कैसे करें राजमा की खेती ?

By : Tractorbird News Published on : 09-Jan-2024
कैसे

राजमा एक दाल है जबकि राजमा अन्य दालों के मुकाबले बहुत ही बड़ा होता है। राजमा की कच्ची फलियों का उपयोग हम सब्जी बनाने के लिए कर सकते हैं। राजमा में बहुत से पोष्टिक तत्व रहते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद रहते हैं। 

राजमा की खेती बहुत से राज्यों में की जाती है, ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए राजमा का उत्पादन बहुत सी जगह किसानों द्वारा किया जाने लगा है। 

राजमा की बुवाई कब करें ?

राजमा की बुवाई का काम मौसम के अनुकूल किया जाता है जैसे हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य में राजमा का उत्पादन अक्टूबर माह में किया जाता है और वही महाराष्ट्र और बिहार में इसकी खेती नवंबर माह में कर दी जाती है।

इन सभी जगहों पर मौसम अलग अलग होता है और इसी वजह से राजमा की बुवाई का काम अलग अलग माह में किया जाता है। किसानों द्वारा राजमा की बुवाई के लिए पहले खेत में 30-40 सेमी की दूरी पर मेढ़ बनाई जाती हैं। 

राजमा की बुवाई के समय पौधे को कम से कम 10 सेमी की दूरी पर लगाया जाता है। राजमा की बुवाई करने से पहले बीज की जांच कर ले, ताकि राजमा की फसल का उत्पादन अच्छे से किया जा सके। 

ये भी पढ़ें : World Pulses Day 2023: क्यों मनाया जाता है और भारत में दलहनी फसलों का क्या महत्व है

राजमा की खेती के लिए चयनित मिट्टी

वैसे तो राजमा की खेती को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता हैं, लेकिन राजमा की अच्छी पैदावार के लिए हल्की दोमट मिट्टी की आवश्यकता रहती है क्यूंकि इस मिट्टी में पानी के निकलने का प्रबंधन बेहतर माना जाता हैं।

किसानो द्वारा भारी चिकनी मिट्टी में भी राजमा की खेती आसानी से की जा सकती है और अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 

राजमा की खेती के लिए भूमि की तैयारी 

किसानो द्वारा खेत की जुताई कल्टीवेटर द्वारा की जाती हैं ताकि भूमि की मिट्टी को अच्छे से पलटा जा सके। भूमि के अंदर नमी का बना रहना जरुरी हैं ताकि राजमा की बुवाई का काम अच्छे से किया जा सके।

राजमा की खेती के लिए उर्वरक 

नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फेट जैसे उर्वरको का इस्तेमाल किसानो द्वारा फसल के ज्यादा उत्पादन के लिए किया जाता है। इन उर्वरको के उपयोग से किसान को लाभकारी परिणाम प्राप्त होते है। 

नाइट्रोजन और पोटाश जैसे उर्वरको को बुवाई के समय खेत में दिया जाता है। लेकिन नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई करते वक्त और आधी मात्रा बुवाई के बाद दी जानी चाहिए। 

राजमा की फसल में सिंचाई 

राजमा की फसल में सिर्फ 2-3 बार पानी लगाया जाता हैं। बुवाई के 2 सप्ताह बाद पहला पानी लगाया जाता हैं। इसके बाद दूसरा पानी 20-25 दिन के अंतराल पर लगाया जाता है। 

राजमा की फसल में इस तरह सिंचाई करे जो पानी खेत में ठहरे न। उसके बाद फसल के पकने से पहले एक बार सिंचाई और की जाती है। 

राजमा की विभिन्न किस्मे 

राजमा की बहुत सी किस्मे ऐसी होती हैं जिनका उत्पादन भारत में अलग अलग जगहों पर किया जाता हैं। राजमा की कुछ किस्मे इस प्रकार है:

  1. पी. डी .आर 14
  2. मालवीय 137
  3. अम्बर
  4. उत्कर्ष
  5. बी .अल. 63

इन सभी राजमा की किस्मो का किसान उत्पदान कर सकता हैं। ये राजमा के सभी प्रकार सेहत के लिए गुणकारी साबित हुए है, अच्छे मुनाफे के लिए किसान इन सभी किस्मो का उत्पादन कर सकता है।

राजमा की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग 

राजमा की फसल में लगने वाले मुख्य रोग माहूँ और मुजैक हैं। इस रोग में बहुत छोटे कीट होते हैं जो पौधे की हरी पत्तियों से रस को चूसते है। ये कीट पौधे के विकास में रुकावट डालते हैं, साथ ही ये प्रकाश संश्लेषण की किर्या में भी कमी लाते हैं। 

मुजैक रोग की वजह से फलियों में छेड़ हो जाते हैं जो जिससे फलियों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। जैसा की आपको बताया गया हैं राजमा एक दलहनी फसल हैं जो हमारे स्वास्थ्य लिए लाभकारी है। राजमा में बहुत से पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य को संतुलित बनाये रखने में मददगार होते है। 

राजमा में पोटेसियम और मैग्नीशियम नामक पदार्थ पाए जाते हैं, पोटेसियम ब्लड परेसुरे को संतुलित बनाये रखने में मदद करता हैं और मैग्नीशियम शरीर के अंदर होने वाले दर्द को नियंत्रित करता है। राजमा को किडनी बीन्स के नाम से भी जाना जाता हैं

Join TractorBird Whatsapp Group

Categories

Similar Posts