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पूरे भारतवर्ष में मेथी कि खेती की जाती है। मेथी अपने विविध उपयोगों के कारण व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मसाला फसल है। मेथी को बीज, कोमल अंकुर और ताजी पत्तियों के लिए देश के लगभग हर हिस्से में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है।
इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता हैI इसकी खेती मुख्यरूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में की जाती हैI मेथी में प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन ए एवं विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैI
मेथी की उन्नतशील किस्में जैसे कि पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मेंथी, लेम सेलेक्सन1, राजेंद्र क्रांति, हिसार सोनाली, पंत रागनी, एम् एच-103, सी.ओ-1, आर.ऍम टी-1 एवं आर.ऍम टी-143 आदि है।
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खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद, दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके, खेत में पाटा लगाकर समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की आखिरी जुताई में 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को मिला देना चाहिएI
मेथी की बुवाई में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है, कसूरी मेथी की बुवाई में मात्र 20 किलोग्राम ही बीज प्रति हेक्टेयर लगता हैI बीजशोधन थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या बेविस्टीन 2 ग्राम या सेरोसेन या केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित कर बुवाई करनी चाहिएI
मेथी की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर तक की जाती है, फिर भी देर होने पर नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती हैI इसकी बुवाई छिटकवा विधि से भी की जाती है, लेकिन बुवाई लाइनो में ही करनी चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिएI
सड़ी गोबर की खाद 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई मे देनी चाहिए, इसके साथ ही 40 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना चाहिए I
फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी करते समय बेसल ड्रेसिंग में तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागों में टॉप ड्रेसिंग में देना चाहिएI पहली बार 25 से 30 दिन के बाद तथा दूसरे 40 से 45 दिन बुवाई के बाद खड़ी फसल में शेष आधा -आधा करके देना चाहिए I
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मेथी की फसल कई रोगों से संक्रमित होती है। मेथी में उकठा रोग, डैपिंग आफ, पाउड्री मिल्ड्यू, लीफ स्पॉट, डाउनी मिल्ड्यू तथा कभी कभी ब्लाइट बीमारी भी लगती है, रोग नियंत्रण करने हेतु बीज शोधन करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिए I मिल्ड्यू के नियंत्रण हेतु सल्फर पाउडर 5 प्रतिशत का 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डस्टिंग करनी चाहिए तथा डाउनी मिल्ड्यू हेतु 1 प्रतिशत बोर्डोमिक्सचर का छिड़काव करना चाहिए।
मेथी में पत्ती का गिडार, पॉड बोरर तथा माहू कीट लगते हैं , इनका नियंत्रण 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल या इकोलेक्स 0.05 प्रतिशत या मैलाथियान 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिएI
कभी-कभी केवल बीजोत्पादन हेतु ही फसल उगाई जाती है, ऐसी दशा में पत्तियों की कटाई नहीं की जाती है या केवल एक बार ही कटाई करते हैं I जब फसल केवल पत्ती कटिंग के लिए उगाते हैं , उस दशा में 4-5 पत्ती कटिंग की जाती हैं , इसके बाद फसल खत्म कर देते हैं I बीज हेतु फसल जब मार्च में पक कर खेत में ही सूख जाती है, तभी कटाई की जाती है और कटाई के बाद मड़ाई करके बीज अलग कर लिए जाते हैं I
फसल जब खाली पत्ती प्राप्त हेतु बुवाई की जाती है, तो 90 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज होती है यदि फसल पत्ती और बीज दोनों के लिए उगते हैं , तो 2 से 3 पत्ती कटिंग से 15 से 20 क्विंटल पत्ती तथा बाद में 8- 10 क्विंटल बीज प्राप्त होता है, जब केवल बीज प्राप्त करने हेतु फसल उगाई जाती है, तो 12 से 15 क्विंटल बीजोत्पादन होता हैI