खस की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
By : Tractorbird News Published on : 27-Dec-2024
खस मूलत: भारतीय उपमहाद्वीप का पौधा है। इसका उपयोग मूलत: तेल की प्राप्ति हेतु किया जाता है। जोकि खस के पौधे की जड़ों में पाया जाता है।
खस के तेल में प्रमुख घटक वेटीवरौल है जो 55-75% तक पाया जाता है। तेल का उपयोग सुगंधित सुपारी निर्माण, परफ्यूमरी तथा शर्बत आदि में किया जाता है।
खस की जड़ों से तेल निकालने के बाद जो घास बचता है, उससे खिड़की एवं कूलर के पर्दे बनाये जाते हैं। खस की खेती मुख्यत: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश तथा झारखण्ड में किया जाता है।
खस की खेती के लिए अनुपाजाऊ भूमि में अनुकूल होती है। खस के पौधे सामान्यतः नदियों के किनारों पर और दलदल जमीन से पाए जाते हैं।
उनके लिए महीन बलुई और दोमट मृदा सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है।
खस की खेती के लिए जलवायु और बुवाई की जानकारी
- लेमन ग्रास तथा जामा रोजा की तरह खस की बुवाई भी स्लिप्स से की जाती है। स्लिप बनाने के लिए एक साल पुराने पौधों कों उखाड़कर उनसे स्लीपर्स तैयार किया जाता है।
- अगर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो तो खस की स्लिप्स को भूमि में 5 सेंमी. गहरा जाना चाहिए।
- ऐसे इलाके जहाँ की मिट्टी ज्यादा उपजाऊ है, उनमें स्लिप्स का रोपण 60 X 60 सेंमी के फासले पर करना चाहिए।
- वहीं, हल्की मिट्टी में इनका रोपण 30 X से 60 सेंमी. के फासले में करना चाहिए। एक हेक्टेयर में तकरीबन 25000 से 37500 स्लिप्स लगाईं जाती हैं।
- अधिकांश खस की खेती शर्दियों वाले राज्यों को छोड़कर कहीं भी की जा सकती है। वैसे अधिक नमी तथा आर्द्रता वाले इलाके इसके लिए अधिक उपयुक्त होते हैं।
- औसतन 30 से. तापमान वाले इलाकों तथा उष्ण आर्द्र जलवायु खस की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
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खस की उत्तम किस्में कौन-कौन सी हैं ?
- वर्तमान में जो भी अन्वेषण हुए हैं, उस आधार पर उत्तम किस्में निकाली गयी हैं। इनसे तेल काफी ज्यादा हांसिल होता है। पूसा हाइब्रिड – 8, हाइब्रिड – 16, सीमैप के एस. – 1, के.एस.- 2, सुगंध आदि।
- खस की फसल में कोई खरपतवार नहीं पनप पाते परंतु प्रांरभिक दिनों में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक होता है। इसके लिए बुवाई के दो- तीन महीने के बाद फसल की एक बार हाथ से निराई – गुड़ाई कर देनी चाहिए।
खस की खेती के लिए जल प्रबंधन
- खस सूखा अवरोधी होता कोई खस सिंचाई की आवश्कता नहीं पड़ती, परंतु गर्मी के मौसम में दो - तीन सिंचाई करने से उत्पादन में अच्छी वृद्धि पायी जाती है।
- सिंचाई हल्की करना चाहिए जो पौध विकास के लिए उपयुक्त पाया जाता है।
खस की खेती में लगने वाले रोग
खस में कोई विशेष रोग बीमारी नहीं लगती, परंतु जड़ों में कभी – कभी दीपक या दुसरे कीटों का प्रकोप देखा गया है जिसके लिए थीमेर नमक दवा की 10 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में देने पर लाभदायक रहता है।
खस की फसल के तनों की कटाई
- खस की फसल सामान्यत: 18 से 24 महीने की फसल के रूप में ली जाती है। अता लगाने से लगभग 18 माह के बाद जड़ें खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
- सितंबर – जनवरी महीने में जब पौधे सुप्तावस्था में हो तो तने की कटाई कर देनी चाहिए या कटी हुई घास पशु अथवा इंधन के रूप में उपयोग की सकती है।
- एक बार काट दिए जाने पर पौधा अच्छी प्रकार से वृद्धि करता है।
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खस की जड़ों की खुदाई
- रोपने के 18 से 24 महीने के बाद खस की जड़ें खोदाई करने के योग्य हो जाती है।
- खुदाई का काम जाड़े में (नवंबर से फरवरी महीने तक) करना चाहिए, क्योंकी उस सनी जड़ों में तेल की मात्रा सर्वाधिक होती है। और तेल की गुणवत्ता भी अच्छी होता है।
खस की पैदावार
- दो वर्ष में जड़ों की खुदाई करने पर प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल जड़ प्राप्त होती है। 20-25 लीटर तेल उत्पादन प्रति एकड़ है। जो कि खस की खेती से प्राप्त किया जा सकता है।
- फसल चक्र एवं अंतरवर्ती खेती द्विवर्षीय फसल चक्र अपनाया जाता है।
खस की दौनी और भण्डारण
जड़ों को साफ कर छोटे–छोटे टुकड़ों में विभक्त कर भंडारित किया जाता है। वाष्प आसवन विधि द्वारा जड़ों से तेल निकाला जाता है।
कीट - नियंत्रण में नीम का प्रयोग
1) 500 ग्राम नीम बीज की गिरी + 10 लीटर पानी – रात भर भिगोना छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
2) 2 किलो हरी नीम पत्ती + 10 लीटर रात भर भिगोना – छानना - छिड़काव
3) 1 किलो नीम की खली (2-5 प्रतिशत तेल युक्त) + 10 लीटर पानी – रात भर भिगोना – छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
4) 1 किलो नीम की खली (2-5 प्रतिशत तेल युक्त) + लीटर पानी – रात भर भिगोना छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
5) 300 मिलीलीटर नीम तेल + 10 लीटर पानी – देर तक घोलना – घोल + 10 ग्राम साबुन
6) 1 किलो हरी नीम पट्टी + एक लीटर गोमोत्र (24 घंटे पुराना) – रात भर मिलाकर रखना – छानना – छिड़काव