कलिहारी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 12-Mar-2025
कलिहारी

कलिहारी एक बहुवर्षीय लता (बेल) के रूप में उगाई जाने वाली फसल है, जिसे मुख्य रूप से औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। 

इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाइयों में किया जाता है, विशेष रूप से जोड़ों के दर्द, एंटीहेलमैथिक उपचार, एंटीबायोटिक गुणों और पॉलीप्लोइडी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। 

इस लेख में हम आपको कलिहारी की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।

कलिहारी की खेती के लिए मृदा और जलवायु

  • कलिहारी की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमें उचित पोषक तत्व और जल निकासी की क्षमता होनी चाहिए। 
  • मिट्टी का भुरभुरा होना इसकी उपज के लिए बहुत जरूरी होता है। इसकी खेती के लिए गर्म जलवायु आवश्यक होती है, तथा 25-40 डिग्री सेल्सियस का तापमान अनुकूल होता है।

खेत की तैयारी

  • कलिहारी की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना आवश्यक है। मिट्टी को हल के माध्यम से भुरभुरा और समतल बनाएं ताकि फसल का विकास अच्छा हो सके। 
  • खेत में जलभराव न हो, इसके लिए उचित निकासी का प्रबंध करना जरूरी है। 
  • कलिहारी के पौधों की पनीरी तैयार करने के लिए एक छोटे से प्लॉट में पौधों को रोपण किया जाता है।

बुवाई का समय

  • कलिहारी एक खरीफ फसल है, जिसे मुख्य रूप से जुलाई और अगस्त के महीनों में बोया जाता है। इसकी बुवाई के लिए प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल गांठों का उपयोग करना चाहिए। 
  • पौधों के बीच 60x45 सेमी. का उचित अंतराल रखें। 
  • बीजों को 6-8 सेमी. गहराई में बोयें। कलिहारी की बुवाई पिछली फसल की गांठों से या बीजों से तैयार पनीरी द्वारा की जा सकती है।

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खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

  • मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए खेत की तैयारी के दौरान जैविक खाद जैसे हरी खाद या गोबर की खाद मिलाएं। 
  • इसके अलावा, प्रति एकड़ 48 किलो नाइट्रोजन (104 किलो यूरिया), 20 किलो फास्फोरस (125 किलो सिंगल सुपर फास्फेट) और 28 किलो पोटाश (46 किलो पोटाशियम म्यूरेट) का प्रयोग करें। 
  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय डालें और बाकी नाइट्रोजन को दो भागों में विभाजित करके बुवाई के 30 और 60 दिन बाद डालें।

सिंचाई प्रबंधन

  • कलिहारी को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। शुरुआत में, नए पौधों को हर चार दिन में पानी दें। 
  • इसके बाद, जरूरत के अनुसार सिंचाई करें। फल बनने के समय सिंचाई न करें, लेकिन फसल पकने के दौरान दो बार सिंचाई करना लाभकारी होता है। 
  • अत्यधिक सिंचाई से पौधे के फल गिर सकते हैं, इसलिए सावधानीपूर्वक पानी दें।

कटाई

  • कलिहारी की फसल बुवाई के 170-180 दिनों बाद तैयार हो जाती है। इसके फल हल्के हरे से गहरे हरे होने पर उन्हें काटा जाता है। 
  • गांठों को 5-6 साल के बाद काटा जाता है। बीज प्राप्त करने के लिए पके हुए फूलों का चयन करें और उन्हें मिट्टी में दबाकर गांठों के रूप में सुरक्षित रखें।

उपज और फायदे

कलिहारी एक उच्च मूल्यवान फसल है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथिक दवाइयों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। 

इसकी खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ मिल सकता है। कलिहारी की खेती में सही समय पर खाद, सिंचाई और फसल प्रबंधन से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

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