जिमीकंद की खेती कैसे की जाती है? जानिए इसकी वैज्ञानिक खेती के बारे में

By : Tractorbird News Published on : 19-Aug-2024
जिमीकंद

ओल, जिसे जिमीकंद भी कहा जाता है, एरेसी कुल का एक प्रसिद्ध पौधा है और भारत में इसे सूरन, बालुक्न्द, अरसधाना, कन्द, और चीनी आड़ी जैसे कई नामों से जाना जाता है। 

इसकी खेती भारत में बहुत पुराने समय से हो रही है और यह अपने अद्वितीय गुणों के कारण सब्जियों में एक विशेष स्थान रखता है। 

बिहार में इसकी खेती घर के बगीचों से लेकर बड़े पैमाने पर की जाती है, और यहां के किसान अब इसे नगदी फसल के रूप में उगा रहे हैं। 

ओल में पोषक तत्वों के साथ कई औषधीय गुण होते हैं, जिससे इसे आयुर्वेदिक औषधियों में भी उपयोग किया जाता है। 

इसे बवासीर, खूनी बवासीर, पेचिश और ट्यूमर जैसे रोगों के लिए उपयोगी माना जाता है। इसकी खेती हल्की छाया वाले स्थानों में भी की जा सकती है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है।

ओल की खेती के लिए मिट्टी 

  • ओल के सर्वोत्तम विकास और अच्छी उपज के लिए हल्की और भुरभुरी मिट्टी, जिसमें पानी का उचित निकास हो, सबसे उपयुक्त होती है। 
  • इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें जीवांश की प्रचुरता हो, सबसे अच्छा माना जाता है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो-तीन बार देशी हल से अच्छी तरह जोतकर मिट्टी को मुलायम और भुरभुरी बना लेना चाहिए। 
  • हर जुताई के बाद खेत को समतल करने के लिए पाटा चलाना आवश्यक है।

जिमीकंद की किस्में

  • गजेन्द्र, कोवर, और संतराशही इस फसल के प्रमुख किस्में हैं, जिनमें गजेन्द्र भारतभर में सबसे अधिक उगाया जाता है। 
  • यह किस्म 200 से 215 दिनों में तैयार होती है और इसकी औसत उपज 40 से 50 टन प्रति हेक्टेयर होती है। 
  • इसमें कैल्शियम ऑक्सलेट की मात्रा कम होती है, जिससे यह खाने में कड़वा नहीं लगता है, और इस कारण से इसे विभिन्न व्यंजनों में प्रयोग किया जाता है।

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जिमीकंद की खेती कैसे करें ?

  • ओल का प्रसार वनस्पतिक विधि से किया जाता है, जिसके लिए पूरे कंद या कंद के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। 
  • बुवाई के लिए 250 से 500 ग्राम वजन के कंद उपयुक्त होते हैं। यदि इस वजन के पूर्ण कंद उपलब्ध हों, तो उनका उपयोग करना चाहिए। 
  • ऐसा करने से अंकुरण जल्दी होता है और फसल पहले तैयार होती है और उपज अधिक मिलती है। अगर कंद बड़े आकार के हों, तो उन्हें 250 से 500 ग्राम के टुकड़ों में काटकर बोना चाहिए। 
  • ध्यान रहे कि हर टुकड़े में कम से कम एक अंकुर का भाग अवश्य हो।
  • कंदों को बोने से पहले उपचारित करना चाहिए। इसके लिए इमीसान 5 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कंदों को 25 से 30 मिनट तक डुबोएं या ताजे गोबर के गाढ़े घोल में 2 ग्राम कार्बोन्डाजिम (वेविस्टीन) पाउडर मिलाकर उपचार करें और फिर छाया में सुखाएं। 
  • इससे कंदों की वृद्धि 8 से 10 गुना तक होती है। बीज की मात्रा कंद के आकार और बुवाई की दूरी पर निर्भर करती है।

जिमीकंद की खेती का समय

  • चौरस खेत की विधि में अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक (नेत्रजन और पोटाश की 1/3 मात्रा और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा) मिलाकर खेत में डालते हैं। 
  • फिर कुदाल की मदद से 75 से 90 सेमी की दूरी पर और 20 से 30 सेमी गहरी नालियां बनाकर कंदों को बोया जाता है और उन्हें मिट्टी से ढक दिया जाता है। 
  • इस विधि से ज्यादातर ओल की बुवाई की जाती है। इसमें 75x75x30 सेमी या 1.0x0x30 सेमी गहरा गड्ढा बनाकर कंदों की रोपाई की जाती है। 
  • रोपाई से पहले खाद और उर्वरक डालकर गड्ढे को भर दिया जाता है। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से ढककर एक पिरामिड जैसी संरचना बनाई जाती है और ध्यान रखा जाता है कि कंद का अंकुर ऊपर की ओर हो।

जिमीकंद फसल में उर्वरक और खाद प्रबंधन 

  • अच्छी उपज के लिए खाद और उर्वरक का उपयोग जरूरी है। इसके लिए 10-15 क्विंटल गोबर की खाद, और नेत्रजन, फॉस्फोरस, और पोटाश 80:60:80 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। 
  • बुवाई से पहले गोबर की खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में मिलाएं। फॉस्फोरस की पूरी मात्रा और नेत्रजन व पोटाश की 1/3 मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में दें। 
  • शेष नेत्रजन और पोटाश को दो बराबर भागों में बांटकर 50-60 और 80-90 दिनों के बाद गुड़ाई और मिट्टी चढ़ाते समय दें। उर्वरकों का उपयोग तालिका के अनुसार करें।

जिमीकंद की खुदाई 

  • बुवाई के आठ महीने बाद जब पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं, तो फसल खुदाई के लिए तैयार होती है। कंदों को मिट्टी से साफ करके दो-तीन दिन धूप में सुखाएं। 
  • कटे या क्षतिग्रस्त कंदों को लकड़ी के मचान पर पांच से छह महीने तक आसानी से संग्रहित किया जा सकता है।


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