पत्तागोभी की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानिए इधर

By : Tractorbird News Published on : 16-Oct-2024
पत्तागोभी

पत्तागोभी रबी ऋतु की एक महत्वपूर्ण सब्जी है जिसे लगभग सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह विभिन्न प्रकार की सब्जियों और व्यंजनों में उपयोगी होती है। 

पत्तागोभी को बंदगोभी और बंधा भी कहा जाता है। इसमें विटामिन A, B, C, और E की प्रचुर मात्रा होती है, साथ ही कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम और लोहा जैसे खनिज भी समृद्ध मात्रा में पाए जाते हैं। 

सिनीग्रीन नामक ग्लुकोसाइट पत्तागोभी को इसका विशेष स्वाद प्रदान करता है। इसकी खेती मुख्य रूप से उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब के उत्तरी हिस्सों में की जाती है।

पत्तागोभी की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और मिट्टी 

  • किसान भाइयों, पत्तागोभी को लगभग सभी मौसमों में उगाया जा सकता है, लेकिन वाणिज्यिक खेती आमतौर पर अप्रैल तक की जाती है। 
  • यह सब्जी रेतीली से लेकर भारी मिट्टी तक किसी भी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है। 
  • मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधों को उचित पोषण मिल सके।

पत्तागोभी की उन्नतशील किस्में

  • पत्तागोभी की खेती के लिए मौसम के आधार पर दो मुख्य प्रकार की प्रजातियाँ होती हैं: अगेती और पिछेती। अगेती प्रजातियों में प्राइड ऑफ इंडिया, गोल्डन एकर, अर्ली डम्प हेड, और मीनाक्षी शामिल हैं। 
  • दूसरी ओर, पिछेती प्रजातियों में लेट ड्रम हेड, डेनिश वाल हेड, मुक्ता, पूसा ड्रम हेड, रेड कैबेज, पूसा हिट टायड, और कोपेनहेगन मार्किट प्रमुख हैं।

खेत की तैयारी कैसे करें?

  • खेती की शुरुआत में मिट्टी को पलटने वाले हल से अच्छी तरह से जोतना चाहिए। 
  • इसके बाद तीन-चार बार देशी हल या कल्टीवेटर से जोताई करके, पाटा बिछाकर खेत को समतल और भुरभुरा बनाया जाता है। 
  • जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए ताकि अधिक पानी होने पर उसे आसानी से निकाला जा सके।

बीज की तैयारी और शोधन

  • दोनों मौसमों में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 500 ग्राम पर्याप्त होती है। बीज बुवाई से पहले 2 से 3 ग्राम कैप्टान या वैसीकाल प्रति किलोग्राम बीज के अनुपात से बीज शोधन करना चाहिए। 
  • साथ ही, 160 से 175 मिलीलीटर फर्मेल्डीहाईड को 2.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति 20 वर्ग मीटर भूमि के हिसाब से नर्सरी का भी शोधन करना आवश्यक है।

पत्तागोभी के पौधों की तैयारी

  • एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए, पत्तागोभी के पौध तैयार करने हेतु 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंचे, 2.5 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े 10 से 12 क्यारियो की आवश्यकता होती है। 
  • क्यारियो पर बीज बुवाई के बाद, सड़ी गोबर की खाद से बीज को ढक देना चाहिए और हल्के पानी की आवश्यकता होती है।

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पत्तागोभी की पौध रोपाई का तरीका

  • पत्तागोभी की रोपाई मौसम और प्रजातियों के अनुसार की जाती है। अगेती प्रजातियों के लिए पौधों और पंक्तियों के बीच दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। 
  • वहीं, पिछेती प्रजातियों के लिए यह दूरी 60 सेंटीमीटर होती है।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

  • अच्छी पैदावार के लिए, खेत की तैयारी के समय 300 कुंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिलानी चाहिए। 
  • साथ ही, 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, और 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। 
  • निर्धारित मात्रा का आधा नत्रजन रोपाई के समय और बाकी एक माह बाद टापड्रेसिंग द्वारा देना चाहिए, जबकि फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पहले मिलानी चाहिए।

सिंचाई कब और कैसे करें ?

  • पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद हल्की करनी चाहिए। फसल को विकसित रखने के लिए भूमि में नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है। 
  • सर्दियों में हर 10 से 12 दिन में और गर्मियों में एक सप्ताह बाद सिंचाई करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

  • पौधों के अच्छी तरह से खड़े होने पर, हर सिंचाई के बाद दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करके खेत को पोला बनाना चाहिए। 
  • जब हेड बनने लगे, तो पौधों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए। 
  • रोपाई से पहले भूमि में 48 ई.सी. 1.5 किलोग्राम वसालीन की मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए ताकि खरपतवारों का विकास न हो सके।

पत्तागोभी की कटाई का सही समय 

पत्तागोभी की गांठें जब पककर कठोर हो जाएं, दबाने पर भी कड़ी महसूस हो, उचित आकार की बन जाएं और ऊपर के पत्ते हल्के पीले दिखने लगें, तब कटाई करनी चाहिए।

पत्तागोभी की उपज कितनी होती है?

  • पत्तागोभी की उपज प्रजातियों और मौसम के आधार पर अलग-अलग होती है। 
  • अगेती प्रजातियों की पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि पिछेती प्रजातियों की पैदावार 350 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। 
  • इस प्रकार, पत्तागोभी की सफल खेती के लिए उपरोक्त सभी चरणों का पालन करना आवश्यक है। 
  • उचित देखभाल, खाद, सिंचाई, और खरपतवार नियंत्रण से अच्छी पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।

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