Lavender Cultivation In India : लैवेंडर की खेती कैसे की जाती है?

By : Tractorbird News Published on : 26-May-2024
Lavender

लैवेंडर एक सुगंधित भूमध्यसागरीय झाड़ी है जो अपने सुंदर बैंगनी फूलों और शांत सुगंध के लिए जाना जाता है। 

यह न केवल सजावटी रूप से मनोरम है, बल्कि इसका उपयोग सुगंधित तेल, सौंदर्य प्रसाधन, चाय और मसालों में भी किया जाता है। 

इसके फूलो का इस्तेमाल कई तरह के व्यंजनों और मिठाइयों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। 

इसके फूल स्वाद में मीठे होते है, जिस वजह से इसे मिठास को बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल में लाते है। इसके पौधों से तेल भी प्राप्त किया जाता है। 

इसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। आज के इस लेख में आप Lavender की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे।       

लैवेंडर की पहचान कैसे करें?

लैवेंडर का पौधा देखने में खुबसूरत होता है। इसकी पहचान इसके फूलों से होती है। लैवेंडर के फूल देखने में लाल, बैंगनी, नीले और काले रंग के होते है, तथा पौधा दो से तीन फ़ीट तक ऊँचा होता है। 

इसके पौधों की उत्पत्ति वाला स्थान एशिया महाद्वीप को कहा जाता है। इसका पूर्ण विकसित पौधा 10 वर्षो तक पैदावार दे देता है। किसान भाई लैवेंडर की खेती कर अधिक मुनाफा भी कमा रहे है। 

लैवेंडर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

  • यह एक कठोर और शीतोष्ण पौधा है जो सूखे और पाले की स्थिति को सहन कर सकता है। आदर्श जलवायु परिस्थितियाँ ठंडी सर्दियाँ और ठंडी गर्मियाँ हैं। 
  • इसके लिए अच्छी मात्रा में सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है। इसे उन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है जहां बर्फबारी होती है और पहाड़ी इलाका है। 
  • बीज अंकुरण के समय इन्हे 12 से 15 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। पौध विकास के लिए 20 से 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। 
  • इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 10 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है।          

लैवेंडर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

लैवेंडर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहाड़ी, मैदानी और रेतीली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। 

खेती के लिए भूमि का P.H. मान 7 से  8 होना चाहिए। लैवेंडर अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करता है।  भारी और जलभराव वाली मिट्टी से बचना चाहिए। 

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लैवेंडर की उन्नत किस्में 

लैवेंडर की उन्नत किस्मों की खेती से अच्छा मुनाफा होता है इसलिए खेती करने से पहले उन्नत किस्मों का चुनाव करे। लैवेंडर की उन्नत किस्में  निन्मलिखित है - 

  • हाइडकोट सुपीरियर
  • लेडी लैवेंडर  
  • फोल्गेट 
  • बीचवुड ब्लू
  • भोर ए कश्मीर लैवेंडर

लैवेंडर की खेती के लिए खेत की तैयारी 

इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई और पुरानी फसल के अवशेषों को निकालकर साफ किया जाता है। 

जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें, ताकि सूर्य की धूप खेत की मिट्टी में पूरी तरह से पनप सके। 15 से 20 गाड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डाल दी जाती है। 

बाद में खेत को ठीक तरह से जुताया जाता है और गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जाता है।

लैवेंडर की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन 

लैवेंडर की खेती में भूमि तैयार करते समय आखरी जुताई के समय 40 KG फास्फोरस, 40 KG पोटाश और 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है। 

इसके पौधों से कई वर्षो तक उचित मात्रा में पैदावार प्राप्त करने के लिए प्रत्येक कटाई के वक़्त रासायनिक मात्रा को देना होता है।

लैवेंडर के पौध की तैयारी और बुवाई 

  • लैवेंडर की रोपाई बीज और पौध दोनों से की जाती है। लेकिन पौधरोपाई से पैदावार जल्दी मिलने लगती है। 
  • इसके लिए पौधों को नवंबर और दिसंबर में नर्सरी में तैयार करना चाहिए। बीज 12–15 के मध्य तापमान पर ही अंकुरित होते हैं। 
  • इसके पौधों को उत्तक संवर्धन विधि द्वारा भी बना सकते हैं। एक से दो वर्ष पुराने पौधों की शाखाओं को काटकर इस्तेमाल में लाया जाता है।
  • खेत की मेड़ पर पौधों की रोपाई 25 से 30 CM की दूरी पर की जाती है। सघन खेती में इसके पौधों को 5 CM की दूरी पर लगाना होता है। 
  • एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 20 हज़ार पौधों को लगाया जा सकता है। 

लैवेंडर की खेती में सिंचाई

लैवेंडर पौधों को अधिक सिंचाई चाहिए। पौध रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई की जाती है। 

इसके बाद खेत में नमी बनाए रखने के लिए पानी देते रहना चाहिए, लेकिन अधिक मात्रा में पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे फसल में बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।

लैवेंडर कटाई

लवेंडर का पौधा तीन वर्ष बाद पूर्ण रूप से विकसित होकर अच्छी उपज देता है। जब इसके पौधों पर 50 प्रतिशत से अधिक मात्रा में फूल निकल चुके हो, उस दौरान पौधों की कटाई कर ले। 

इसके पौधे की कटाई भूमि से थोड़े उचाई से करे। ये बात ध्यान रखे की कटी हुई शाखाओ की लम्बाई 12 CM से कम न हो।

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