भारत में गर्मियों के मौसम की शुरुआत में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती की जाती है | इस दौरान बाजार में तरबूज के फल की बेहद मांग रहती हैं। ऐसे में किसान इसकी खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकता है।
तरबूज की खेती करना – उचित तरीके से और बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती करने पर यह आय का अच्छा स्रोत बन सकता है। छोटे पौधों के उगने का इंतज़ार करते हुए और उनके रोपने की तैयारी करते हुए वो खेत तैयार करते हैं। तरबूज की अधिकांश व्यावसायिक किस्मों को रोपाई के 78-90 दिनों के बाद काटा जा सकता है। कटाई केवल कैंची या चाकू के माध्यम से की जा सकती है।
कटाई के बाद, तरबूज उगाने वाले किसान फसल के अवशेष को नष्ट कर देते हैं। बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए या मिट्टी को क्षय से बचाने के लिए, वो फसल चक्र भी प्रयोग कर सकते हैं। हमारे इस लेख में आप तरबूज की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे।
तरबूज की बुवाई करने का समय फरवरी और मार्च है इस समय की बिजाई से आप गर्मी में फल पैदा कर सकते है। अन्य फलों के फसलों के मुकाबले इस फल में कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। बता दें कि गर्मियों में लोग खुद को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए तरबूज के फल को भरपूर सेवन करते है, ऐसा होने से किसानों का मुनाफा अपने आप लाखों के पार पहुंच जाता है।
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इसकी खेती के लिए गर्म और औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र सबसे उपयुक्त होते है। लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान में तरबूज का आकार अच्छा आता है। इस की खेती के लिए रेतीली और रेतीली दोमट भूमि सबसे बेहतर मानी जाती है।
तरबूज की खेती के लिए सबसे पहले खेत को plough की सहायता से जोतना है ताकि मिट्टी में पड़े खरपतवारों के बीज और कीटों के अंडे ख़तम हो जाये। इसके बाद हैरो की सहायता से खेत को जोतना है ताकि मोठे मिट्टी के ढेले टूट जाये और खेत समतल हो जाये।
तरबूज के लिए नर्सरी 200 गेज, 10 सेमी व्यास और 15 सेमी ऊंचाई आकार के पॉलिथीन बैग या संरक्षित नर्सरी के माध्यम से तैयार की जा सकती है। पॉलीबैग नर्सरी में काली मिट्टी, बालू और गोबर की खाद के मिश्रण को 1:1:1 के अनुपात में भरें। पौध उगाने के लिए ट्रे का उपयोग करें, प्रत्येक में 98 कोशिकाएं हों। मुख्य खेत में लगभग 12 दिन पुराने पौधों की रोपाई करें।
ड्रिप की ट्यूबों को प्रत्येक बिस्तर के केंद्र में फैलाएं। 8-12 घंटे लगातार ड्रिप सिस्टम चलाकर क्यारियों की सिंचाई करें। बुवाई से ठीक पहले उगने से पहले खरपतवारनाशी (पेंडीमिथालिन @250 किग्रा a.i/ha) का छिड़काव करें। बुवाई के लिए 1.2 मीटर चौड़ाई और 30 सेमी ऊंचाई की उठी हुई क्यारियां बनाये। 60 सेंटीमीटर की दूरी पर बने गड्ढों में पौधे रोपें।
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जब आप खेत को तैयार करे तो 8 टन गोबर की गली सड़ी खाद खेत में आखरी जुताई से पहले दे इसके साथ आप आखिरी जुताई से पहले एजोस्पिरिलम और फॉस्फोबैक्टीरिया @1 किलोग्राम प्रति एकड़ और स्यूडोमोनोआस @1 किलोग्राम/एकड़ के साथ एफवाईएम 50 किलोग्राम और नीम केक 40 किलोग्राम डालें।
22 किलोग्राम फोस्फोरस, 22 किलोग्राम यूरिया और 22 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग जब फसल 10-20 दिनों की हो जाए उस समय करना चाहिए। आप इन सभी नुट्रिएंट्स को फर्टिगेशन के माध्यम से भी दे सकते है।
ड्रिप सिंचाई: मुख्य और उप-मुख्य पाइपों के साथ ड्रिप सिस्टम स्थापित करें और इनलाइन लेटरल ट्यूबों को 1.5 मीटर के अंतराल पर लगाएं। 4 एल पी एच और 3.5 एल पी एच क्षमता के साथ क्रमशः 60 सेमी और 50 सेमी के अंतराल पर पार्श्व ट्यूबों में ड्रिपर्स रखें।