कद्दू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 10-Dec-2024
कद्दू

भारत कद्दू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसका इस्तेमाल खाना बनाने और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। यह विटामिन ए और पोटेशियम का काफी अच्छा स्रोत होता है। 

कद्दू आंखों की रोशनी बढ़ाने में काफी सहायता करता है। इसको "हलवा कद्दू" या "कद्दू" के नाम से भी जाना जाता है और यह कुकुरबिटेसी परिवार से संबंधित है। 

इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण विघमान होने की वजह से यह रक्तचाप को भी काफी कम करता है। 

इसके पत्ते, युवा तने, फलों का रस और फूलों में औषधीय गुण विघमान होते हैं। यह भारत में एक लोकप्रिय सब्जी की फसल है, जो बरसात के मौसम में उगाई जाती है। 

कद्दू की खेती के लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए ?

कद्दू की खेती (pumpkin farming) के लिए दोमट मृदा की बेहद आवश्यकता होती है, जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो और जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो। 

कद्दू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच 6-7 के बीच होना सबसे सही है।

किसान कद्दू की इन लोकप्रिय किस्मों की खेती करें 

1. कद्दू की PAU मगज कद्दू-1 किस्म

  • 2018 में रिलीज़ हुई। इस किस्म का उपयोग मगज और स्नैक्स बनाने के लिए भी किया जाता है। इसमें छिलके रहित बीज, बौनी बेलें और गहरे हरे रंग के पत्ते होते हैं। 
  • इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जो गोल होते हैं और पकने पर सुनहरे पीले रंग के हो जाते हैं। 
  • बीज में 32% ओमेगा-6, 3% प्रोटीन और 27% तेल होता है। यह बीज की औसत उपज 2.9 क्विंटल/एकड़ देता है।

2. कद्दू की PPH-1 किस्म 

  • 2016 में जारी किया गया। यह बहुत जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी लताएँ बौनी होती हैं, इसके बीच की गांठें छोटी होती हैं और इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। 
  • इसके फल छोटे होते हैं जो गोल आकार के होते हैं। जब यह अपरिपक्व होता है, तो इसका रंग धब्बेदार हरा होता है और पकने पर यह धब्बेदार भूरे रंग का हो जाता है। 
  • इसके गूदे का रंग सुनहरा पीला होता है। इसकी औसत उपज 206 क्विंटल/एकड़ होती है।

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3. कद्दू की PPH-2 किस्म

  • कद्दू की यह किस्म बहुत जल्दी पकने वाली किस्म है। इस किस्म को 2016 में जारी किया गया था। 
  • इसकी लताएँ काफी बौनी होती हैं, इसके बीच की गांठें छोटी होती हैं और इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं। 
  • इसके फल छोटे होते हैं, जो गोल आकार के होते हैं। जब यह अपरिपक्व होता है, तो इसका रंग हल्का हरा होता है और पकने पर यह चिकने भूरे रंग का हो जाता है। 
  • इसके गूदे का रंग सुनहरा पीला होता है। इसकी औसत उपज 222 क्विंटल/एकड़ तक होती है।

4. पंजाब सम्राट किस्म 

  • इसकी लताएँ मध्यम लंबी होती हैं, इसका तना कोणीय होता है और इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। 
  • इसके फल छोटे होते हैं, जो गोल आकार के होते हैं। अपरिपक्व अवस्था में फल हरे रंग का होता है और परिपक्व अवस्था में यह हल्के भूरे रंग का हो जाता है। 
  • फल में सुनहरे पीले रंग का गूदा होता है। यह 165 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार देता है।

कद्दू की अन्य राज्यों में किस्में

  • कद्दू की CO 2 किस्म 1974 में जारी किया गया है। प्रत्येक फल का औसत वजन 1.5-2 किलोग्राम है। फल में नारंगी रंग का गूदा होता है। 
  • यह 100 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है। यह किस्म 135 दिनों के अंदर पक जाती है। 
  • CO1, अर्का सूर्यमुखी, पूसा विश्वेश, TCR 011, अम्बिली और अर्का चंदन कद्दू की महत्वपूर्ण किस्में हैं।

कद्दू की खेती के लिए भूमि तैयारी और बुवाई

  • कद्दू की खेती के लिए बेहतरीन ढ़ंग से तैयार भूमि की जरूरत होती है। मिट्टी को सही तरह से उपजाऊ बनाने के लिए स्थानीय ट्रैक्टर से जुताई की जरूरत पड़ती है। 
  • बुवाई का समय फरवरी-मार्च और जून-जुलाई बीज बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त वक्त है। 
  • बतादें, कि हर एक टीले पर दो बीज बोएं और 60 सेमी की दूरी का इस्तेमाल करें। 
  • संकर किस्मों के लिए, क्यारी के दोनों ओर बीज बोएं और 45 सेमी की दूरी का इस्तेमाल करें। बुवाई की गहराई बीज को मिट्टी में 1 इंच गहराई पर बोया जाता है। 
  • इसकी सीधी बुवाई की जाती है। एक एकड़ जमीन के लिए 1 किलोग्राम बीज पर्याप्त हैं। 
  • बीज उपचार मिट्टी जनित रोगों से बचाव के लिए बेनलेट या बाविस्टिन @ 2.5 ग्राम / किलोग्राम बीज का उपचार किया जाता है।

 कद्दू की खेती के लिए सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण

  • खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए निरंतर निराई-गुड़ाई या मृदा चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। निराई कुदाल या हाथ के माध्यम से भी की जा सकती है। 
  • पहली निराई बीज बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद की जाती है। खेत को खरपतवार मुक्त बनाने के लिए समकुल 3-4 निराई-गुड़ाई की जरूरत पड़ती है।
  • जानकारी के लिए बतादें, कि समुचित अंतराल पर उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है। बीज बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है। 
  • मौसम के अनुसार, 6-7 दिनों के अंतराल पर बाद की सिंचाई की आवश्यकता होती है। बतादें, कि कुल 8-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

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