टेरेस खेती या सीढ़ीदार खेती एक कृषि पद्धति है, जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा संरचनाएं बनाई जाती हैं।
इसका उद्देश्य मिट्टी के कटाव को रोकना और जल संग्रहण को बढ़ावा देना है। यह तकनीक प्राचीन काल से पहाड़ी इलाकों में फसल उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाती है।
इस पद्धति में खेतों को सीढ़ियों के रूप में व्यवस्थित किया जाता है, जिससे वर्षा का पानी धीमी गति से नीचे की ओर बहता है। इससे पानी की बर्बादी रुकती है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।
सीढ़ीदार खेती पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि के लिए एक क्रांतिकारी समाधान है, क्योंकि यह उन इलाकों को खेती के लिए उपयुक्त बनाती है, जहां सामान्य तरीकों से खेती करना संभव नहीं है।
यह न केवल फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में भी सहायक है।
मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ-साथ यह नमी बनाए रखती है, जो फसलों की बेहतर वृद्धि के लिए आवश्यक है।
भारत में सीढ़ीदार खेती विभिन्न विधियों से की जाती है, जो भौगोलिक स्थिति और मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करती हैं।
यह विधि ढलानों वाले क्षेत्रों में प्रभावी है, खासकर जहां ढलान 8% तक होती है। इसमें हल और ब्लेड जैसे उपकरणों का उपयोग करके मेड़ बनाई जाती है। यह पानी के प्रवाह और मिट्टी के कटाव को कम करने के साथ-साथ चावल और मक्का जैसी फसलों के लिए अनुकूल है।
यह विधि ज्यादा बारिश वाले इलाकों के लिए उपयुक्त है। इसमें पानी को नियंत्रित चैनलों में संग्रहीत किया जाता है और बाद में आउटलेट तक पहुँचाया जाता है।
रेतीली और कम पारगम्य मिट्टी के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है। इसे दो प्रकारों में बांटा गया है:
इस पद्धति में पानी को सीधे आउटलेट तक ले जाने के बजाय मिट्टी में अवशोषित होने दिया जाता है। इससे मिट्टी की नमी में सुधार होता है।
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इसमें उथले और चौड़े चैनल बनाए जाते हैं, जो पानी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। यह 5-15% ढलान वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श है।
यह विधि मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयोगी है। इसमें नालियों और ऊँचाई वाली संरचनाओं का उपयोग करके बहते पानी को रोका जाता है, जिससे जल संग्रहण में सहायता मिलती है।
टेरेस खेती पहाड़ी क्षेत्रों में फसल उत्पादन को आसान बनाती है और पर्यावरण संरक्षण में मदद करती है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं: