सीढ़ीदार खेती क्या है जानिए इसके बारे में विस्तार से

By : Tractorbird News Published on : 26-Jan-2025
सीढ़ीदार

टेरेस खेती या सीढ़ीदार खेती एक कृषि पद्धति है, जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा संरचनाएं बनाई जाती हैं। 

इसका उद्देश्य मिट्टी के कटाव को रोकना और जल संग्रहण को बढ़ावा देना है। यह तकनीक प्राचीन काल से पहाड़ी इलाकों में फसल उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाती है। 

इस पद्धति में खेतों को सीढ़ियों के रूप में व्यवस्थित किया जाता है, जिससे वर्षा का पानी धीमी गति से नीचे की ओर बहता है। इससे पानी की बर्बादी रुकती है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।

सीढ़ीदार खेती पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि के लिए एक क्रांतिकारी समाधान है, क्योंकि यह उन इलाकों को खेती के लिए उपयुक्त बनाती है, जहां सामान्य तरीकों से खेती करना संभव नहीं है। 

यह न केवल फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में भी सहायक है। 

मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ-साथ यह नमी बनाए रखती है, जो फसलों की बेहतर वृद्धि के लिए आवश्यक है।

सीढ़ीदार खेती कितने प्रकार की होती है? 

भारत में सीढ़ीदार खेती विभिन्न विधियों से की जाती है, जो भौगोलिक स्थिति और मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करती हैं।

1. चौड़ी आधार वाली टेरेस (Broad-Based Terraces)

यह विधि ढलानों वाले क्षेत्रों में प्रभावी है, खासकर जहां ढलान 8% तक होती है। इसमें हल और ब्लेड जैसे उपकरणों का उपयोग करके मेड़ बनाई जाती है। यह पानी के प्रवाह और मिट्टी के कटाव को कम करने के साथ-साथ चावल और मक्का जैसी फसलों के लिए अनुकूल है।

2. श्रेणीबद्ध या चैनल टेरेस (Graded or Channel Terraces)

यह विधि ज्यादा बारिश वाले इलाकों के लिए उपयुक्त है। इसमें पानी को नियंत्रित चैनलों में संग्रहीत किया जाता है और बाद में आउटलेट तक पहुँचाया जाता है। 

रेतीली और कम पारगम्य मिट्टी के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है। इसे दो प्रकारों में बांटा गया है:

a. उचित चैनल के बिना श्रेणीबद्ध टेरेस

इस पद्धति में पानी को सीधे आउटलेट तक ले जाने के बजाय मिट्टी में अवशोषित होने दिया जाता है। इससे मिट्टी की नमी में सुधार होता है।

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b. उचित चैनल के साथ श्रेणीबद्ध टेरेस

इसमें उथले और चौड़े चैनल बनाए जाते हैं, जो पानी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। यह 5-15% ढलान वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श है।

3. समतल या रिज टेरेसिंग (Level or Ridge Terraces)

यह विधि मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयोगी है। इसमें नालियों और ऊँचाई वाली संरचनाओं का उपयोग करके बहते पानी को रोका जाता है, जिससे जल संग्रहण में सहायता मिलती है।

4. संकरी आधार वाली टेरेसिंग (Narrow Based Terraces)

  • इस विधि में ढलानों को वनस्पतियों से ढककर संरक्षित किया जाता है। इसकी चौड़ाई आमतौर पर 1.2 से 2.5 मीटर होती है। 
  • हालांकि, यह कृषि उपकरणों के उपयोग के लिए अनुकूल नहीं है और इसे "कंटूर बंड" के नाम से भी जाना जाता है।

सीढ़ीदार खेती के लाभ

टेरेस खेती पहाड़ी क्षेत्रों में फसल उत्पादन को आसान बनाती है और पर्यावरण संरक्षण में मदद करती है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • खेती योग्य भूमि का विस्तार: यह ढलानों को खेती के लिए उपयुक्त बनाकर उत्पादकता बढ़ाती है।
  • जल संरक्षण: यह पानी के बहाव को धीमा कर बारिश के पानी को संग्रहित करने में सहायक होती है।
  • मिट्टी का कटाव रोकना: पानी के प्रवाह को नियंत्रित करके मिट्टी की क्षति को कम करती है।
  • संसाधन संरक्षण: यह गाद जमाव और जल प्रदूषण को कम करती है, जिससे पानी साफ और उपयोगी बना रहता है।
  • खाद्य उत्पादन में वृद्धि: पहाड़ी इलाकों में फसल उगाने की सुविधा देकर यह खाद्य सुरक्षा में योगदान देती है।
  • पारिस्थितिक विविधता: यह पर्यावरण को संरक्षित करके जैव विविधता को बढ़ावा देती है।
  • सीढ़ीदार खेती न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि को प्रभावी बनाती है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को भी बेहतर तरीके से संरक्षित करती है।

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