने के बाद फलो पर कागज या अखबार आदि से लपेट कर अलग-अलग प्रति फल को किसी लकड़ी या गत्ते के बाक्स में मुलायम कागज क़ी कतरन आदि को बिछाकर फल रखने चाहिए और बाक्स को बन्द करके बाजार तक भेजना चाहिए ताकि फल ख़राब न हो और अच्छे भाव बाजार में मिल सके।
पपीते की पैदावार मिट्टी किस्म, जलवायु और उचित देखभाल पर निर्भर करती है समुचित व्यवस्था पर प्रति पेड़ एक मौसम में औसत उपज में फल 35-50 किग्रा प्राप्त होते हैं तथा 15-20 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है।