मूंग की वैज्ञानिक खेती कैसे की जाती है - पढ़े पूरी जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 19-Feb-2023
मूंग

मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके डेन का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिए किया जाता है। जिसमें 24-26 प्रतिशत प्रोटीन, 55-60% कार्बोहायड्रेट एवं  1.3 प्रतिशत वसा होती है। 

दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गांठे पायी जाती है जो वायु-मंडल नाइट्रोजन को मर्दा में स्थरीकरण एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियों के रूप में प्रति हेक्टेयर 1.5 टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ जाता है जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ती है। 

मूंग की खेती के लिए किस प्रकार की भूमि की आवशयकत होती है?

सिचिंत एवं असिचिंत दोनों क्षेत्र में इस की खेती आसानी से की जाती है। इस की सफलतापूर्वक खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। 

मूंग की मुख्य किस्मे

  • नरेंदर मूंग 1 
  • पंत मूंग 2 
  • पंत मूंग 4 
  • एच्.यू.ऍम 6 
  • सुनैना 
  • जवाहर मूंग 45 
  • जवाहर मूंग 70 

बीज की मात्रा 

गर्मी के मौसम में मूंग के लिए बीज दर 8 किलोग्राम प्रति एकड़ रखनी चाहिए और बुवाई कतरो में 20-25cm की दुरी पर करनी चाहिए। खरीफ मौसम में बीज प्रति एकड़ की दर से डालना फ़ायदेमंद होगा और बुवाई कतारों करनी चाहिए। 

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बुवाई का समय 

जायद मूंग की बुवाई, जहा पर सिचाई की सुविधा हो वहां रबी फसलों की कटी के तुरंत बाद कर दानी चाहिए। खरीफ मौसम में मूंग की फसल की बुवाई जून महीने के दूसरे पखवाडे से जुलाई के पहले पखवाडे के बीच करनी चाहिए। मूंग की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। मूंग के बीजों को पहले कार्बेन्डाजिम से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए। 

खेती की तैयारी कैसे करे?

खेत में 1 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर के 2 - 3 बार कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई करनी चाहिए और सुहागा फेर कर खेत को बराबर कर लेना चाहिए। 

खाद व उर्वरक 

मूंग दलहनी फसल है, इसलिए इसमें ज्यादा नाइट्रोजन की जरुरत नहीं पड़ती है, फिर भी 10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20kg फोस्फोरस व 8-10 kg पोटाश की मात्रा प्रति एकड़ की दर से बुवाई देना फ़ायदेमंद होगा।

गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में गंधकयुक्त उर्वरक 8 किलोग्राम का इस्तेमाल कर सकते है। सभी चारों तरह के उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई से पहले या बुवाई के समय ही देनी चाहिए। 

सिंचाई व जल निकास

खरीफ में मूंग की फसल को सिंचाई की जरुरत नहीं पड़ती है, अधिक बारिश की दशा में खेत से पानी निकलना बेहद जरुरी होता है। खेती में पानी न निकालने से पदगलन रोग हो जाता है, जिससे फसल को भारी नुकसान हो सकता है। 

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गर्मी में मूंग की फसल में खरीफ की तुलना में पानी की ज्यादा जरुरत होती है। खरीफ के मौसम में फसल में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर 3-4 सिंचाई अवश्य करे। 

निराई - गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण 

बुवाई के 15-20 दिनों बाद पहली और 40-45 दिनों बाद दूसरी निराई करनी चाहिए। घास व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रासायनिक विधि द्वारा ख़तम करने के लिए फ़्लूएक्लोरीन 45 EC की 500 ग्राम की मात्रा 200 liter पानी में मिला कर एक एकड़ में छिड़काव करे। 

उपज 

मूंग की औसत उपज 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। उन्नत खेती करने पर इस की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ तक ली जा सकती है। 

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