जई की खेती की बिजाई से लेकर कटाई तक की जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 23-Dec-2024
जई

जई की फसल बेहद अहम अनाज और चारे की फसल है। जई की खेती गेहूं की खेती में काफी समानता है। 

जई की खास तौर पर संयमी और उप उष्ण कटबंधी क्षेत्रों में पैदावार की जाती है। जई का उत्पादन ज्यादा ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों में भी काफी शानदार होता है। 

यह अपने स्वास्थ संबंधी लाभ के चलते अत्यंत मशहूर है। जई वाला खाना मशहूर खानों में शम्मिलित किया जाता है। 

जई में प्रोटीन और रेशे की प्रचूर मात्रा होती है। यह भार घटाने, ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करने और बीमारियों से लड़ने की सामर्थ्य को बढ़ावा देने में भी सहायता करती है।

जई की खेती बड़ी आसानी से किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। जई की खेती बेहतर जल निकासी वाली चिकनी रेतली मिट्टी, जिसमें जैविक तत्व हों, जई की खेती के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। जई की खेती के लिए 5-6.6 पी एच वाली मृदा सर्वोत्तम होती है।

जई की खेती के लिए मशहूर किस्में और उपज

1. वेस्टन-11: यह किस्म 1978 में पंजाब में जारी की गई। इस किस्म के पौधों का कद 150 सैं.मी. होता है। इसके दाने लंबे और सुनहरी रंग के जैसे होते हैं।

2. केंट: यह भारत के सभी इलाकों में उगाने योग्य किस्म है। इसके पौधे का औसतन कद 75-80 सैं.मी. होता है। 

  • यह किस्म कुंगी, भुरड़ और झुलस रोग की प्रतिरोधक है। इसकी चारे के तौर पर औसतन पैदावार 210 क्विंटल प्रति एकड़ है।

3. ओएल-10: यह पंजाब के सारे सिंचित इलाकों में उगाने योग्य किस्म है। इसके बीज दरमियाने आकार के होते हैं। इसकी चारे के तौर पर औसतन पैदावार 270 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 

4. ओएल-9: यह पंजाब के सारे सिंचित इलाकों में उगाने योग्य किस्म है। इसके बीज दरमियाने आकार के होते हैं। 

  • इसके दानों की औसतन पैदावार 7 क्विंटल और चारे के तौर पर औसतन पैदावार 230 क्विंटल प्रति एकड़ है।

5. ओएल 11: यह किस्म 2017 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 245 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके पौधे पत्तेदार, लंबे होते हैं और पत्ते चौड़े होते हैं।

ये भी पढ़ें: गुलदाउदी फूल क्या है और इसकी कीट व रोगों से कैसे सुरक्षा करें ?
 

दूसरे राज्यों की किस्में

1. ब्रंकर-10: यह तेजी से बढ़ने वाली अच्छी, छोटे और तंग आकार के नर्म पत्तों वाली किस्म है। यह सोके की प्रतिरोधक है। यह पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के इलाकों में उगाई जाती है।

2. एचएफओ-114: यह जई उगाने वाले सारे इलाकों में उगाई जा सकती है। यह 1974 में हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की तरफ से जारी की गई। यह किस्म लंबी और भुरड़ रोग की रोधक है। 

  • इसके बीज मोटे होते हैं और इसके दानों की औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है।

3. अल्जीरिन: यह किस्म सिंचित इलाकों में उगाने योग्य किस्म है। पौधे का औसतन कद 100-120 सैं.मी. होता है। इसका शुरूआती विकास मध्यम होता है और पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं।

4. ओएस-6: यह भारत के सभी इलाकों में उगाई जा सकती है। इसकी चारे के तौर पर औसतन पैदावार 210 क्विंटल प्रति एकड़ है।

5. बुंदेल जय 851: यह भारत के सभी इलाकों में उगाई जा सकती है। इसकी हरे चारे के तौर पर औसतन पैदावार 188 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 

जई की खेती के लिए जमीन की तैयारी

खेत को खरपतवार रहित बनाने के लिए सही तरीके से जोताई करें। कृषक उत्तम उपज प्राप्त करने के लिए 6-8 बार जोताई करें। 

जई की फसल जौं और गेहूं की फसल की तुलना में ज्यादा पी एच वाली मृदा को सहन कर सकती हैं। जई की फसल को बीजों की मदद से उगाया जाता है।

जई की बिजाई से संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी 

  • जई की खेती के लिए बिजाई का सही समय अक्टूबर के दूसरे से आखिरी सप्ताह का समय उपयुक्त माना जाता है। 
  • इसके बीच फासले की बात करें तो पंक्तियों में 25-30 सैं.मी. का फासला अवश्य रखें। बीज की गहराई 3-4 सैं.मी. होनी चाहिए। 
  • बीज की गहराई ज़ीरो टिल्लर मशीन या बिजाई वाली मशीन से की जा सकती है। बीज की मात्रा 25 किलो बीज प्रति एकड़ उपयुक्त रहेगी। 
  • बीजों की बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज से उपचार करें। इससे बीजों के फफूंदी वाली बीमारियों और बैक्टीरिया विषाणु से बचाया जा सकता है।

जई की खेती में खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई प्रबंधन और कटाई

  • अगर पौधे सही तरीके से खड़े हों तो खरपतवारों की रोकथाम की आवश्यकता नहीं होती है। जई की फसल में खरपतवार कम पाए जाते हैं। 
  • खरपतवारों को निकालने के लिए गोडाई करना भी काफी जरूरी है। जई मुख्य तौर पर बारानी क्षेत्रों की फसल के तौर पर उगाई जाती है पर यदि इसे सिंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाये तो बिजाई के 25-28 दिनों के फासले पर दो बार सिंचाई करें। 
  • जई की फसल में बिजाई के 4-5 महीने उपरांत जई पूरी तरह पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दाने झड़ने से बचाने के लिए अप्रैल महीने के शुरूआत में ही कटाई कर लेनी चाहिए।

Join TractorBird Whatsapp Group

Categories

Similar Posts