क्या होता है कालमेघ? कैसे की जाती है इसकी खेती, जानिए सम्पूर्ण जानकारी
By : Tractorbird News Published on : 16-Aug-2024
कालमेघ की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। कालमेघ को दो अन्य नाम भुईनीम और कडू चिरायता से भी जाना जाता है।
इसका वैज्ञानिक नाम एंड्रोग्राफिस पेनिकुलेटा है। यह एकेन्थेसी समूह का हिस्सा है। यह सौरसिया चिरायता या वनस्पति चिरायता के समान है जो हिमालय में उगती है।
कालमेघ प्राकृतिक रूप से शुष्क जलवायु वाले वनों में पाया जाता है। इसकी ऊँचाई 1 से 3 फीट है। इसकी छोटी फल्लियों में बीज होते हैं।
इसका बीज भूरा होता है और छोटा है। इसके पुष्प हल्के श्वेत या बैगनी रंग के होते हैं। इस लेख में आप इसके उत्पादन के बारे में जानेंगे।
कालमेघ का उपयोग किस लिए किया जाता है?
- इसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक उद्देश्यों से किया जाता है जो की निम्नलखित है - कालमेघ का इस्तेमल होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाईयों के निर्माण में किया जाता है।
- कालमेघ यकृत विकारों को दूर करने एवं मलेरिया रोग के निदान हेतु एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में उपयोग होता है।
- खून साफ करने, जीर्ण ज्वर एवं विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में इसका उपयोग किया जाता है।
- कालमेघ में एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट के अलावा जलन-सूजन कम करने, बुखार कम करने व लिवर को सुरक्षा देने संबंधी गुण होते हैं।
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किस प्रकार की जलवायु और मिट्टी में उगता है कालमेघ का पौधा ?
- यह समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई तक पूरे भारतवर्ष में उगाया जा सकता है | यह पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और दक्षिण राजस्थान के प्राकृतिक वनों में व्याप्त रूप से मिलने वाला पौधा है।
- उष्ण, उपोष्ण और गर्म आद्रता वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है, जहां वार्षिक वर्षा 500 मिमी से 1400 मिमी तक होती है, न्यूनतम तापमान 5 से 15 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 से 45 डिग्री सेल्सियस होता है।
- इसे अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। बलुई दोमट और जलोढ़ मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.5 तक होना चाहिए।
कालमेघ की बुवाई का समय:
बुवाई का समय: मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) कालमेघ की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय है। इसे खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है।
बीज की तैयारी:
बीज की तैयारी: कालमेघ के बीज छोटे होते हैं और इनका अंकुरण दर 60-70% तक होती है। बुवाई से पहले बीजों को 12-24 घंटे पानी में भिगोना चाहिए, जिससे अंकुरण तेज हो जाता है।
बुवाई विधि:
- नर्सरी विधि: सबसे पहले नर्सरी में बीजों को बोया जाता है। लगभग 25-30 दिनों बाद जब पौधे 10-12 सेमी लंबे हो जाते हैं, तो उन्हें खेत में रोपित किया जाता है।
- पंक्ति में बुवाई: पंक्तियों के बीच की दूरी 30-40 सेमी और पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेमी रखी जाती है।
सिंचाई:
सिंचाई: कालमेघ को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है।
मानसून के समय बारिश पर्याप्त हो सकती है, लेकिन गर्मियों और सूखे समय में सिंचाई करनी होती है। रोपण के बाद पहली सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण होती है।
कालमेघ में कितनी खाद और उर्वरक डालें:
- खाद: जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग किया जा सकता है।
- उर्वरक: कालमेघ को बहुत अधिक रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की सिफारिश की जाती है। आप 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस और 25 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते हैं।
कालमेघ की कटाई और उत्पादन कितना होता है ?
कटाई: पौधे की बुवाई के लगभग 100-120 दिनों के बाद फसल तैयार हो जाती है। जब पौधे 30-40 सेमी लंबे हो जाएं और पत्तियां अच्छी तरह से विकसित हो जाएं, तब उनकी कटाई की जाती है।
कटाई के बाद पौधों को सुखाया जाता है और फिर औषधीय उपयोग के लिए संसाधित किया जाता है। एक हेक्टेयर भूमि से औसतन 1500-2000 किलोग्राम सूखी जड़ी-बूटी का उत्पादन हो सकता है।