टेरेस फार्मिंग (terrace farming) क्या होती है?

By : Tractorbird News Published on : 05-Nov-2024
टेरेस

भारत में हर प्रकार की भूमि है जिसमे खेती की जाती है। भारत में पहाड़ी क्षेत्र में भी खेती करके अच्छी उपज अर्जित की जाती है। 

पहाड़ी क्षेत्र में फसल उगाने के लिए खेती की अलग विधि टेरेस फार्मिंग या सीढ़ीदार खेती का इस्तेमाल किया जाता है इस लेख में आप टेरेस फार्मिंग के बारे में विस्तार से जानेंगे। 

टेरेस फार्मिंग क्या होती है? (what is terrace farming ?)

  • टेरेस फार्मिंग कृषि की एक ऐसी पद्धति है जिसको सीढ़ीदार खेती के नाम से भी जाना जाता है। 
  • खेती की इस पद्धति का इस्तेमाल पहाड़ी क्षेत्र में किया जाता है, पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले लोग प्राचीन काल से ही इस पद्धति का इस्तेमाल करते आ रहे हैं, टेरेस फार्मिंग या स्टेप फार्मिंग में मृदा अपवाह को नियंत्रित करने और जल घुसपैठ में सुधार करने के लिए ढलान वाले क्षेत्रों में की जाती हैं। 
  • सामान्य शब्दों में, टेरेस फार्मिंग वह तकनीक है जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ियाँ या छतें बनाना शामिल है जहाँ मिट्टी के कटाव को कम करने और उन्हें फसल उगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

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टेरेस फार्मिंग के प्रकार

भारत में सीढ़ीदार खेती में कई तरीके शामिल किए जाते हैं। छतों को उनके आउटलेट, क्रॉस-सेक्शन और संरेखण के अनुसार क्रमबद्ध किया जाता है। 

इन मानदंडों का चयन पर्वतीय क्षेत्रों की विशेषताओं पर किया गया है। पर्वतीय क्षेत्रों की बनावट के हिसाब से टेरेस फार्मिंग के प्रकार निम्नलिखित हैं -

1. चौड़ी आधार वाली टेरेस (Broad-Based Terraces) 

  • टेरेस फार्मिंग के इस प्रकार को सबसे अच्छा माना जाता है। Broad-Based Terraces बनाने में हल और ब्लेड जैसे कृषि उपकरणों का उपयोग किया जाता है, इनके इस्तमाल से मेड़ बनती है। 
  • इस विधि का उपयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां पहाड़ी क्षेत्रों में अपवाह जल का प्रबंधन करने के लिए 8% तक की ढलान मौजूद होती है। 
  • चौड़ी आधार वाली टेरेस पर चावल और मक्का जैसी फसलें आसनी से उगाई जा सकती है। इस विधि से बहते पानी और मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है। 

2. श्रेणीबद्ध या चैनल टेरेस ( Graded or Channel Terraces)

  • टेरेस फार्मिंग की यह विधि आमतौर पर भारत में सीढ़ीदार खेती में अपनाई जाती है। श्रेणीबद्ध या चैनल टेरेस उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
  • इस विधि का इस्तेमाल चैनल में बहते पानी को इकट्ठा करने और उसे आउटलेट तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। 
  • श्रेणीबद्ध टेरेस ढलान के ऊपरी हिस्से पर लकीरें बनाकर तैयार किये जाते है। चैनल-प्रकार या श्रेणीबद्ध-प्रकार की छतें रेतीली और गैर-पारगम्य मिट्टी के लिए उपयुक्त नहीं हैं। 
  • Graded Terraces का निर्माण 600 मिमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है। 

ग्रेडेड या चैनल टैरेस को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैं जो की निम्नलिखित हैं - 

a. उचित चैनल के बिना श्रेणीबद्ध टैरेस ( Graded Terrace without Proper Channel )

  • आमतौर पर, टेरेस में कल्टीवेशन का उपयोग बहते पानी को आउटलेट तक निर्देशित करने के लिए किया जाता है। 
  • श्रेणीबद्ध छतें कम अपवाह वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह काम करती हैं। इस प्रकार मिट्टी पानी को अवशोषित कर सकती है और मिट्टी की नमी बढ़ा सकती है।

b. उचित चैनल के साथ श्रेणीबद्ध टेरेस (Graded Terrace with Proper Channel)

  • मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करने के लिए, इस टेरेस खेती प्रणाली में बहते पानी को हटाया जाता है।
  • इन छतों में उथले और चौड़े चैनल बनाये जाते हैं, जो 5 से 15 प्रतिशत की ढलान में बनाए जाते हैं। 

3. समतल या रिज टेरेसिंग (Level or Ridge Terraces)

  • समतल या रिज प्रकार की टेरेसिंग जल संरक्षण के लिए उपयोग की जाने वाली विधियों में से एक है। 
  • भारत में यह सीढ़ीनुमा खेती की विधि मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहाँ वर्षा का पानी लंबे समय तक संग्रहित रहता है। 
  • स्तर टेरेसिंग ऊँचाई और नालियों की एक निरंतर श्रृंखला है जो बहते पानी की गति को धीमा कर देती है और वर्षा जल संग्रहण के लिए उपयोग की जाती है।

4. संकीर्ण आधारित टेरेसिंग (Narrow Based Terraces)

  • संकरी आधार वाली टेरेसिंग में आगे और पीछे दोनों तरफ तेज ढलान होती है। 
  • भारत में यह टेरेस खेती की एक विधि है जो कृषि उपकरणों के उपयोग से खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। ढलान को वनस्पति से ढका जाता है। 
  • इन संकरी आधार वाली टेरेस की चौड़ाई 1.2 से 2.5 मीटर तक होती है। 
  • यह भारत में टेरेस खेती की सबसे अच्छी विधियों में से एक है, जिसे कंटूर बंड के नाम से भी जाना जाता है।

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