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इस फसल की खेती कर के आप साल भर अच्छा मुनाफा कमा सकते है

By : Tractorbird News Published on : 29-Dec-2022
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बेबी कॉर्न के अंदर कार्बोहाइड्रेड, कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन होता है। वहीं इसे कच्चा या पका कर भी खाया जा सकता है। अपने इन्ही गुणों की वजह से बेबी कॉर्न ने अपना एक बाजार विकसित कर लिया है।  क्योकि आज कल सारे लोग इसे बड़े चाव से खाना पसंद करते है। ऐसे में किसानों के लिए इसका उत्पादन बेहद ही फायदेमंद है।

किस तरह बेबी कॉर्न की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है

मक्का की खेती में किसानों का फायदा पक्का माना जाता है। मक्का की खेती एक ऐसी खेती है जिसे साल में कभी भी लगा सकते है क्योकि मक्का डे नूट्रल पौधा है। जिसका श्रेष्ठ उदाहरण इन दिनों दिखाई दे रहा है। मौजूदा समय में किसानों को बेबी मक्के (baby Maize) का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक मिल रहा है। कुल मिलाकर देश के अंदर मक्का (गेहूं और चावल) के बाद तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल (Crop) बन कर उभरा है। 

जिसमें मक्के की खेती करने वाले किसान बेहतर मुनाफे कमा रहे हैं। लेकिन मौजूदा बदले परिदृश्य में मक्के की खेती कई तरह से किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है। जिसमें बेबी कॉर्न (Baby Corn) का उत्पादन किसानों को दोहरा फायदा दे सकता है। आईए जानते हैं कि बेबी कॉर्न होता क्या है और किसान कैसे इसकी खेती कर सकते हैं । 

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ऐसे होती है बेबी कॉर्न की खेती

देश-दुनिया में बेबी कॉर्न की खपत तेजी से बढ़ रही है। खपत भड़ने से इसकी आपूर्ति पूरी नहीं हो रही है।  क्योंकी किसान इसकी खेती कम ही कर रहे है। पौष्टिकता के साथ ही अपने स्वाद की वजह से बेबी कॉर्न ने अपना एक बाजार विकसित किया है। वहीं पत्तों की लिपटे होने के कारण इसमें कीटनाशकों का प्रभाव नहीं होता है। इस वजह से भी इसकी मांग बेहद अधिक है। ऐसे में बेबी कॉर्न का उत्पादन कैसे होता है पहले यह जानना जरूरी है। असल में बेबी कॉर्न मक्के की प्रारंभिक अवस्था है। जिसे अपरिपक्व मक्का या शिशु मक्का भी कहा जाता है। मक्के की फसल में भुट्टा आने के बाद एक निश्चित समय में इसे तोड़ना होता है। इसका मूल्य किसानों को प्रमुख मक्का की खेती से ज्यादा मिलता है। 

एक वर्ष मैं इसकी फसल चार बार  कर सकते है और पशुओं के लिए चारे की भी अच्छी पैदावार हो सकती है| 

बेबी कॉर्न का उत्पादन किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है। असल में बेबी कॉर्न का उत्पादन फसल की बुवाई के बाद 50 से 55 दिन में किया जा सकता है। इस तरह किसान एक साल में बेबी कॉर्न की 4 फसलें पैदा कर सकते है। जिसमें किसान प्रति एकड़ 4 से 6 क्विंटल बेबी कॉर्न की उपज ले सकते हैं। वहीं मक्के की फसल से बेबी कॉर्न तोड़ लेने के बाद पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था भी आसानी से हो जाती है किसान 80 से 160 क्विंंटल हरे चारे का उत्पादन कर सकते हैं। 

बेबी कॉर्न की तुड़ाई का उचित समय कब होता है जिससे किसान को अच्छा मुनाफा मिल सके 

भारत के कई इलाकों जैसे की दक्षिण भारत में बेबी कॉर्न की खेती साल भर की जा सकती है। जबकि उत्तर भारत में फरवरी से नंवबर के बीच बेबी कॉर्न का उत्पादन किया जा सकता है। मक्का अनुसंधान निदेशालय पूसा की एक रिपोर्ट के अनुसार बेबी कॉर्न का उत्पादन सामान्य मक्के की खेती की तरह ही है। लेकिन कुछ विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। जिसके तहत किसान को बेबी कॉर्न के उत्पादन के लिए मक्के की (एकल क्रास संकर) किस्म की बुवाई करनी चाहिए। किसान एक हेक्टेयर में 20 से 24 केजी बीज का प्रयोग कर सकते हैं|

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बेबी कॉर्न की खेती के लिए अधिक पौधे लगाने चाहिए इस वजह से उर्वरक का प्रयोग अधिक करना पड़ता है और तुड़ाई के समय का विशेष ध्यान रखना होता है| जिसके तहत सिल्क आने के बाद 24 घंटे के अंदर तुड़ाई आवश्यक है | सिल्क की लंबाई 3cm से 4cm होनी चाहिए| तोड़ने के बाद पत्ते नहीं हटाने से बेबी कॉर्न लंबे समय तक ताजा रहते हैं|

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