अरंडी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी जाने यहां

By : Tractorbird News Published on : 27-Jun-2024
अरंडी

अरंडी एक बहुउपयोगी फसल है जिससे तेल, खली, औषधियां और अन्य उत्पाद प्राप्त होते हैं। 

यह कम पानी और कम लागत में उगाई जा सकती है, जिससे यह किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बन जाती है। 

अरंडी की खली अच्छी जैविक खाद है। रेषम के कीडे़ अरंडी की पत्तियां खाते है इसलिए एरीसिल्क उत्पादक क्षेत्रों में अरंडी के पौधे एरीसिल्क कृमियों के पोषण के लिए लगाए जा सकते हैं। 

इस लेख में हम आपको अरंडी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

अरंडी की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

  • अरंडी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ती है। 
  • इसे 25 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान और 500 से 1000 मिमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • अरण्डी की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। 
  • मैदानी भागों की दोमट भूमि से लेकर महाराष्ट्र तथा पश्चिम-दक्षिण भारत की भारी, काली मिट्टी तक में अरण्डी उगाई जा सकती है। 
  • बलुई दोमट भूमि जहाँ पानी न रूके, जो गहरी हो और जिसमें पानी सोखने की शक्ति हो, अरण्डी की जडों के समुचित बढ़वार के लिए उपयुक्त रहती है। 
  • यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन बलुवाही-दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अनुकूल है।

अरंडी की उन्नत किस्में 

अछि उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव बहुत मत्वपूर्ण है, अरंडी की उन्नत किस्में इस प्रकार है - 47-1(ज्वाला), ज्योती, क्र्रान्ती, किरण, हरिता, जीसी 2, टीएमवी-6, किस्में तथा डीसीएच-519, डीसीएच-177, डीसीएच-32, जीसीएच-4, जीसीएच-5, जीसीएच-6, जीसीएच-7, आरएचसी-1, पीसीएच-1, टीएमवीसीएच-1, संकर आदि ।

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बुवाई का समय और तरीका

  • मानसून के पहले आने वाली वर्षा के तुरन्त बाद हल चलायें और नुकीले पाटे से 2-3 बार पाटा फेरें। 
  • बुआई का समय- दक्षिण पष्चिम मानसून की वर्षा के तुरन्त बाद बुआई करें । रबी की बुआई सितम्बर-अक्टूबर और गरमी की फसल की बुआई जनवरी में करें। 
  • अरंडी की बुवाई जुलाई से अगस्त के महीने में की जाती है। 
  • बुवाई से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। बीजों को 3-4 सेमी गहराई में बोया जाता है।

बीज उपचार

बीज का उपचार थीरम या कैप्टन से 3 ग्राम/कि.ग्रा. या कार्बेन्डेलियम 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से करें और ट्राइकोडरमा विरिडे से 10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से करें और 2.5 कि.ग्रा. की मात्रा 125 कि.ग्रा. खाद/है. की दर से मिट्टी में मिलाएं।

अरंडी की फसल में खाद और सिंचाई प्रबंधन

  • अरंडी को शुरुआती विकास के चरण में गोबर खाद या कंपोस्ट खाद दी जा सकती है। 10-12 टन खाद/मिट्टी में मिलाए। 
  • अरंडी के लिए सुझाए गए उर्वरक (कि.ग्रा./है.) नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाष इस तरह है- वर्षाकाल में 60-30-0, एवं सिंचित अवस्था में 120-30-30 नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करें।
  • फूल आने और फल बनने के समय रासायनिक खादों का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी के प्रकार और मौसम पर निर्भर करती है। आमतौर पर, बुवाई के बाद और फल बनने के समय सिंचाई की आवश्यकता होती है।

अरंडी की खेती में खरपतवार नियंत्रण

  • वर्षा क्षेत्रों में बैलों से चलने वाले ब्लेड हैरो द्वारा 2-3 बार निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए, बुआई के 25–30 दिन के बाद से ही हाथ से खरपतवार भी साफ करें। 
  • सितंबर से जनवरी तक, सिलोसिया अर्जेन्टिया नामक द्विबीजपत्रीय खरपतवार बहुतायत में दिखाई देता है। फूल आने से पहले इसे हाथ से जड़ से उखाड़ दें। 
  • सिंचाई की गई फसल में फ्लूक्लोरेलिन या ट्राईफ्लोरेलिन का एक kg/ha है। 
  • 1.25 किग्रा.स.अ./ अंकुरण के बाद या अंकुरण से पहले एलाक्लोर मिट्टी में मिलाकर मिलाएं।

फसल की कटाई का समय और उपज 

  • अरंडी की फसल 80-120 दिनों में तैयार हो जाती है। जब फल सूखने लगते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।
  • अरंडी की औसत उपज 1.5 से 2.5 टन प्रति हेक्टेयर होती है। 
  • उन्नत किस्मों और अच्छी खेती प्रथाओं से उपज को 3-4 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।

अरंडी की खेती के फायदे 

  • अरंडी की फसल कम लागत में उगाई जा सकती है।
  • अरंडी की फसल सूखे और कम पानी वाली परिस्थितियों में भी बढ़ सकती है।
  • अरंडी तेल, खली, औषधियां और अन्य उत्पादों का स्रोत।
  • इसकी खेती करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है
  • अरंडी के तेल के कई औषधीय गुण होते हैं। इसका उपयोग त्वचा और बालों के लिए किया जाता है।
  • अरंडी की खली पशुओं के चारे के लिए बहुत अच्छी होती है।
  • अरंडी के पत्तों का उपयोग दवा बनाने में भी किया जाता है। 

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