शलजम की खेती करके आप भी कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा जानिए इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी

By : Tractorbird News Published on : 05-Oct-2023
शलजम

किसानों भाइयों भारत में शलजम की खेती कई राज्यों में की जाती है। किसान इसकी खेती करके अच्छा खासा लाभ कमाते हैं। शलजम की खेती मुख्य रूप से बिहार, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, पंजाब तथा तमिलनाडू में अधिक की जाती है। शलजम के पत्तों और कंदो को खाने के लिए इस्तेमला किया जाता है। ट्रैक्टर बर्ड के इस लेख में हम आपको आज शलजम की खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे। 

शलजम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि 

शलजम की खेती शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों ही तरह की जलवायु में की जा सकती है। मतलब की शलजम की खेती ठंडी जलवायु में की जाती है। इसकी खेती 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सफलता पूर्वक की जा सकती है। वैसे तो इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सबसे अधिक उत्तम होती है। इसकी खेती में उचित जल निकास होना अति आवश्यक है। 

शलजम की उत्तम किस्में 

शलजम की दो प्रकार की किस्में होती है। प्रथम एशियाटिक या ट्रॉपिकल उष्ण कटिबंधीय प्रजातियाँ, जैसे पूसा कंचन, पूसा स्वेती तथा पंजाब सफ़ेद आदि है, दूसरी यूरोपियन या टेम्परटे (उष्णकटिबंधीय)- जैसे की पूसा स्वर्णिमा, पूसा कंचन, स्नोबॉल तथा पूसा कंचन आदि है। इन सभी किस्मों में से आपके क्षेत्र के हिसाब से उपयुक्त किस्म का आप चुनाव कर सकते हैं। 

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बुवाई के लिए खेत की तैयारी 

खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से या प्लाव से करनी चाहिए। इसके बाद दो तीन जुताई देशी हल, हैरो, कल्टीवेटर से करते हुए पाटा लगाकर समतल बनाते खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की तैयारी करते हुए आखिरी जुताई में 100 से 150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। 

बीज दर और बीज की बुवाई 

शलजम की बुवाई के लिए 1 - 2 किलोग्राम बीज एक एकड़ के लिए काफी होता है। बीज की बुवाई बीज दर के हिसाब से ही करनी चाहिए नहीं तो खेत में अधिक पौधों की संख्या हो जाती है जिससे पौधों को स्पेस नहीं मिलता है और कंधो का विकास अच्छे से नहीं होता है। बुवाई लाइनो में करनी चाहिए, बीज शोधन थीरम या बैबिस्टीन या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करके ही बुवाई करना चाहिए। 

फसल की बुवाई 

पहाड़ी क्षेत्रो में जुलाई से अक्टूबर तक की जाती है, मैदानी क्षेत्रो में सितम्बर से अक्टूबर तक बुवाई की जाती है। ज्यादातर लाइनों में बुवाई की जाती है, लेकिन बरसात के ऋतु में मेड़ों पर बुवाई की जाती है, लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखी जाती है, बीज की 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई करते हैं।

 पोषण प्रबंधन 

अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में 100 से 150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला देना चाहिए, इसके साथ ही 25 से 30 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 30 किलो ग्राम फास्फोरस एवं 20 किलो ग्राम पोटाश तत्व के रूप में देना चाहिए। 

नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए लेकिन फास्फोरस एवं पोटाश 7 से 8 सेंटीमीटर गहराई पर देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। पहली बार आधी मात्रा बची आधी से जड़ो के बनते समय तथा शेष मात्रा दूसरी बार में जड़ो के विकास होने के समय देना चाहिए।

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फसल में जल प्रबंधन 

शलजम की खेती में उचित पानी का प्रबंधन रखना होता है। पहली सिंचाई शलजम की बुवाई के 8 से 10 दिन करनी बहुत आवश्यक होती है तथा आवश्यकतानुसार 10 से 12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन

शलजम की फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए 2 से 3 निराई एवं गुड़ाई करनी आवश्यक होती है, फसल में निराई गुड़ाई के समय पर ही फालूत पौधों को निकाल देना चाहिए, फसल की बुवाई के 25 से 30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते है। मिट्टी चढ़ाने के समय टाप ड्रेसिंग नाइट्रोजन की करते हैं। 

यदि अधिक खरपतवार उगते हैं, तो प्रीइमरजेंस बीड़ीसाइड का प्रयोग करना चाहिए। जैसे कि बुवाई के 1से 2 दिन के अन्दर पेंडिमिथलीन 30 प्रतिशत की 3 लीटर मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। 

फसल की कटाई

जब शलजम की जड़े खाने लायक आकार की अर्थात 5 से 7 सेंटीमीटर के डाईमीटर हो तब इसकी खुदाई करनी चाहिए। 10 सेंटी मीटर डाईमीटर से अधिक बडी जड़े हो जाने पर इनमे तीखापन आ जाता है, खुदाई से पहले हल्की सिचाई कर देना चाहिए जिससे की खुदाई में किसी प्रकार का नुकसान न हो सके। शलजम की फसल से औसतन उपज 100 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है।








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