लैवेंडर एक सुगंधित भूमध्यसागरीय झाड़ी है जो अपने सुंदर बैंगनी फूलों और शांत सुगंध के लिए जाना जाता है।
यह न केवल सजावटी रूप से मनोरम है, बल्कि इसका उपयोग सुगंधित तेल, सौंदर्य प्रसाधन, चाय और मसालों में भी किया जाता है।
इसके फूलो का इस्तेमाल कई तरह के व्यंजनों और मिठाइयों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
इसके फूल स्वाद में मीठे होते है, जिस वजह से इसे मिठास को बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल में लाते है। इसके पौधों से तेल भी प्राप्त किया जाता है।
इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। आज के इस लेख में आप Lavender की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे।
लैवेंडर का पौधा देखने में खुबसूरत होता है। इसकी पहचान इसके फूलों से होती है। लैवेंडर के फूल देखने में लाल, बैंगनी, नीले और काले रंग के होते है, तथा पौधा दो से तीन फ़ीट तक ऊँचा होता है।
इसके पौधों की उत्पत्ति वाला स्थान एशिया महाद्वीप को कहा जाता है। इसका पूर्ण विकसित पौधा 10 वर्षो तक पैदावार दे देता है। किसान भाई लैवेंडर की खेती कर अधिक मुनाफा भी कमा रहे है।
लैवेंडर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहाड़ी, मैदानी और रेतीली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
खेती के लिए भूमि का P.H. मान 7 से 8 होना चाहिए। लैवेंडर अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करता है। भारी और जलभराव वाली मिट्टी से बचना चाहिए।
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लैवेंडर की उन्नत किस्मों की खेती से अच्छा मुनाफा होता है इसलिए खेती करने से पहले उन्नत किस्मों का चुनाव करे। लैवेंडर की उन्नत किस्में निन्मलिखित है -
इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई और पुरानी फसल के अवशेषों को निकालकर साफ किया जाता है।
जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें, ताकि सूर्य की धूप खेत की मिट्टी में पूरी तरह से पनप सके। 15 से 20 गाड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डाल दी जाती है।
बाद में खेत को ठीक तरह से जुताया जाता है और गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जाता है।
लैवेंडर की खेती में भूमि तैयार करते समय आखरी जुताई के समय 40 KG फास्फोरस, 40 KG पोटाश और 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है।
इसके पौधों से कई वर्षो तक उचित मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए प्रत्येक कटाई के वक़्त रासायनिक मात्रा को देना होता है।
लैवेंडर पौधों को अधिक सिंचाई चाहिए। पौध रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई की जाती है।
इसके बाद खेत में नमी बनाए रखने के लिए पानी देते रहना चाहिए, लेकिन अधिक मात्रा में पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे फसल में बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
लवेंडर का पौधा तीन वर्ष बाद पूर्ण रूप से विकसित होकर अच्छी उपज देता है। जब इसके पौधों पर 50 प्रतिशत से अधिक मात्रा में फूल निकल चुके हो, उस दौरान पौधों की कटाई कर ले।
इसके पौधे की कटाई भूमि से थोड़े उचाई से करे। ये बात ध्यान रखे की कटी हुई शाखाओ की लम्बाई 12 CM से कम न हो।